महाभारत आदि पर्व अध्याय 189 श्लोक 36-47
एकोननवत्यधिकशततम (189) अध्याय: आदि पर्व (स्वयंवर पर्व)
‘क्योंकि ब्राह्मण अपराधी हों, तो भी सदा ही उनकी रक्षा करनी चाहिये। पहले इनका ठीक-ठीक परिचय ले लें, फिर (ये चाहें तो) हम इनके साथ प्रसन्न्तापूर्वक युद्ध करेंगे’। उन सब राजाओं तथा अन्य लोगों को ऐसी बातें करते देख और युद्ध में वह महान् पराक्रम दिखाकर भीमसेन और अर्जुन बड़े प्रसन्न थे।
वैशपाम्यनजी कहते है- जनमेजय ! भीमसेन का वह अद्भुत कार्य देख भगवान् श्रीकृष्ण ने यह सोचते हुए कि ये दोनों भाई कुन्तीकुमार भीमसेन और अर्जुन ही हैं, उन सब राजाओं को यह समझाकर कि ‘इन्होंने धर्मपूर्वक द्रौपदी को प्राप्त किया है’ अनुनयपूर्वक युद्ध से रोका। इस प्रकार श्रीकृष्ण के समझाने से वे सभी युद्धकुशल श्रेष्ठ नरेश युद्ध से निवृत हो गये और विस्मित होकर अपने-अपने डेरों को चले गये। वहां जो दर्शक एकत्र हुए थे, वे ‘इस रंग मण्डप के उत्सव से ब्राह्मणों की श्रेष्ठता सिद्ध हुई; पाञ्चालराजकुमारी द्रौपदी को ब्राह्मणों ने प्राप्त किया, यों कहते हुए (अपने-अपने निवास स्थान को) चले गये। रुरुमृग के चर्म को वस्त्र के रुप में धारण करने वाले ब्राह्मणों से घिरे होने के कारण भीमसेन और अर्जुन बड़ी कठिनाई से आगे बढ़ पाते थे। जनता की भीड़ से बाहर निकलने पर शत्रुओं ने उन्हें अच्छी तरह देखा। आगे-आगे वे दोनों नरवीर थे और उनके पीछे-पीछे द्रौपदी चली जा रही थी। द्रौपदी के साथ वहां उन दोनों की बड़ी शोभा हो रही थी। वे ऐसे लगते थे, जैसे पूर्णमासी तिथि को मेघों की घटा से निकलकर चन्द्रमा और सूर्य प्रकाशित हो रहे हों। इधर भिक्षा का समय बीत जाने पर भी जब पुत्र नहीं लौटे, तब उनकी माता कुन्ती देवी स्नेहवश अनेक प्रकार की चिन्ताओं में डूबकर उनके विनाश की आशंका करने लगीं- ‘कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि धृतराष्ट्र के पुत्रों ने कुरुश्रेष्ठ पाण्डवों को पहिचान कर उनकी हत्या कर डाली हो? अथवा द्दढ़तापूर्वक वैरभाव को मन में रखनेवाले महाभयंकर मायावी राक्षसों ने तो मेरे बच्चों को नहीं मार डाला ? क्या महात्मा व्यास के भी निश्चित मत के विपरीत कोई बात हो गयी ?’।।43-45।। इस प्रकार पुत्र स्नेह में पगी कुन्ती देवी जब चिन्ता में मग्न हो रही थीं, आकाश में मेघों की भारी घटा घिर आने के कारण जब दुर्दिन-सा हो रहा था और जनता सब काम छोड़कर सोये हुए-की भांति अपने-अपने घरों पर निश्चेष्ट होकर बैठी थी, उसी समय दिन के तीसरे पहर में बादलों से घिरे हुए सूर्य के समान ब्राह्मणमण्डली से घिरे हुए अर्जुन ने वहां उस कुम्हार के घर में प्रवेश किया।
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