महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 78 श्लोक 31-44

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अष्टसप्ततिम (78) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टसप्ततिम अध्याय: श्लोक 31-44 का हिन्दी अनुवाद

जैसे अश्वमेघ यज्ञ के अन्त में अवभृथस्नान करने वाले मनुष्य पापरहित एवं पवित्र हो जाते है, उसी प्रकार युद्ध में शस्त्रों द्वारा मारे गये वीर अपने पाप नष्ट हो जाने के कारण पवित्र हो जाते है। देश-काल की परिस्थिति के कारण कभी अधर्म तो धर्म हो जाता है और धर्म अधर्मरूप में परिणत हो जाता है क्योंकि वह वैसा ही देश काल है। सबके प्रति मैत्री का भाव रखने वाले मनुष्य भी( दूसरों की रक्षा के लिये किसी दुष्ट के प्रति) क्रूरतापूर्ण बर्ताव करके उत्तम स्वर्गलोक पर अधिकार प्राप्त कर लेते है तथा धर्मात्मा पुरूष किसी की रक्षा के लिये पाप (हिंसा आदि) करते हुए भी परम गति को प्राप्त हो जाते है। अपनी रक्षा के लिये, अन्य वर्णों में यदि कोई बुराई आ रही हो तो उसे रोकने के लिये तथा दुर्दान्त दुष्टों का दमन करने के लिये- इन तीन अवसरों पर ब्राह्मण भी शस्त्र ग्रहण करे तो उसे दोष नहीं लगता। युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! नृपश्रेष्ठ! यदि डाकुओं का दल उत्तरोतर बढ रहा हो, समाज में वर्णसंकरता फैल रही हो और क्षत्रिय के प्रजापालनरूपी कार्य के लिये समस्त वर्णों के लोग कोई उपाय न ढूंढ पाते हों, उस अवस्था में यदि कोई बलवान ब्राह्मण, वैश्य अथवा शूद्र धर्म की रक्षा के निमित दण्ड धारण करके लुटेरों के हाथ से प्रजा को बचा ले तो वह राजशासन का कार्य कर सकता है या नहीं। अथवा उसे इस कार्य से रोकना चाहिये या नही? मेरा तो मत है कि क्षत्रिय से भिन्न वर्ण के लोगों को भी ऐसे अवसरों पर अवश्य शस्त्र उठाना चाहिये। भीष्मजी ने कहा- बेटा! जो अपार संकट से पार लगा दे, नौका के अभाव में डूबते हुए को जो नाव बनकर सहारा दें, वह शूद्र हो या कोई अन्य, सर्वथा सम्मान के योग्य है। डाकुआंे से पीडि़त होेकर कष्ट पाते हुए अनाथ मनुष्य गण जिसकी शरण में जाकर सुखपुर्वक रह सकें, उसी को अपने बन्धु-बान्धव के समान मानकर बडी़ प्रसत्रता के साथ उसका आदर-सत्कार करना उनके लिये उचित है; क्योंकि कुरूनन्दन! जे निर्भय होकर बारंबार दूसरो का सकंट निवारण कर सके, वही राजोचित सम्मान पाने के योग्य है। जो बोझ न ढो सकें, ऐसे बैलों से क्या लाभ? जो दूध न दे, ऐसी गाय किस काम की? जो बाँझ हो, ऐसी स्त्री क्या प्रयोजन है? और जो रक्षा न कर सके, ऐसे राजा से क्या लाभ है? कुन्तीनन्दन! जैसे काठ का हाथी, चमडे़ का हिरन, हिजड़ा मनुष्य, ऊसर खेत तथा वर्षा न करने वाला बादल-ये सब के सब व्यर्थ हैं ,उसी प्रकार अपढ़ ब्राह्यण तथा रक्षा न करने वाला राजा भी सर्वथा निरर्थक हैं। जो सदा सत्पुरूषों की रक्षा करे तथा दुष्टों को दण्ड दे कर दुष्कर्म करने से रोके , उसे ही राजा बनाना चाहिये; क्यों कि उसी के द्वारा यह सम्पुर्ण जगत् सुरक्षित होता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में अठहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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