अंगिरस

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लेख सूचना
अंगिरस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 13
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कैलास चंद्र शर्मा

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अंगिरस या 'अंगिरा' वज्रकुलोत्पन्न एक प्रसिद्ध वैदिक ऋषि हैं, जिनका उल्लेख मन, ययाति, दध्यच्‌, प्रियमेघ, कण्व, अत्रि, भृगु आदि के साथ मिलता है। इनकी गणना सप्तर्षियों तथा दस प्रजापतियों में भी की जाती है। कालांतर में अंगिरा नाम के एक प्रख्यात ज्योतिर्विद् तथा स्मृतिकार भी हो गए हैं। नक्षत्रों में बृहस्पति यही है और देवताओं के पुरोहित भी यही है। लगता है, इस नाम के पीछे कई व्यक्तित्व छिपे हुए हैं।

उत्पत्ति

अंगिरस शब्द का निर्माण उसी धातु से हुआ है, जिससे अग्नि का और एक मत से इनकी उत्पत्ति भी आग्नेयी (अग्नि की कन्या) के गर्भ से मानी जाती है। मतांतर से इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से मानी जाती है। श्रद्धा, शिवा, सुरूपा मारीची एवं दक्ष की स्मृति, स्वधा तथा सती नामक कन्याएँ इसकी पत्नियाँ मानी जाती हैं, परंतु ब्रह्मांड एवं वायु पुराणों में सुरूपा मारीची, स्वराट् कार्दमी और पथ्या मानवी को अथर्वन की पत्नियाँ कहा गया है। अथर्ववेद के प्रारंभकर्ता होने के कारण इनकी अथर्वा भी कहते हैं।

जीवनसार

अथर्ववेद का प्राचीन नाम अथर्वानिरस है। इनके पुत्रों के नाम हविष्यत्‌, उतथ्य, बृहस्पति, बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योति, बृहद्ब्रह्मन्‌ बृहत्मंत्र; बृहद्भास, मार्कंडेय और संवर्त बताए गए हैं और भानुमती, रागा (राका), सिनी वाली, अर्चिष्मती (हविष्मती), महिष्मती, महामती तथा एकानेका (कुहू) इनकी सात कन्याओं के भी उल्लेख मिलते हैं। नीलकंठ के मत से उपर्युक्त बृहत्‌कीत्यादि सब बृहस्पति के विशेषण हैं। आत्मा, आयु, ऋतु, गविष्ठ, दक्ष, दमन, प्राण, सद, सत्य तथा हविष्मान्‌ इत्यादि को अंगिरस के देवपुत्रों की संज्ञा से अभिहित किया गया है। भागवत के अनुसार रथीतर नामक किसी निस्संतान क्षत्रिय को पत्नी से इन्होंने ब्राह्मणोपम पुत्र उत्पन्न किए थे। याज्ञवल्क्य स्मृति में अंगिरसकृत धर्मशास्त्र का भी उल्लेख है। अंगिरा की बनाई आंगिरसी श्रुति का महाभारत में उल्लेख हुआ है[१]। ऋग्वेद के अनेक सूक्तों के ऋषि अंगिरा हैं।

  • अंगिरस नाम के एक ऋषि और भी थे जिन्हें घोर आंगिरस कहा जाता है और जो कृष्ण के गुरु भी कहे जाते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (महाभारत 8, 69-85)