ईवाँ तृतीय
ईवाँ तृतीय
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 38 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अवनींद्रकुमार विद्यालंकार |
ईवाँ तृतीय मास्कोबी का ग्रांड ड्यूक। जन्म 22 जनवरी, 1440; मृत्यु २६ अक्टूबर, 1505। पिता वासिली द्वितीय के जीवनकाल में ही सहशासक घोषित किया गया, जिससे अन्य राजकुमार उसका स्थान न छीन सकें। रूस के इतिहास में यह अत्यधिक प्रसिद्ध है और ईवाँ महान् के नाम से विख्यात है। इसने मास्को के राज्य का विस्तार कर उसे पहले से तीन गुना कर दिया।
1471-78 की दो लड़ाइयों में इसने नोवगोरोदें को जीता। हैप्सवर्ग पवित्र रोमन सम्राट् द्वारा दी 'राजा' की उपाधि अस्वीकृत करते हुए इसने कहा, अपने देश में हम अपने पूर्वजों के समय से प्रभुत्वसंपन्न रहे हैं और ईश्वर से हमें प्रभुत्वशक्ति प्राप्त हुई है। धमकी या युद्ध द्वारा उसने यारस्लावो (1463), रोस्तोव (1474) और त्रंवेर (1485) हस्तगत कर लिए। 1480 में तातार को खिराज देना बंद कर तातारों की दासता का जुआ उसने उतार फेंका।
रूसी जाति का प्रथम सरदार तो यह पहले से ही था, बीजांतीनी साम्राज्य के अंमिम शासक के भाई थामस पालो ओलोगस की कन्या सोफिया (जोए) के साथ दूसरा विवाह कर मास्को की प्रतिष्ठा और उसकी अधिसत्ता में उसने वृद्धि की और बीज़ांतियम के द्विशीर्ष गृद्ध (ईगल) को मास्को के राजचिह्न में स्थान देकर ग्रीक ईसाई धर्म का संरक्षक होने का अपना दावा स्थापि किया। इस विवाह के फलस्वरूप मास्को में पूर्वी दरबारी ढंग और शानशौकत को स्थान मिला और राजा प्रजा से दूर हो गया। वह अपने को 'ओतोक्रात्' (स्वेच्छाचारी) कहता था और विदेशी पत्रव्यवहार में अपने को 'जार' लिखता था।
रूस का प्रवेश बाल्टिक सागर में हो जाए, इस दृष्टि से उसने लिथुआनिया लेने का प्रयत्न किया, किंतु स्वीडन और पोलैंड के कारण उसका यह प्रयत्न सफल नहीं हुआ। दक्षिण में उसने अपना राज्य वोल्गा के मध्य तक फैलाया और तातारों को हराया। सरदारों की सत्ता घटाकर ईवाँ रूसी विधि (कानून) का संहिताकरण किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ