महाभारत आदि पर्व अध्याय 122 श्लोक 14-24

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:०८, १३ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 14-24 का हिन्दी अनुवाद

वायुदेव से भयंकर पराक्रमी महाबाहु भीम का जन्मउ हुआ । जनमेजय ! उस महाबली पुत्र को लक्ष्ये करके आकाशवाणी ने कहा- यह कुमार समस्तन बलवानों में श्रेष्ठ है। भीमसेन के जन्मर लेते ही एक अद्भुत घटना यह हुई कि अपनी माता की गोद से गिरने पर उन्होंमने अपने अंगों से एक पर्वत की चट्टान को चूर-चूर कर दिया। बात यह थी कि यदुकुल नन्दोनी कुन्ती् प्रसव के दसवें दिन पुत्र को गोद में लिये उसके साथ एक सुन्दरर सरोवर के निकट गयी और स्नालन करके लौटकर देवताओं की पूजा करने के लिये कुटिया से बाहर निकली। भरतनन्दसन ! वह पर्वत के समीप होकर जा रही थी कि इतने में ही उसको मार डालने की इच्छाु से एक बहुत बड़ा व्यााघ्र उस पर्वत की कन्दमरा से बाहर निकल आया। देवताओं के समान पराक्रमी कुरुश्रेष्ठ पाण्डुत ने उस व्या घ्र को दौड़कर आते देख धनुष खींच लिया और तीन बाणों से मारकर उसे विदीर्ण कर दिया। उस समय वह अपनी विकट गर्जना से पर्वत की सारी गुफा का प्रतिध्वणनित कर रहा था। कुन्तीय बाघ के भय से सहसा उछल पड़ी ।।१४-१६।। उस समय उसे इस बात का ध्याान नहीं रहा कि मेरी गोदी में भीमसेन सोया हुआ है। उतावले में वह वज्र के समान शरीर वाला कुमार पर्वत के शिखर पर गिर पड़ा ।।१७।। गिरते समय उसने अपने अंगों से उस पर्वत की शिला को चूर्ण-विचूर्ण कर दिया। पत्थर की चट्टान को चूर-चूर हुआ देख महाराज पाण्डुे बड़े आश्चर्य में पड़ गये ।।१८।। जब चन्द्र मा मवा नक्षत्र पर विराजमान थे, बृहस्परति सिंह लग्न में सुशोभित थे, सूर्यदेव दोपहर के समय आकाश के मध्यच भाग में तप रहे थे, उस समय पुण्य।मयी त्रयोदशी तिथी को मैत्र मुहूर्त में कुन्ती देवी ने अविचल शक्ति वाले भीमसेन को जन्मम दिया था। भरतश्रेष्ठ भूपाल ! जिस दिन भीमसेन का जन्मर हुआ था, उसी दिन हस्तिनापुर में दुर्योधन की भी उत्पमत्ति हुई ।।१९।। भीमसेन के जन्म लेने पर पाण्डुा ने फि‍र इस प्रकार विचार किया कि मैं कौनसा उपाय करूं, जिससे मुझे सब लोगों से श्रेष्ठ उत्तम पुत्र प्राप्त हो ।।२०। यह संसार दैव तथा पुरूषार्थ पर अबलम्बित है। इनमें दैव तभी सुलभ ( सफल ) होता है, जब समय पर उद्योग किया जाय ।।२१।।

मैंने सुना है कि देवराज इन्द्रध ही सब देवताओं में प्रधान हैं, उनमें अथाह बल और उत्साबह है। वे बड़े पराक्रमी एवं अपार तेजस्वीै हैं। मैं तपस्यार द्वारा उन्हीं को संतुष्ट करके महाबली पुत्र प्राप्त करूंगा । वे मुझे जो पुत्र देंगे, वह निश्चय ही सबसे श्रेष्ठ होगा तथा संग्राम में अपना सामना करने वाले मनुष्योंत तथा मनुष्येरतर प्राणियों (दैत्यर-दानव आदि ) को भी मारने में समर्थ होगा। अत: मैं मन, वाणी और क्रिया द्वारा बड़ी भारी तपस्याै करूंगा ।।२२-२४।।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।