अकबर, मुहम्मद
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अकबर, मुहम्मद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 64,65 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. कैलास चंद्र शर्मा |
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अकबर, मुहम्मद' (1653-1704 ई.) औरंगजेब का पुत्र था और अकबर द्वितीय के नाम से इतिहास में जाना जाता है। सन् 1678 में पश्चिमोत्तर भारत के अंतर्गत जमरूद नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा यशवंत सिंह की मृत्यु हो गई। औरंगजेब ने तत्काल महाराजा के राज्य पर कब्जा किया और उनके बालक पुत्र अजीत सिंह को उसकी माँ के साथ शाही हरम में कैद कर लिया। स्वयं औरंगजेब अजमेर पहुँचा और जिजिया लागू कर दिया। इसी बीच दुर्गादास राठौर लड़-भिड़कर अजीत सिंह और महारानी को दिल्ली से निकाल लाया। उधर अपनी संशयालु प्रकृति के कारण औरंगजेब ने अकबर को चित्तौड़ की सूबेदारी से हटाकर मारवाड़ भेज दिया। इससे क्षुब्ध अकबर ने महाराणा जयसिंह और दुर्गादास से मिलकर स्वयं को मुगल सम्राट घोषित किया और मुगल साम्राज्य पर कब्जा करने के इरादे से अजमेर की तरफ बढ़ा। औरंगजेब तत्काल इस स्थिति में नहीं था कि वह अकबर की 70 हजार सेना से टक्कर ले सकता। अत उसने धोखाधड़ी भरा एक पत्र अकबर के नाम लिखा और योजनानुसार उसे राजपूतों के हाथों पड़ जाने दिया। पत्र पाकर राजपूत शंकित हो उठे और उन्होंने अकबर का साथ छोड़ दिया। विवश अकबर को युद्धविरत होना पड़ा। कुछ समय उपरांत पत्र का रहस्य खुल जाने पर दुर्गादास स्वयं अकबर से मिला और मई, 1681 में सुरक्षित उसे दक्षिण भारत पहुँचा दिया, जहाँ वह एक वर्ष से अधिक शिवाजी के पुत्र संभाजी (शंभुजी) के दरबार में रहा। पश्चात् अकबर फारस चला गया। वहाँ सन् 1704 में उसकी मृत्यु हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ