श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 10-23
प्रथम स्कन्धः प्रथम अध्यायः(1)
आप संत-समाज के भूषण हैं। इस कलियुग में प्रायः लोगों की आयु कम हो गयी हैं। साधन करने में लोगों की रूचि और प्रवृत्ति भी नहीं है। लोग आलसी हो गये हैं। उनका भाग्य तो मन्द है ही, समझ भी थोड़ी है। इसके साथ ही वे नाना प्रकार की विघ्न-बाधाओं से घिरे हुए भी रहते हैं । शास्त्र भी बहुत-से हैं। परन्तु उनमें एक निश्चित साधन नहीं, अनेक प्रकार के कर्मों का वर्णन है। साथ ही वे इतने बड़े हैं कि उनका एक अंश सुनना भी कठिन है। आप परोपकारी हैं। अपनी बुद्धि से उनका सार निकालकर प्राणियों के परम कल्याण के लिये हम श्रद्धालुओं को सुनाइये, जिससे हमारे अन्तःकरण की शुद्धि प्राप्त हो । प्यारे सूतजी! आपका कल्याण हो। आप तो जानते ही हैं कि यदुवंशियों के रक्षक भक्तवत्सल भगवान् श्रीकृष्ण वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी के गर्भ से क्या करने की इच्छा से अवतीर्ण हुए थे । हम उसे सुनना चाहते हैं। आप कृपा करके हमारे लिये उसका वर्णन कीजिये; क्योंकि भगवान् का अवतार जीवों के परम कल्याण और उनकी भगवत्प्रेममयी समृद्धि के लिये ही होता है । यह जीव जन्म-मृत्यु के घोर चक्र में पड़ा हुआ है—इस स्थिति में भी यदि वह कभी भगवान् के मंगलमय नाम का उच्चारण कर ले तो उसी क्षण उससे मुक्त हो जाय; क्योंकि स्वयं भय भी भगवान् से डरता रहता है । सूतजी! परम विरक्त और परम शान्त मुनिजन भगवान् के श्रीचरणों की शरण में रहते हैं, अतएव उनके स्पर्ष मात्र से संसार के जीव तुरंन्त पवित्र हो जाते हैं। इधर गंगाजी के जल का बहुत दिनों तक सेवन किया जाय, तब कहीं पवित्रता प्राप्त होती है । ऐसे पुण्यात्मा भक्त जिनकी लीलाओं का गान करते रहते हैं, उन भगवान् का कलिमलहारी पवित्र यश भला आत्मशुद्धि की इच्छा वाला ऐसा कौन मनुष्य होगा, जो श्रवण न करे । वे लीला से ही अवतार धारण करते हैं। नारदादि महात्माओं ने उनके उदार कर्मों का गान किया है। हम श्रद्धालुओं के प्रति आप उनका वर्णन कीजिये । बुद्धिमान् सूतजी! सर्वसमर्थ प्रभु अपनी योगमाया से स्वच्छन्द लीला करते हैं। आप उन श्रीहरि की मंगलमयी अवतार-कथाओं का अब वर्णन कीजिये । पुण्यकीर्ति भगवान् की लीला सुनने से हमें कभी भी तृप्ति नहीं हो सकती; क्योंकि रसज्ञ श्रोताओं को पद-पद पर भगवान् की लीलाओं में नये-नये रस का अनुभव होता है । भगवान् श्रीकृष्ण अपने को छिपाये हुए थे, लोगों के सामने ऐसी चेष्टा करते थे मानो कोई मनुष्य हों। परन्तु उन्होंने बलरामजी के साथ ऐसी लीलाएँ भी की हैं, ऐसा पराक्रम भी प्रकट किया है, जो मनुष्य नहीं कर सकते । कलियुग को आया जानकर इस वैष्णव क्षेत्र में हम दीर्घकालीन सत्र का संकल्प करके बैठे हैं। श्रीहरि की कथा सुनने के लिये हमें अवकाश प्राप्त है । यह कलियुग अन्तःकरण की पवित्रता और शक्ति का नाश करने वाला है। इससे पार पाना कठिन है। जैसे समुद्र से पार जाने वालों को कर्णधार मिल जाय, उसी प्रकार इससे पार पाने की इच्छा रखने वाले हम लोगों से ब्रम्हा ने आपको मिलाया है । धर्म रक्षक, ब्राम्हण भक्त, योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के अपने धाम में पधार जाने पर धर्म ने अब किसकी शरण ली है—यह बताइये ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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