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*कुतबन हिंदी के सूफी कवि जिन्होंने मौलाना दाऊ द के चंदायन की परंपरा में सन्‌ 1503 ई. में मिरगावती नामक प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की, जो किसी पूर्वप्रचलित कथा के आधार पर लिखा गया है। इसमें दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल छंदों का प्रयोग किया गया है किंतु इसकी शैली प्राकृत काव्यों का अनुकरण पर कड़वक वाली है।
 
*कुतबन हिंदी के सूफी कवि जिन्होंने मौलाना दाऊ द के चंदायन की परंपरा में सन्‌ 1503 ई. में मिरगावती नामक प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की, जो किसी पूर्वप्रचलित कथा के आधार पर लिखा गया है। इसमें दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल छंदों का प्रयोग किया गया है किंतु इसकी शैली प्राकृत काव्यों का अनुकरण पर कड़वक वाली है।
  

१३:०६, १३ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण

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  • कुतबन हिंदी के सूफी कवि जिन्होंने मौलाना दाऊ द के चंदायन की परंपरा में सन्‌ 1503 ई. में मिरगावती नामक प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की, जो किसी पूर्वप्रचलित कथा के आधार पर लिखा गया है। इसमें दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल छंदों का प्रयोग किया गया है किंतु इसकी शैली प्राकृत काव्यों का अनुकरण पर कड़वक वाली है।
  • कुतबन ने अपने काव्य में किस प्रकार का वैयक्तिक परिचय नहीं दिया है। उससे इतना ही ज्ञात होता है कि हुसेन शाह शाहे-वक्त थे और सुहरवर्दी संप्रदाय के शेख बुढ़न उनके गुरु । समझा जाता है कि हुसेन शाह से उनका तात्पर्य जौनपुर के शर्की सुलतान से है। शेख बुढ़न के संबंध में अनुमान किया जाता है कि वे ही होंगे जो जौनपुर के निकट जफराबाद कस्बे में रहते थे, जिनका वास्तविक नाम शम्सुद्दीन था, और जो सदरु द्दीन चिरागे हिंद के पौत्र थे। इन तथ्यों के आधार पर कुतबन को जौनपुर के आस-पास का निवासी अनुमान किया जा सकता है। वही उनका कार्यक्षेत्र भी रहा होगा।
  • काशी में हरतीरथ मुहल्ले की चौमुहानी से पूरब की ओर लगभग एक फलाँग की दूरी पर कुतबन शहीद नामक एक मुहल्ला है। वहीं एक मजार है जो कुतबन की मजार के नाम से प्रसिद्ध है। कदाचित्‌ वह इन्हीं कुतबन की कब्र है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ