महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 47 श्लोक 38-49
सप्तचत्वारिंश(47) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
जो इस विश्व के विधाता और चराचर जगत् के स्वामी हैं, जिन्हें संसार का साक्षी और अविनाशी परम पद कहते हैं, उन परमात्मा की मैं शरण ग्रहण करता हूँ।। जो सुवर्ण के समान कान्तिमान्, अदिति के गर्भ से उत्पन्न, दैत्यों के नाशक तथा एक होकर भी बारह रूपों में प्रकट हुए हैं, उन सूर्यस्वरूप परमेश्वर को नमसकार है। जो अपनी अमृतमयी कलाओं से शुक्लपक्ष में देवताओं को और कृष्णपक्ष में पितरों को तृत्प करते हैं तथा जो सम्पूर्ण द्विजों के राजा हैं, उन सोमस्वरूप परमात्मा को नमस्कार है। अग्नि जिनके मुख में है, वे देवता सम्पूर्ण जगत् को धारण करते हैं, जो हविष्य के सबसे पहले भोक्ता हैं, उन अग्निहोत्र स्वरूप परमेश्वर को नमस्कार है।। जो अज्ञानमय महान् अन्धकार सेपरे और स्सनालोक से अत्यन्त प्रकाशित होने वाले आत्मा हैं, जिन्हें जान लेने पर मनुष्य मृत्यु से सदा के लिये छूट जाता है, उन ज्ञेयरूप परमेश्वर नमस्कार है। उक्थ नामक बृहत् यज्ञ के समय, अग्न्याधानकाल में तथा महायाग में ब्राह्मणवृन्द जिनका ब्रह्म के रूप में स्तवन करते हैं, उन वेदस्वरूप भगवान् को नमस्कार है। ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद जिसके आश्रय हैं, पाँच प्रकार का हविष्य जिसका स्वरूप है, गायत्री आदि सात छन्द ही जिसके सात तन्तु हैं, उस यज्ञ के रूप में प्रकट हुए परमात्मा को प्रणाम है। चार1, चार2, दो3, पाँच4, दो5 - इन सत्रह अक्षरों वाले मन्त्रों से जिन्हें हविष्य अर्पण किया जाता है, उन होम स्वरूप परमेश्वर को नमस्कार है।
जो ‘यजुः’ नाम धारण करने वाले वेदरूपी पुरुष हैं, गायत्री आदि छन्द जिनके हाथ-पैर आदि अवयव हैं, यज्ञ ही जिनका मस्तक है तथा ‘रथन्तर’ और ‘बृहत्’ नामक साम ही जिनकी सान्त्वनाभरी वाणी है, उन स्तोत्ररूपी भगवान् को प्रणाम है। जो ऋषि हजार वर्षों में पूर्ण होने वाले प्रजापतियों के यज्ञ में सोने की पाँख वाले पक्षी के रूप में प्रकट हुए थे, उन हंसरूपधारी परमेश्वर को प्रणाम है। पदों के समूह जिनके अंग हैं, सन्धि जिनके शरीर की जोड़ है, स्वर और व्यंजन जिनके लिये आभूषण का काम देते हैं तथा जिन्हें दिव्य अक्षर कहते हैं, उन परमेश्वर को वाणी के रूप में नमस्कार है। जिन्होंने तीनों लोकों का हित करने के लिये यज्ञमय वराह का स्वरूप धारण करके इस पृथ्वी को रसातल से ऊपर उठाया था, उन वीर्यस्वरूप भगवान् को प्रणाम है।। जो अपनी योगमाया का आश्रय लेकर शेषनाग के हजार फनों से बने हुए पलंग पर शयन करते हैं, उन निद्रास्वरूप परमात्मा को नमस्कार है।
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