महाभारत शल्य पर्व अध्याय 38 श्लोक 54-59

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अष्टात्रिंश (38) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 54-59 का हिन्दी अनुवाद

‘शंकर ! आप सब के प्रभु हैं। अपने उत्कृष्ट ऐश्वर्य से आपकी अधिक शोभा हो रही है। ब्रह्मा और इन्द्र सम्पूर्ण लोकों को धारण करके आप में ही स्थित हैं । ‘महेश्वर ! सम्पूर्ण जगत् के मूल कारण आप ही हैं। इसका अन्त भी आप में ही होता है। सब की उत्पत्ति के हेतु भूत परमेश्वर ! से सातों लोक आप से ही उत्पन्न होकर ब्रह्माण्ड में फैले हुए हैं । ‘सर्वभूतेश्वर ! देवता सब प्रकार से आपकी ही पूजा अर्चा करते हैं। सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भूतों के उपादान कारण भी आप ही हैं ।‘आप ही अभ्युदय की इच्छा रखने वाले सत्कर्म परायण मनुष्यों को ध्यान योग से उन के कर्मो का विचार करके उत्तम पद-स्वर्ग लोक प्रदान करते हैं । ‘महादेव ! महेश्वर ! कमल नयन ! आपका कृपा प्रसाद कभी व्यर्थ नहीं होता ! आपकी दी हुई सामग्री से ही मैं कार्य कर पाता हूं, अतः सर्वदा सब ओर स्थित हुए सर्वव्यापी आप भगवान् शंकर की मैं शरण में आता हूं’ । इस प्रकार महादेवजी की स्तुति करके वे महर्षि नतमस्तक हो गये और इस प्रकार बोले-‘देव ! मैंने जो यह अहंकार आदि प्रकट करने की चपलता की है, उसके लिये क्षमा मांगते हुए आप से प्रसन्न होने की मैं प्रार्थना करता हूं। मेरी तपस्या नष्ट न हो’ । यह सुनकर महादेवजी का मन प्रसन्न हो गया। वे उन महर्षि से पुनः बोले-‘विप्रवर ! मेरे प्रसाद से तुम्हारी तपस्या सहस्त्रगुनी बढ़ जाय। मैं इस आश्रम में सदा तुम्हारे साथ निवास करूंगा। जो इस सप्तसारस्वत तीर्थ में मेरी पूजा करेगा, उसके लिये इहलोक या परलोक में कुछ भी दुर्लभ न होगा। वे सारस्वत लोक में जायंगे-इसमें संशय नहीं है’ । यह महातेजस्वी मंकणक मुनि का चरित्र बताया गया है। वे वायु के औरस पुत्र थे। वायु देवता ने सुकन्या के गर्भ से उन्हें उत्पन्न किया था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व मे बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सार स्वतोपाख्यान विषयक अड़तीसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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