महाभारत वन पर्व अध्याय 246 श्लोक 23-27

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०४:४५, १ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==षट्चत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (246) अध्‍याय: वन पर्व (घोष...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षट्चत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (246) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: षट्चत्‍वारिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 23-27 का हिन्दी अनुवाद

‘कुरूनन्‍दन ! अब तुम अपने सब भाइयोंके साथ कुशलपूर्वक इच्‍छानुसार घर जाओ । हमलोगोंके प्रति मनमें वैमनस्‍य न रखना ? वैशम्‍पायनजी कहते हैं–जनमेजय ! पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर राजा दुर्योधनने उन धर्मपुत्र अजातशत्रु को प्रणाम करके नगर की ओर प्रस्‍थान किया । उस समय जिनकी इन्द्रिया काम न देती हों उस रोगीकी भॉंति उसका हृदय व्‍यथासे विदीर्ण हो रहा था । उसे अपने कुकृत्‍यपर बडी लज्‍जा हो रही थी । दुर्योधनके चले जानेपर द्विजातियोंसे प्रंशंसित होते हुए भाइयों सहित वीर कुनतीनन्‍दन युधिष्ठिर वहांके समस्‍त तपस्‍वी मुनियोंसे घिेरे रहकर देवताओंके बीचमें बैठे हुए इन्‍द्रकी भॉंति शोभा पाने और प्रसन्‍नता पूर्वक दैतवनमें विहार करने लगे ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधनको छुडानेसे सम्‍बन्‍ध रखनेवाला दो सौ छियालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।