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१३:४५, ११ जुलाई २०१३ के समय का अवतरण

इसबगोल एक छोटा पौधा है, जिसका स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। अरबी और फ़ारसी विद्वानों ने इस पौधे की बड़ी प्रशंसा की है। मानव में होने वाले कई प्रकार के रोगों में इसबगोल पौधे का इस्तेमाल बहुत ही लाभकारी माना गया है। इस पौधे का उत्पत्ति स्थान मिस्र तथा ईरान है। लेकिन अब यह पौधा मालवा, पंजाब और सिन्ध में भी लगाया जाने लगा है।

अर्थ

संस्कृत में इसबगोल के पौधे को 'स्निग्धजीरक' तथा लैटिन में 'प्लैटेगो ओवेटा' कहते हैं। 'इसबगोल' नाम एक फारसी शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है- 'घोड़े का कान', क्योंकि इसकी पत्तियाँ कुछ उसी आकृति की होती हैं।

परिचय

इसबगोल के पौधे एक से दो हाथ तक ऊँचे होते हैं, जिनमें लंबे किंतु कम चौड़े, धान के पत्तों के समान, पत्ते लगते हैं। डालियाँ पतली होती हैं और इनके सिरों पर गेहूँ के समान बालियाँ लगती हैं, जिनमें बीज होते हैं। इस पौधे की एक अन्य जाति भी होती है, जिसे लैटिन में 'प्लैंटेगो ऐंप्लेक्सि कैनलिस' कहते हैं। पहले प्रकार के पौधे में जो बीज लगते हैं, उन पर श्वेत झिल्ली होती है, जिससे वे 'सफेद इसबगोल' कहलाते हैं। दूसरे प्रकार के पौधे के बीज भूरे होते हैं। श्वेत बीज औषधि के विचार से अधिक अच्छे समझे जाते हैं। एक अन्य जाति के बीज काले होते हैं, किन्तु उनका व्यवहार औषध में नहीं होता।

उत्पत्ति स्थान

इस पौधे का उत्पत्ति स्थान मिस्र तथा ईरान है। अब यह पंजाब, मालवा और सिंध में भी लगाया जाने लगा है। विदेशी होने के कारण प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं मिलता। आधुनिक ग्रंथों में ये बीज मृदु, पौष्टिक, कसैले, लुआबदार, आँतों को सिकोड़ने वाले तथा कफ, पित्त और अतिसार में उपयोगी कहे गए हैं।

लाभ

यूनानी पद्धति के अरबी और फ़ारसी विद्वानों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है और जीर्ण आमरक्तातिसार (अमीबिक डिसेंट्री), पुरानी कोष्ठबद्धता इत्यादि में इसे उपयोगी कहा है। 'इसबगोल की भूसी' बाजार में अलग से मिलती है। सोने के पहले आधा या एक तोला भूसी फाँककर पानी पीने पर सबेरे पेट स्वच्छ हो जाता है। यह रेचक (पतले दस्त लाने वाला) नहीं होता, बल्कि आँतों को स्निग्ध और लसीला बनाकर उनमें से बद्ध मल को सरलता से बाहर कर देता है। इस प्रकार कोष्ठबद्धता दूर होने से यह बवासीर में भी लाभ पहुँचाता है। रासायनिक विश्लेषण से बीजों में ऐसा अनुमान किया जाता है कि इससे उत्पन्न होने वाला लुआब और न पचने वाली भूसी, दोनों, पेट में एकत्रित मल को अपने साथ बाहर निकाल लाते हैं।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवान दास वर्मा, हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2| पृष्ठ संख्या- 08