महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 64 श्लोक 45-64

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चतुःषष्टि (64) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: चतुःषष्टि अध्याय: श्लोक 45-64 का हिन्दी अनुवाद

उस समय अभिमन्यु आदि महारथी भीम का इस प्रकार बाणों से आच्छादित हो जाना सहन न कर सके। वे अपने बाहुबल का आश्रय ले युद्ध में भगदत्त पर सब और से बाणों की वर्षा करते हुए उन्‍हें रोकने लगे। उन्‍होंने अपने बाणों की वृष्टि से भगदत्त के हाथी को भी सब और से छेद डाला । राजन् ! जो नाना प्रकार के चिन्ह्र धारण करने वाले और अत्यन्त तेजस्वी थे, उन समस्त महारथियों द्वारा की हुई अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा से बहुत ही घायल होकर प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्त का वह हाथी मस्तक पर रक्त से रंजित हो रणक्षेत्र में देखने ही योग्य हो रहा था, मानो सूर्य की अरूण किरणो से व्याप्त रॅगा महामेघ हो । भगदत्त से प्रेरित होकर काल के भेजे हुए यमराज की भांति वह मदस्त्रावी गजराज दूने वेग का आश्रय ले अपने पैरों की धमक से इस पृथ्वी को कॅपाता उन सब की और दौडा । उसके उस विशाल रूप को देखकर सब महारथी अपने लिये असहा्र मानते हुए हतोत्साह हो गये ।महाराज! तत्पश्चात् राजा भगवत्त ने कुपित होकर झुकी हुई गांठवाले बाण से भीमसेन की छाती पर गहरी चोट पहुंचायी ।राजा भगदत्त से इस प्रकार अत्यन्त घायल किये गये महाधनुर्धर महारथी भीमसेन ने मूर्छा से व्याप्त हो ध्वजका डंडा थाम लिया । राजा भगदत्त से इस प्रकार अत्यन्त घायल किये गये महाधनुर्धर महारथी भीमसेनने मूर्छो से व्याप्त हो ध्वज का डंडा थाम लिया ।
उन सब महारथियो को भयभीत और भीमसेन को मूर्छित हुआ देख प्रतापी भगदत्त ने बडे जोर से सिंहनाद किया ।राजन् ! तदनन्तर भीम को वैसी अवस्था में देखकर भयंकर राक्षस घटोत्कच अत्यन्त कुपित हो वही अदृश्य हो गया । फिर उसने कायरों का भय बढाने वाली अत्यन्त दारूण माया प्रकट की। वह आधे निषेध में ही भयंकर रूप धारण करके दृष्टिगोचर हुआ। घटोत्कच अपना ही माया द्वारा निर्मित कैलासपर्वत के समान श्वेत वर्णवाले ऐरावत हाथी पर बैठकर वज्रधारी इन्द्र के समान वहां आया था । उनके पीछे अंजन, वामन और उत्तम कांति से युक्त महापध- ये तीन दिग्गज और थे, जिन पर उनके साथी राक्षस सवार थे ।राजन् वे सभी विशालकाय दिग्गज तीन स्थानो से बहुत मद बहा रहे थे और तेज, वीर्य एवं बल से महाबली और महापराक्रमी थे ।शत्रुओं को संताप देने वाले घटोत्कच ने अपने हाथी को गजारूढ राजा भगदत्त की और बढाया। वह उन्‍हें हाथी सहित मार डालना चाहता था ।महाबली राक्षसों द्वारा प्रेरित अन्यान्य दिग्गज भी जिनके चार चार दांत थे, अत्यन्त कुपित हो चारों दिशाओं में टूट पडे़।। वे सब-के-सब भगदत्त के हाथी को अपने दांतों से पीड़ा देने लगे। वह बाणों से बहुत घायल हो चुका था; अतः इन हाथियों द्वारा पीड़ित होने पर वेदना से व्याकुल हो बडे जोर-जोर से चीत्कार करने लगा । उसकी आवाज इन्द्र के वज्र के गडगडाहट के समान जान पड़ती थी ।भयंकर आवाज के साथ अत्यन्त घोर शब्द करने वाले हाथी ने उस चीत्कार को सुनकर भीष्म ने द्रोणाचार्य तथा राजा दुर्याधन से कहा- ।ये महाधनुर्धर राजा भगदत्त युद्ध में दुरात्मा घटोत्कच के साथ जूझ रहे है और संकट में पड़ गये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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