महाभारत शल्य पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-21

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अष्टात्रिंश (38) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति, महिमा और मंकणक मुनि का चरित्र

जनमेजय ने पूछा-विप्रवर ! सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति किस हेतु से हुई ? पूजनीय मंकणक मुनि कौन थे ? कैसे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई और उनका नियम क्या था ? द्विजश्रेष्ठ ! वे किसके वंश में उत्पन्न हुए थे और उन्होंने किस शास्त्र का अध्ययन किया था ? यह सब मैं विधि पूर्वक सुनना चाहता हूं । वैशम्पायनजी ने कहा-राजन् ! सरस्वती नाम की सात नदियां और हैं, जो इस सारे जगत् में फैली हुई हैं। तपोबल सम्पन्न महात्माओं ने जहां-जहां सरस्वती का आवाहन किया है, वहां-वहां वे गयी हैं । उन सब के नाम इस प्रकार हैं-सुप्रभा, कान्चनाक्षी, विशाला, मनोरमा, सरस्वती, ओघवती, सुरेणु और विमलोद का । एक समय की बात है, पुष्कर तीर्थ में महात्मा ब्रह्माजी का एक महान् यज्ञ हो रहा था। उनकी विस्तृत यज्ञ शाला में सिद्ध ब्राह्मण विराजमान थे। पुण्याहवाचन के निर्दोष घोष तथा वेद मन्त्रों की ध्वनि से सारा यज्ञ मण्डप गूंज रहा था और सम्पूर्ण देवता उस यज्ञ-कर्म के सम्पादन में व्यस्त थे । महाराज ! साक्षात् ब्रह्माजी ने उस यज्ञ की दीक्षा ली थी। उनके यज्ञ करते समय सब की समस्त इच्छाएं उस यज्ञ द्वारा परिपूर्ण होती थीं । राजेन्द्र ! धर्म और अर्थ में कुशल मनुष्य मन में जिन पदार्थो का चिन्तन करते थे, वे उनके पास वहां तत्काल उपस्थित हो जाते थे । उस यज्ञ में गन्धर्व गीत गाते और अप्सराएं नृत्य करती थीं। वहां दिव्य बाजे बजाये जा रहे थे । उस यज्ञ के वैभव से देवता भी संतुष्ट थे और अत्यन्त आश्चर्य में निमग्न हो रहे थे; फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या है ? राजन् ! इस प्रकार जब पितामह ब्रह्मा पुष्कर में रहकर यज्ञ कर रहे थे, उस समय ऋषियों ने उनसे कहा-‘भगवन् ! आपका यह यज्ञ अभी महान् गुण से सम्पन्न नहीं है; क्योंकि यहां सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती नहीं दिखायी देती हैं’ । यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने प्रसन्नतापूर्वक सरस्वती देवी की आराधना करके पुष्कर में यज्ञ करते समय उनका आवाहन किया । राजेन्द्र ! तब वहां सरस्वती सुप्रभा नाम से प्रकट हुई। बड़ी उतावली के साथ आकर ब्रह्माजी का सम्मान करती हुई सरस्वती का दर्शन करके ऋषिगण बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उस यज्ञ को बहुत सम्मान दिया । इस प्रकार सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती पुष्कर तीर्थ में ब्रह्माजी तथा मनीषी महात्माओं के संतोष के लिये प्रकट हुई । राजन् ! जनेश्वर ! नैमिषारण्य में बहुत से मुनि आकर रहते थे। वहां वेद के विषय में वित्रित कथा-वार्ता होती रहती थी ।जहां वे नाना प्रकार के स्वाध्यायों का ज्ञान रखने वाले मुनि रहते थे, वहीं उन्होंने परस्पर मिल कर सरस्वती देवी का स्मरण किया । महाराज ! राजाधिराज ! उन सत्रयाजी ( ज्ञानयज्ञ करने वाले ) ऋषियों के ध्यान लगाने पर महाभागा पुण्य सलिला सरस्वती देवी उन समागत महात्माओं की सहायता के लिये वहां आयी । भारत ! नैमिषारण्य तीर्थ में उन सत्रयाजी मुनियों के समक्ष आयी हुई सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती कान्चनाक्षी नाम से सम्मानित हुई । राजा गय गय देश में ही एक महान् यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे। उनके यज्ञ में भी सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती का आवाहन किया गया था। कठोर व्रत का पालन करने वाले महर्षि गय के यज्ञ में आयी हुई सरस्वती को विशाला कहते हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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