महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 86 श्लोक 1-16

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षडशीतितम (86) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: षडशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

राजा युधिष्‍ठिर का भीमसेन को राजाओं की पूजा करने का आदेश और श्रीकृष्‍ण का युधिष्‍ठिर से अर्जुन का संदेश कहना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! वहा आये हुए वेदवेत्‍ता विद्वानों और पृथ्‍वी का शासन करने वाले राजाओं को देखकर राजा युधिष्‍ठिर ने भमसेन से कहा- 'भाई ! ये जो भूमण्‍डल शासन का शासन करने वाले राजा यहां पधारे हुए हैं, सभी पुरुषों में श्रेष्‍ठ एवं पूजा के योग्‍य हैं ; अत: तुम इनकी यथोचित पूजा (सत्‍कार) करो' । यशस्‍वी महाराज के इस प्रकार आदेश देने पर महातेजस्‍वी पाण्‍डुपुत्र भीमसेन ने नकुल और सहदेव को साथ लेकर सब राजाओं का युधिष्‍ठिर के आज्ञानुसार यथोचित सत्‍कार किया । इसके बाद समस्‍त प्राणियों में श्रेष्‍ठ भगवान् श्रीकृष्‍ण बलदेवजी को आगे करके सात्‍यकि, प्रद्युम्‍न, गद, निशठ, साम्‍ब तथा कृतवर्मा आदि वृष्‍णिवशिंयों केसाथ युधिष्‍ठिर के पास आये । महारथी भीमसेन ने उन लोगों का विधिवत् सत्‍कार किया । फिर वे रत्‍नों से भरे–पूरे घरों में जाकर रहने लगे । भगवान् श्रीकृष्‍ण युधिष्‍ठिर के पास बैठकर थोड़ी देर तक बातचीत करते रहे । उसी में उन्‍होंने बताया - 'अर्जुन बहुत – से युद्धों में शत्रुओं का सामना करने के कारण दुर्बल हो गये हैं' । यह सुनकर धर्मपुत्र कुन्‍तीकुमार युधिष्‍ठिर ने शत्रुदमन इन्‍द्र कुमार अर्जुन के विषय में बारम्‍बार उन से पूछा । तब जगदीश्‍वर भगवान् श्रीकृष्‍ण उनसे इस प्रकार बोले - 'राजन मेरे पास द्वारका का रहने वाला एक विश्‍वासपात्र मनुष्‍य आया था । उसने पाण्‍डव श्रेष्‍ठ अर्जुन को अपनी आंखों देखा था । वे अनेक स्‍थानों पर युद्ध करने के कारण बहुत दुर्बल हो गये हैं । 'प्रभो ! उसने यह भी बताया है कि महाबाहु अर्जुन अब निकट आ गये हैं । अत: कुन्‍तीनन्‍दन ! अब आप अश्‍वमेधिक यज्ञ की सिद्धि के लिये आवश्‍यक कार्य आरम्‍भ कर दीजिये' । उनके उेसा कहने पर धर्मराज युधिष्‍ठिर ने पुन: प्रश्‍न किया- 'माधव ! बड़े सौभाग्‍य की बात है कि अर्जुन सकुशल लौट रहे हैं । 'यदुनन्‍दन ! पाण्‍डव सेना के अग्रगामी अर्जुन ने इस यज्ञ के सम्‍बन्‍ध में जो कुछ संदेश दिया हो, उसे मैं आपके मुंह से सुनना चाहता हूं' । धर्मराज के इस प्रकार पूछने पर वृष्‍णि औश्र अन्‍धकवंशी यादवों के स्‍वामी प्रवचनकुशल भगवान् श्रीकृष्‍ण ने धर्मात्‍मा युधिष्‍ठिर से इस प्रकार कहा - महाराज ! जो मनुष्‍य मेरे पास आया था, उसने अर्जुन की बात याद करे मुझसे इस प्रकार कहा - 'श्रीकृष्‍ण ! आप ठीक समय पर मेरा यह कथन महाराज युधिष्‍ठिर को सुना दीजियेगा । ( अर्जुन कहते हैं - ) 'कौरवश्रेष्‍ठ ! अश्‍वमेध यज्ञ में प्राय: सभी राजा पधरेंगे । जो आ जायं उन सबको महान् मानकर उन सबका पूर्ण सत्‍कार करना चाहिये । यही हमारे योग्‍य कार्य है । ('इतना कहकर वे फिर मुझसे बोले) 'मानद ! मेरी ओर से तुम राजा युधिष्‍ठिर को यह सूचित कर देना कि राजसूय–यज्ञ में अर्घ्‍य देते समय जो दुर्घटना हो गयी थी, वैसी इस बार नहीं होनी चाहिये ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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