महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-12

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पंचषष्टितम (65) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:पंचषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

राजा शशबिन्‍दु का चरित्र नारद जी कहते हैं – सृंजय ! मेरे सुनने में आया है कि राजा शशबिन्‍दु की भी मृत्‍यु हो गयी थी । उन सत्‍य-पराक्रमी श्रीमान नरेश ने नाना प्रकार के यज्ञों का अन्‍ष्‍ठान किया था । महामना शशबिन्‍दु के एक लाख स्त्रियां थीं और प्रत्‍येक स्‍त्री के गर्भ से एक-एक जार पुत्र उत्‍पन्‍न हुए थे । वे सभी राजकुमार अत्‍यन्‍त पराक्रमी और वेदों के पारंगत विद्वान थे । वे राजा होने पर दस लाख यज्ञ करने का संकल्‍प ले प्रधान-प्रधान यज्ञों का अनुष्‍ठान कर चुके थे । शशबिन्‍दु के उन सभी पुत्रों ने सोने के कवच धारण कर रक्‍खे थे । व सब उत्‍तम धनुर्धर थे और अश्‍वमेघ-यज्ञों का अनुष्‍ठान कर चुके थे । पिता महाराज शशबिन्‍दु ने अश्‍वमेघ-यज्ञ करके उसमें अपने वे सभी पुत्र ब्राह्मणों को दे डाले । एक-एक राजकुमार के पीछे सौ-सौ रथ और हाथी गये थे । उस समय प्रत्‍येक राजकुमार के साथ सुवर्ण भूषित सौ सौ कन्‍याएं थीं । एक एक कन्‍या के पीछे सौ सौ हाथी और प्रत्‍येक हाथी के पीछे सौ सौ रथ थे । हर एक रथ के साथ सोने के हारों से विभूषित सौ सौ बलवान्‍ अश्‍व थे । प्रत्‍ये अश्‍व के पीछे हजार हजार गौएं तथा एक एक गाय के पीछे पचास पचास भेडें थीं । यह पार धन महाभाग शशबिन्‍दु ने अपने अश्‍वमेघ नाम महायज्ञ में ब्राह्मणों के लिये दान किया था । उनके महायज्ञ अश्‍वमेघ में जितने काष्‍ठ के यूप थे, वे तो ज्‍यों के ज्‍यों थे ही, फिर उतने ही और सुवर्णमय यूप बनाये गये थे । उस यज्ञ में भक्ष्‍य–भोज्‍य अन्‍न-पान के पर्वतों के समान एक कोस ऊँचे ढेर लगे हुए थे । राजा का अश्‍वमेघ-यज्ञ पूरा हो जाने पर अन्‍न के तेरह पर्वत बच गये थे । शशबिन्‍दु के राज्‍यकाल में यह पृथ्‍वी हृष्‍ट-पुष्‍ट मनुष्‍यों से भरी थी । यहां कोई विघ्‍न-बाधा और रोग-व्‍याधि नहीं थी । शशबिन्‍दनु इस वसुधा का दीर्घकाल तक उपभोग करके अन्‍त में स्‍वर्गलोक को चले गये । श्‍वैत्‍य सृंजय ! वे चारों कल्‍याणकारी गुणों में तुमसे बढे-चढे थे और तुम्‍हारे पुत्रों से तो बहुत अधिक पुण्‍यात्‍मा थे । जब वे भी मर गये, तब दूसरों की तो बात ही क्‍या है ? अत: तुम यज्ञ और दान-दक्षिणा से रहित अपने पुत्र के लिये शोक न करो । ऐसा नारदजी ने कहा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्‍यान विषयक पैंसठ वां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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