महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 53 श्लोक 21-46

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त्रिपच्चाशत्तम (53) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिपच्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-46 का हिन्दी अनुवाद

‘यदुपुगड़व। जगत् में इस भूतल पर मेरे सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो इस भयानक रथबन्धु (रथ की पकड़ अथवा रथों के घेरे) का सामना कर सके। ऐसा कहकर अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया। फिर भगवान् श्रीकृष्ण ने भी पृथ्वी और आकाश को गुंजाते हुए से पाच्चजन्य नामक शंख की ध्वीनि फैलायी। महाराज। उस शंखनाद को सुनकर संशप्तुकों की सेना कांप उठी और भयभीत होकर जोर-जोर से भागने लगी। नरेश्वर। तदनन्तसर शत्रुवीरों का संहार करने वाले पाण्डु -नन्दन अर्जुन ने बारंबार नाशास्त्रक का प्रयोग करके उन सबके पैर बांध लिये। राजन्। उन महात्माड पाण्डुपुत्र अर्जुन के द्वारा पैर बांध दिये जाने के कारण वे संशप्तंक योद्धा लोहे के बने हुए पुतलों के समान निशचेष्ट् हो गये। फिर पूर्वकाल में इन्द्र ने तारकासुर के वध के समय समरागण में जिस प्रकार दैत्यों। का वध किया था, उसी प्रकार पाण्डुेनन्द न अर्जुन ने निश्चे ष्टत हुए संशप्त‍क योद्धाओं का संहार आरम्भय किया। समरागड़ण में बाणों की मार पड़ने पर उन्होंने अर्जुन के उस उत्तम रथ को छोड़ दिया और उनके ऊपर अपने समस्तम अस्त्र -शस्त्रों को छोड़ने का प्रयास किया। नरेश्वर। उस समय पैर बंधे होने के कारण वे हिल भी न सके।
तब अर्जुन झुकी हुई गांठवाले बाणों द्वारा उनका वध करने लगे। रणभूमि में कुन्त कुमार अर्जुन ने जिन-जिन योद्धाओं को लक्ष्या करके पादबन्धास्त्र का प्रयोग किया, वे समस्तन योद्धा समरागड़ण नागों द्वारा जकड़ लिये गये थे। राजेन्द्र महारथी सुशर्मा ने अपनी सेना को नागों द्वारा बंधी हुई देख तुरंत ही गारुडास्त्रे प्रकट किया। फिर तो गरुड पक्षी प्रकट होकर उन नागों पर टूट पड़े और उन्हें खाने लगे। नरेश्वर। उन पक्षियों को प्रकट हुआ देख वे सारे नाग भाग चले। प्रजानाथ। जैसे सूर्यदेव मेघों की घटा से मुक्त होकर सारी प्रजा को ताप देते हुए प्रकाशित हो उठते हैं, उसी प्रकार पैरों के बन्धकन से छुटकारा पाकर वह सारी सेना बड़ी शोभा पाने लगी। आर्य। बन्धन मुक्त होने पर संशप्त्क योद्धा अर्जुन के रथ को लक्ष्य करके बाणों तथा शस्त्र-शस्त्रों को सब ओर से काटने लगे। तदनन्तषर शत्रुवीरों का संहार करने वाले इन्द्रपुत्र अर्जुन ने अपने बाणों की वर्षा से उनकी भारी अस्त्र -वृष्टि का निवारण करके उन योद्धाओं का संहार आरम्भर कर दिया।
राजन्। इसी समय सुशर्मा ने झुकी हुई गांठवाले बाण से अर्जुन की छाती में चोट पहुंचाकर अन्यक तीन बाणों द्वारा भी उन्हें घायल कर दिया। उन बाणों की गहरी चोट खाकर अर्जुन व्यभथित हो रथ के पिछले भाग में बैठ गये। फिर तो सब लोग जोर-जोर से चिल्लानकर कहने लगे कि ‘अर्जुन मारे गये। उस समय शंख बजने लगे, भेरियों की गम्भीसर ध्वगनि फैलने लगी तथा नाना प्रकार के वाद्यों ध्व नि के साथ ही योद्धाओं की सिंहगर्जना भी होने लगी। तदनन्तर भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, उन अमेय आत्म बल से सम्पीन्न शवेतवाहन अर्जुन ने होश में आकर बड़ी उतावली के साथ ऐन्द्रारस्त्रं का प्रयोग किया। मान्यतवर। उससे सम्पूर्ण दिशाओं में सहस्त्रों बाण प्रकट हो-होकर आपकी सेना का संहार करते दिखायी दिये। समरागण में शस्त्रों द्वारा सैकड़ों और हजारों घोड़े तथा रथ मारे जाने लगे। भारत। इस प्रकार जब सेना का संहार होने लगा, तब संशप्तऔकगणों और नारायणी सेना के ग्वालों को बड़ा भय हुआ। उस समय वहां कोई भी ऐसा पुरुष नहीं था, जो अर्जुन पर चोट कर सके। वहां सब वीरों के देखते-देखते आपकी सेना का वध होने लगा। सारी सेना स्वरयं निशचेष्ट हो गयी थी। उससे पराक्रम करते नहीं बनता था और उस अवस्था में वह मारी जा रही थी। मैंने यह सब अपनी आंखों देखा था। महाराज। पाण्डुस-पुत्र अर्जुन रणभूमि में वहां दस हजार योद्धाओं का संहार करके धूमरहित अग्रि के समान प्रकाशित हो रहे थे। भारत। उस समय संशप्ताकों के चौदह हजार पैदल, दस हजार रथ और तीन हजार हाथी शेष रह गये थे। संशप्तकों ने पुन: यह निश्चय करके कि ‘मर जायंगे अथवा विजय प्राप्तब करेंगे, किंतु युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे’ अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया। प्रजानाथ। फिर तो वहां किरीटधारी बलवान् शूरवीर पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ आपके सैनिकों का बड़ा भारी युद्ध हुआ। उसमें कुन्तीशपुत्र अर्जुन ने उन शत्रुओं को जीतकर उनका उसी प्रकार संहार कर डाला, जैसे देवराज इन्द्रू ने असुरों का किया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलयुद्धविषयक तिरपनवां अध्या य पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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