अंजन

अद्‌भुत भारत की खोज
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अंजन नेत्रों की रोगों से रक्षा अथवा उन्हें सुंदर श्यामल करने के लिए एक चूर्ण द्रव्य है।

  • यह नारियों के सोलह सिंगारों में से एक है।
  • प्रोषितपतिका विरहणियों के लिए इसका उपयोग प्राय: वर्जित माना गना है।
  • 'मेघदूत' में कालिदास ने विरहिणी यक्षी और अन्य प्रोषितपतिकाओं को अंजन से शून्य नेत्रवाली कहा है।
  • अंजन को एक विशेष प्रकार की शलाका या सलाई से आँखों में लगाते हैं।
  • इसका उपयोग आज भी प्राचीन काल की ही भाँति भारत की नारियों में प्रचलित है।
  • पंजाब, पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों, अफ़गानिस्तान तथा बिलोचिस्तान में मर्द भी अंजन का प्रयोग करते हैं।
  • प्राचीन वेदिका स्तंभों (रेलिंगों) पर बनी नारी मूर्तियाँ अनेक बार शलाका से नेत्र में अंजन लगाते हुए उभारी गई हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ