महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 43-62

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दशम (10) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 43-62 का हिन्दी अनुवाद

जिसने अकेले ही चेदिदेश से आकर पाण्‍डव पक्षका आश्रय लिया है, उस धृष्‍टकेतु को द्रोण के पास आने से किसने रोका ? जिस वीर ने अपरान्‍त पर्वत के द्वारदेशमें स्थित दुर्जय राजकुमार का वध किया, उस केतुमान् को द्रोणाचार्य के पास आनेसे किसने रोका ? जो पुरूषसिंह स्‍त्री और पुरूष दोनो शरीरों के गुण अवगुण को अपने अनुभव द्वारा जानती है, युद्धस्‍थल में जिसका मन कभी म्‍लान (उत्‍साह शून्‍य) नहीं होता, जो समरागण में महात्‍मा भीष्‍म की मृत्‍युमें हेतु बन चुका है, उस द्रुपदपुत्र शिखण्‍डी को द्रोणाचार्य के सम्‍मुख आने से किन वीरोंने रोका था ? ।।४५-४६।। जिस वीरमें अर्जुन से भी अधिक मात्रामें समस्‍त गुण मौजूद हैं, जिसमें अस्‍त्र, सत्‍य तथा ब्रह्राचर्य सदा प्रतिष्ठित हैं, जो पराक्रम में भगवान श्रीकृष्‍ण, बल में अर्जुन, तेजमें सूर्य और बुद्धिमें बृहस्‍पतिके समान है, वह महामना अभिमन्‍यु जब मॅुह फैलाये हुए काल के समान द्रोणाचार्य के सम्‍मुख जा रहा था, उस समय किन शूरवीरों ने उसे रोका था ? । तरूण अवस्‍था और तरूण बुद्धिवाले शत्रुवीरों के हन्‍ता सुभद्राकुमार ने जब द्रोणाचार्य पर धावा किया था, उस समय तुम लोगों का मन कैसा हो रहा था ? पुरूषसिंह द्रौपदीकुमार समुद्र की ओर जानेवाली नदियों की भॉति जब द्रोणाचार्य पर धावा कर रहे थे, उस समय युद्ध में किन शूरवीरों ने उनको रोका था ? ।।५१।। इन द्रौपदीकुमारों ने बारह वर्षो तक खेल-कूद छोड़कर अस्‍त्रोंकी शिक्षा पाने के लिये उत्‍तम ब्रह्राचर्य व्रत का पालन करते हुए भीष्‍मके समीप निवास किया था । क्षत्रंजय, क्षत्रदेव तथा दूसरों को मान देनेवाले क्षत्रवर्मा ये धृष्‍टधुम्न के तीन वीर पुत्र हैं । उन्‍हें द्रोणके पास आने से किन वीरोंने रोका था ? । जिन्‍हें युद्धके मैदान में वृष्णिवंशियोंने सौ वीरोंसे भी अधिक माना है, उन महाधनुर्धर चेकितान को द्रोणके पास आने से किसने रोका ? ।।५४।। वृद्धक्षेत्र के पुत्र उदारचित अनाधृष्टि ने युद्धस्‍थलमें कलिंग राज की कन्‍या का अपहरण किया था । उन्‍हें द्रोणके पास आने से किसने रोका ? । केकय देश के सत्‍यपराक्रमी, धर्मात्‍मा पॉच वीर राजकुमार लाल रंग के कवच, आयुध और ध्‍वज धारण करने वाले हैं तथा उनके शरीर की कान्ति भी इन्‍द्रगोप के समान लाल रंग की है; वे पाण्‍डवों की मौसी के बेटे हैं । वे जब पाण्‍डवों की विजय के लिये द्रोणाचार्य को मारने के लिये उनपर चढ़ आये, उस समय किन वीरों ने उन्‍हें रोका था ? ।।५६-५७।। वारणावत नगर में सब राजालोग मार डालने की इच्‍छा से क्रोध में भरकर छ: महीनों तक युद्ध करते रहने पर भी योद्धाओं में श्रेष्‍ठ जिस वीर को परास्‍त न कर सके, धनुर्धरों मे उत्‍तम, शौर्यसम्‍पन्‍न, सत्‍यप्रतिज्ञ, महाबली, उस पुरूषसिंह युयुत्‍सुको द्रोणाचार्य के पास आने से किसने रोका ? । जिसने काशीपुरीमें काशिराज के महारथी पुत्र को, जो स्त्रियों के प्रति आसक्‍त था, समरभूमि में भल नामक बाण द्वारा रथ से मार गिराया; जो कुन्‍तीकुमारों की गुप्‍त मन्‍त्रणा को सुरक्षित रखनेवाला तथा दुर्योधन का अनर्थ करने के लिये उघत रहने वाला है तथा जिसकी उत्‍पति द्रोणाचार्य के वधके लिये हुई है; वह महाधनुर्धर धृष्‍टधुम्न जब रणक्षेत्र में योद्धाओं को अपने बाणों की अग्नि से जलाता और सब ओर से सारी सेनाको विदीर्ण करता हुआ द्रोणाचार्य के सम्‍मुख आ रहा था, उस समय किन शूरवीरों ने उसे रोका था ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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