महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 86 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:१७, २० अगस्त २०१५ का अवतरण ('== षडशीतितम (86) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)== <div style...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षडशीतितम (86) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षडशीतितम श्लोक 21-44 का हिन्दी अनुवाद

भीष्मर उस युद्धस्थल में रथियों के मस्तक काट-काटकर उसी प्रकार गिराने लगे, जैसे कोई कुशल मनुष्यस ताड़-के वृक्षों से पके हुए फलों को गिरा रहा हो। महाराज! भूतलपर पटापट गिरते हुए मस्तकों का आकाश से पृ‍थ्वीए पर पड़ने वाले पत्थरों के समान भयंकर शब्द हो रहा था। उस भयानक तुमुल युद्ध के होते समय सभी सेनाओं का आपस में भारी संघर्ष हो गया। उन सबका व्यूह भङ्ग हो जाने पर भी सम्पूर्ण क्षत्रिय परस्पर एक-एक को ललकराते हुए युद्ध के लिये डटे ही रहे। शि‍खण्डीय भरतवंश के पितामह भीष्म के पास पहुंचकर उनकी ओर बडे़ वेग से दौड़ा और बोला- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। किंतु भीष्मड ने शिखण्डीव के स्त्रीत्व का चिन्तन करके युद्ध में उसकी अवहेलना कर दी और सृंजयवंशी क्षत्रियों पर क्रोधपूर्वक आक्रमण किया। तब सृंजयगण उस महायुद्ध में हर्ष और उत्साह से भरे हुए भीष्मक को देखकर शङ्खध्वकनि के साथ नाना प्रकार से सिंहनाद करने लगे। प्रभो! जब सूर्य पश्चिम दिशा में ढलने लगे, उस समय युद्ध का रूप और भी भयंकर हो गया। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गये। पाञ्चालराजकुमार धृष्टीद्यूम्न तथा महारथी सात्यकि ये दोनों शक्ति और तोमरों की वर्षा से कौरवसेना की अत्यन्त पीड़ा देने लगे। राजन्! उन दोनों ने युद्ध में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा आपके सैनिकों का संहार करना आरम्भ किया। भरतश्रेष्ठे! उनके द्वारा समर में मारे, जाते हुए आपके सैनिक युद्ध-विषयक श्रेष्ठम बुद्धि का सहारा लेकर ही संग्राम छोड़कर भाग नहीं रहे थे। आपके योद्धा भी रणक्षेत्र में पूर्ण उत्साह के साथ शत्रुओं का संहार करते थे। राजन्! महामना धृष्टेद्यूम्न समराङ्गण में जब आपके योद्धाओं का वध कर रहे थे, उस समय उन महामनस्वी वीरों का आर्तक्रन्दन बडे़ जोर से सुनायी देता था। आपके सैनिकों का वह घोर आर्तनाद सुनकर अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द धृष्ट।द्यूम्न का सामना करने के लिये उपस्थित हुए। उन दोनों महारथिुयों ने बड़ी उतावली के साथ धृष्ट द्यूम्न के घोड़ों को मारकर उन्हें भी अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया। तब महाबली धृष्ट द्यूम्न तुरंत ही अपने रथ से कूदकर महामना सात्यकि के रथ पर शीघ्रतापूर्वक चढ़ गये। तदनन्तर विशाल सेना से घिरे हुए राजा युधिष्ठिर ने शत्रुओं को तपाने वाले और क्रोध में भरे हुए विन्द-अनुविन्द पर आक्रमण किया। आर्य! इसी प्रकार आपका पुत्र दुर्योधन भी सम्पूर्ण उद्योग से समरभूमि में विन्द और अनुविन्द की रक्षा के लिये उन्हें सब ओर से घेरकर खड़ा हो गया। क्षत्रियशिरोमणि अर्जुन भी अत्यन्त कुपित होकर क्षत्रियों के साथ संग्रामभूमि में उसी प्रकार युद्ध करने लगे, जैसे वज्रधारी इन्द्र असुरों के साथ करते हैं। आपके पुत्र का प्रिय करने वाले द्रोणाचार्य भी युद्ध में कुपित होकर समस्त पाञ्चालों का विनाश करने लगे, मानो आग रूई के ढेर को जला रही हो। प्रजानाथ! आपके दुर्योधन आदि पुत्र रणक्षेत्र में भीष्म -को घेरकर पाण्डतवों के साथ युद्ध करने लगे। भारत! तदनन्तर जब सूर्यदेव पर संध्याे की लाली छाने लगी, तब राजा दुर्योधन ने आपके सभी योद्धाओं से कहा- जल्दी करो। फिर तो वे सब योद्धा वेग से युद्ध करते हुए दुष्कसर पराक्रम प्रकट करने लगे। उसी समय सूर्य अस्ताचल को चले गये और उनका प्रकाश लुप्त हो गया। इस प्रकार संध्या् होते-होते क्षणभर में रक्त के प्रवाह से परिपूर्ण भयानक नही बह चली और उसके तट पर गीदड़ों की भीड़ जमा हो गयी। भैरव रव फैलाने वाली अमङ्गलमयी सियारिनों तथा भूतगणों से व्याप्त होकर वह युद्ध का मैदान अत्यन्त भयानक हो गया।



« पीछे आगे »