महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 62 श्लोक 86-96

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द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 86-96 का हिन्दी अनुवाद

देवेन्द्र। दिव्य मालाओं से विभूषित हो नाच और गान में लगी हुई देवांगनाऐं स्वर्ग में भूमि दाता की सेवा में उपस्थित होती हैं । जो यहां उत्तम विधि से ब्राह्माण को भूमि का दान करता है वह स्वर्ग मेंदेवताओं और गन्धर्वों से पूजित हो सुख और आनन्द भोगता है । देवराज। भूदान करने वाले पुरूष की सेवा में ब्रह्मलोक में दिव्य मालाओं से विभूषित सैकड़ों अप्सराऐं उपस्थिति होती हैं ।भूमिदान करने वाले मनुष्य के यहां सदा पुण्य फलस्वरूप शंक, सिंहासन, छत्र, उत्तम घोड़े और श्रेष्ठ वाहन उपस्थिति होते हैं । भूमिदान करने से पुरूष को सुन्दर पुष्प, सोने के भण्डार, कभी प्रतिहत न होने वाली आज्ञा, जयसूचक शब्द तथा भांति-भांति के धन-रत्न प्राप्त होते हैं । परंदर। भूमि दान के जो पुण्य हैं उनके फलरूप में स्वर्ग, सुवर्णमय फूल देने वाली औषधियां तथा सुनहरे कुश और घास से ढकी हुई भूमि प्राप्त होती है। भूमि दान करने वाला पुरूष अमृत पैदा करने वाली भूमि पाता है, भूमि के समान कोई दान नहीं है, माता के समान कोई गुरू नहीं है, सत्य के समान कोई धर्म नहीं है और दान के समान कोई निधि नहीं है। भीष्मजी कहते हैं- राजन। बृहस्पति जी के मुंह से भूमि दान का यह महात्म्य सुनकर इन्द्र ने धन और रत्नों से भरी हुई यह पृथ्वी उन्हें दान कर दी। जो पुरूष श्राद्व के समय पृथ्वी दान के इस माहात्म्य को सुनता है, उसके श्राद्व कर्म में अपर्ण किये हुए भाग राक्षस और असुर नहीं लेने पाते। पितरों के निमित्त उसका सारा दिया हुआ दान अक्षय होता है, इसमें संशय नहीं है; इसलिये विद्वान पुरूष को चाहिये कि वह श्राद्व में भोजन करते हुए ब्राह्माणों को यह भूमिदान का महात्म्य अवश्‍य सुनाये। निष्पाप भरत श्रेष्ठ। इस प्रकार मैंने सब दानों में श्रेष्ठ पृथ्वी दान का महात्म्य तुम्हें बताया है, अब और क्या सुनना चाहते हो ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें का बासठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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