महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 111 श्लोक 38-51
एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
बुद्धिमानों में श्रेष्ठ महाराज ! अपनी बुद्धि से इस विषय में बहुत सोच-विचार करके आपको जो परम मंगलकारक कृत्य जान पड़े, उसके लिये मुझे आज्ञा दें’। युधिष्ठिर बोले-महाबाह माधव! तुम जैसा कहने हो्, वही ठीक हैं। आर्य ! श्वेतवाहन द्रोणाचार्य की ओर से मेरा हदय शुद्ध (निश्निन्त)नहीं हो रहा है । मैं अपनी रक्षा के लिये महान् प्रयत्न करुगां।तुम मेरी आज्ञा से वही आओं, जहां अर्जुन गया हैं।मुझे युद्ध में अपनी रक्षा करनी चाहिये या अर्जन के पास तुम्हें भेजना चाहिये। इन बातों पर तुम स्वयं ही अपनी बुद्धि से विचार करके वहां जाना पसंद करो।। अत: जहां अर्जुन गया हैं, वहांजाने के लिये तुम तैयार हो जाओ। महाबली भीमसेन मेरी भी रक्षा कर लेंगे। तात ! भाइयों सहित घृष्टद्युम्न, महाबली भूपालगण तथा द्रोपदी के पांचों पुत्र मेरी रक्षा कर लेंगे; इसमें संशय नहीं है। तात ! पांच भाई केकय-राजकुमार, राक्षस घटोत्कच, विराट, द्रुपद, महारथी शिखण्डी, धृष्टकेतु, बलवान् मामा कुन्तिभोज(पुरुजित्), नकुल, सहदेव, पाञ्जाल तथा संजय-वीरगण-ये सभी सावधान होकर नि:संदेह मेरी रक्षा करेंगे। सेनासहित द्रोणाचार्य तथा कृतवर्मा-ये युद्धस्थल में मेरे हुए द्रोणाचार्य को परा्क्रम करके रोक लेगा। ठीक वैसे ही, जैसेतट की भूमि समुन्द्र को आगे बढने से रोक देती हैं।। यह धृष्टद्युम्न, द्रोणाचार्य का नाश करने के लिये कवच, धनुष, बाण, खगऔरश्रेष्ठ आभूषणों के साथ अग्निसे प्रकट हुआहै।अत: शिनिनन्दन ! तुम निश्चित होकर जाओ ! मरे लिये संदेह मत करो।धृष्टद्युम्न रणक्षेत्र में कुपित हुए द्रोणाचार्य को सर्वथा रोक देगा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तगर्त जयद्रथ पर्व में युधिष्ठिर और सात्यकि का संवाद विषयक एक सौ ग्यारहवां अध्याय पूरा हुआ।।111।।
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