महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 207 श्लोक 20-45

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सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 20-45 का हिन्दी अनुवाद

भरतनन्‍दन ! प्रजापति दक्ष के पहले तेरह कन्‍याएं उत्‍पन्‍न हुई, जिनमें दिति सबसे बड़ी थी। तात ! सम्‍पूर्ण धर्मों के विशेषज्ञ, पुण्‍यकीर्ति, महायशस्‍वी मरीचिनन्‍दन कश्‍यप उन सब कन्‍याओं के पति हुए। तदनन्‍तर धर्मके ज्ञाता महाभाग प्रजापति दक्ष ने दस कन्‍याऍ और उत्‍पन्‍न की, जो पूर्वोक्‍त तेरह कन्‍याओं से छोटी थीं । उन सबका विवाह उन्‍होंने धर्म के साथ कर दिया। भरतनंदन ! धर्म के वसु, अमित तेजस्‍वी रूद्र, विश्‍वेदेव, साध्‍य तथा मरूद्गगण– ये बहुत से पुत्र हुए। तत्‍पश्‍चात दक्ष के अन्‍य सत्‍ताईस कन्‍याऍ हुई, जो पूर्वोक्‍त कन्‍याओं से छोटी थीं। महाभाग सोम उन सबके पति हुए । इन सबके अतिरिक्‍त भी दक्ष के बहुत सी कन्‍याऍ हुई, जिन्‍होंने गन्‍धर्वों, अश्‍वों,पक्षियों, गौओं, किम्‍पुरूषों, मत्‍स्‍यों, उद् भिज्‍जोंऔर वनस्‍पतियों को जन्‍म दिया। आदिति ने देवताओं में श्रेष्‍ठ महाबली आदित्‍यों को उत्‍पन्‍न किया । उन आदित्‍यों में सर्वव्‍यापी भगवान गोविन्‍द भी वामनरूप से प्रकट हुए। उनके विक्रम से अर्थात विराट् रूप धारणकर तीन पैड में त्रिलोकी को नाप लेने के कारण देवताओं की श्रीवृद्धि हुई । दानव पराजित हुए तथा दैत्‍यों और असुरों की प्रजा भी पराभव को प्राप्‍त हुई। दनु ने दानवों को जन्‍म दिया, जिनमें विप्रचिति आदि दानव प्रमुख थे । दिति समस्‍त असुरों-महान शक्तिशाली दैत्‍यों की जननी हुई। इन्‍हीं श्रीमधुसूदन ने दिन-रात ऋतु के अनुसार काल,पूर्वाह्र तथा अपराह्र आदि समस्‍त काल विभाग की व्‍यवस्‍था की। उन्‍होंने ही अपने मन के संकल्‍प से मेघों, स्‍थावर जंगम जंगम प्राणियों तथा समस्‍त पदार्थो सहित महान तेज से संयुक्‍त समूची पृथ्‍वी की सृष्टि की । युधिष्ठिर ! तदनन्‍तर महाभाग श्रीकृष्‍ण ने पुन: सैकड़ों श्रेष्‍ठ ब्राह्राणों को मुख से ही उत्‍पन्‍न किया। भरतश्रेष्‍ठ ! इन केशव ने सैकड़ों क्षत्रियों को अपनी दोनों भुजाओं से, सैकड़ों वैश्‍यों को अपनी जॉघों से तथा सैकड़ों शूद्रों को दोनों पैरों से उत्‍पन्‍न किया। इस प्रकार इन महातपस्‍वी श्री हरिने चारों वार्णो को उत्‍पन्‍न करके स्‍वयं ही धाता को सम्‍पूर्ण भूतों का अध्‍यक्ष बनाया। वे ही वेदविद्या को धारण करनेवाले अमित तेजस्‍वी ब्रह्मा हुए । फिर श्रीहरिने भूतों और मातृगणों के अध्‍यक्ष विरूपाक्ष (रूद्र) की रचना की। सम्‍पूर्ण भूतों के आत्‍मा श्रीहरिने पापियों को दण्‍ड देनेवाले तथा पितरों के समवर्ती यमराज को और सम्‍पूर्ण निधियों के पालक धनाध्‍यक्ष कुबेर को उत्‍पन्‍न किया। इसी प्रकार उन्‍होंने जल-जन्‍तुओं के स्‍वामी जलेश्‍वर वरूण की सृष्टि की । उन्‍हीं भगवान ने इन्‍द्र को सम्‍पूर्ण देवताओंका अध्‍यक्ष बनाया। पहले मनुष्‍यों को जितने दिनों तक शरीर धारण करने की इच्‍छा होती, उतने दिनों तक वे जीवित रहते थे । उन्‍हें यमराज का कोई भय नहीं होता था। भरतश्रेष्‍ठ ! पहले के लोगों में मैथुन धर्म की प्रवृत्ति नहीं हुई थी । इन सबको संकल्‍प से ही संतान पैदा होती थी। तदनन्‍तर त्रेतायुग का समय आने पर स्‍पर्श करने मात्र से संतान की उत्‍पत्ति होने लगी । नरेश्‍वर ! उस समय के लोगों मे मैथुन धर्म का प्रचार नहीं हुआ था। नरेश्‍वर ! द्वापरयुग में प्रजा के मन मे मैथुन धर्म का सूत्रपात हुआ । राजन ! उसी तरह कलियुग में भी लोग मैथुन धर्म को प्राप्‍त होने लगे। तात कुन्‍तीनन्‍दन ! ये भगवान श्रीकृष्‍ण ही भूतनाथ एवं सबके अध्‍यक्ष कहे जाते हैं । अब जो नरक का दर्शन करनेवाले हैं, उनका वर्णन करता हूं, सूनो। नरेश्‍वर ! दक्षिण भारत में जन्‍म लेनेवाले सभी आन्‍ध्र, गुह, पुलिन्‍द, शबर, चूचुक और मद्रक ये सब के सब म्‍लेच्‍छ हैं। तात ! अब उत्‍तर भारत में जन्‍म लेनेवाले म्‍लेच्‍छों का वर्णन करूँगा; यौन, काम्‍बोज, गान्‍धार, किरात और बर्बर ये सब के सब पापाचारी होकर इस सारी पृथ्‍वीपर विचरते रहते है। नरेश्‍वर ! ये सब के सब चाण्‍डाल, कौए और गीधों के समान आचार-विचारवाले हैं । ये सत्‍ययुग में इस पृथ्‍वीपर नहीं विचरण करते है। भरतश्रेष्‍ठ ! त्रेता से वे लोग बढ़ने लगे थे । तदनन्‍तर त्रेता और द्वापर का महाघोर संध्‍याकाल उपस्थित होनेपर राजा लोग एक दूसरे से टक्‍कर लेकर युद्ध में आसक्‍त हुए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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