महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 58 श्लोक 22-42

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अष्टपञ्चाशत्तम (58) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 22-42 का हिन्दी अनुवाद

महामना भीष्म और द्रोण के रोकने पर भी उनके सामने हीवह सेना भागती ही चली जा रही थी। उधर सहस्त्रों रथी जब इधर-उधर भाग रहे थे, उसीसमय एक रथ पर बैठे हुए अभिमन्यू और सात्यकि सुबल पुत्र की सेना का संग्राम भूमि में सब ओर से संहार करने लगे। उस अवसर पर (एक रथ में बैठे हुए) सात्यकि और अभिमन्यु उसी प्रकार शोभा पा रहे थे, जैसे अमावास्‍यातिथि को आकाश में सूर्य और चन्द्रमा एक ही स्थान में सुशोभित होते हैं। प्रजानाथ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए अर्जुन आपकी सेना पर उसी प्रकार बाणों की वर्षा करने लगे, जैसे बादल पानी की धारा बरसाता है। तब पार्थ के बाणों से संग्राम-भूमि में पीड़ित हुई कौरव-सेना विषाद और भय से कांपती हुई इधर-उधर भाग चली। उन योद्धाओं को भागते देख दुर्योधन का हित चाहने वाले महारथी भीष्म और द्रोण क्रोधपूर्वक उन्हें रोकने लगे। प्रजानाथ! इसी बीच में राजा दुर्योधन की मूर्छा दूर हो गयी और उसने आश्वस्त होकर चारों ओर भागती हुई सेना को पुनः लौटाया। भारत! आपका पुत्र दुर्योधन जहां-तहां जिस-जिसकी ओर दृष्टिपात करता, वहीं-वहीं से ऐसे योद्धा भीलौट आते थे जो क्षत्रियों में महारथी थे। राजन! उन सबको लौटते देख दूसरे लोग भी एक दूसरे की स्पर्धा तथा लज्जा के कारण ठहर गये। महाराज ! पुनः लौटते हुए उन योद्धाओं का महान वेग चन्द्रोदय के समय बढ़ते हुए महासागर के समान जान पड़ता था। तब उन सबको लौटा हुआ देख राजा दुर्योधन तुरंत ही शान्तनुनन्दन भीष्म के पास जाकर बोला-‘पितामह भरतनन्दन ! मैं आपसे जो कुछ कहता हूँ, उसे सुनिये। कुरूनन्दन ! आपके, अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य के और महाधनुर्धर कृपाचार्य के पुत्रों और सुहृदोंसहित जीते-जी जो मेरी सेना भाग रही है, इसे मैं आप लोगों के योग्य नहीं मानता हूँ। ‘मैं किसी तरह यह नहीं मान सकता कि पाण्डव संग्राम में आपके, द्रोणाचार्य के, कृपाचार्य के और अश्वत्थामा के समान बलवान हैं। ‘वीर पितामह! निश्चय ही पाण्डव आपके कृपापात्र हैं, तभी तो मेरी सेना का वध हो रहा है और आप चुपचाप इसकी दुर्दशा को सहते चले जा रहे हैं। ‘महाराज ! यदि पाण्डवों पर दया ही करनी थी तो आप युद्ध आरम्भ होने के पहले ही मुझे यह बता देते कि मैं संग्राम भूमि में पाण्डुपुत्रों से, धृष्टद्युम्न से और सात्यकिसे भी युद्ध नहीं करूँगा। ‘उस अवस्था में आपका, आचार्य का तथा कृपाचार्य का वचन सुनकर मैं कर्ण के साथ उसी समय अपने कर्तव्य का निश्चय कर लेता। ‘यदि युद्ध में आप दोनों को मेरा परित्याग करना उचित नहीं जान पड़ता हो तो द्रोणाचार्य और आप दोनों श्रेष्ठ पुरूष अपने योग्य पराक्रम प्रकट करते हुए युद्ध कीजिये। यह सुनकर भीष्म बारम्‍बारहंसकर क्रोध से आँखें तरेरते हुए आपके पुत्र से बोले। ‘राजन ! मैंने तुमसे अनेक बार यह सत्य और हित की बात बतायी है कि युद्ध में पाण्डवों को इन्द्र आदि देवता भी जीत नहीं सकते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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