"कुस्तुंतुनिया" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Adding category Category:ऐतिहासिक नगर (को हटा दिया गया हैं।))
छो (श्रेणी:यूरेशिया; Adding category Category:विदेशी नगर (को हटा दिया गया हैं।))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति २३: पंक्ति २३:
 
}}
 
}}
  
'''कुस्तुंतुनिया''' (कांस्टैंटिनोपुल) (४१० ०’ उ. अ. द. और २८० ५८’ पू. दे.)। तुर्की देश का प्रसिद्ध नगर। यह बासफोरस जलसंयोजक और मारमरा सागर के संगम पर स्थित है।  
+
'''कुस्तुंतुनिया''' [Constantinople (कांस्टैंटिनोपल)] (४१० ०’ उ. अ. द. और २८० ५८’ पू. दे.)। तुर्की देश का प्रसिद्ध नगर। यह बासफोरस जलसंयोजक और मारमरा सागर के संगम पर स्थित है।  
  
 
इस नगर की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन महान्‌ ने ३२८ ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। नवीम रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ ११ मई, ३३० ई. को हुआ था। यह नगर भी रोम के समान ही सात पहाड़ियों के बीच एक त्रिभुजाकार पहाड़ी प्रायद्वीप पर स्थित है और पश्चिमी भाग को छोड़कर लगभग सब ओर जल से घिरा है। रूम सागर और काला सागर के मध्य स्थित बृहत्‌ जलमार्ग पर होने के कारण इस नगर की स्थिति बड़ी महत्वपूर्ण रही है। प्रकृति ने दुर्ग का रूप देकर उसे व्यापारिक, राजनीतिक और युद्धकालिक दृष्टिकोण से एक महान्‌ साम्राज्य की सुदृढ़ और शक्तिशाली राजधानी के अनुरूप बनने में पूर्ण योग दिया था और निरंतर सोलह शताब्दियों तक एक महान्‌ साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसकी ख्याति बनी हुई थी।
 
इस नगर की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन महान्‌ ने ३२८ ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। नवीम रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ ११ मई, ३३० ई. को हुआ था। यह नगर भी रोम के समान ही सात पहाड़ियों के बीच एक त्रिभुजाकार पहाड़ी प्रायद्वीप पर स्थित है और पश्चिमी भाग को छोड़कर लगभग सब ओर जल से घिरा है। रूम सागर और काला सागर के मध्य स्थित बृहत्‌ जलमार्ग पर होने के कारण इस नगर की स्थिति बड़ी महत्वपूर्ण रही है। प्रकृति ने दुर्ग का रूप देकर उसे व्यापारिक, राजनीतिक और युद्धकालिक दृष्टिकोण से एक महान्‌ साम्राज्य की सुदृढ़ और शक्तिशाली राजधानी के अनुरूप बनने में पूर्ण योग दिया था और निरंतर सोलह शताब्दियों तक एक महान्‌ साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसकी ख्याति बनी हुई थी।
पंक्ति ३६: पंक्ति ३६:
  
 
[[Category:नया पन्ना]]
 
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:यूरेशिया]]
 
 
[[Category:ऐतिहासिक नगर]]
 
[[Category:ऐतिहासिक नगर]]
 +
[[Category:विदेशी नगर]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१२:३६, १८ दिसम्बर २०११ के समय का अवतरण

लेख सूचना
कुस्तुंतुनिया
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 83
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक राधिकानारायण माथुर

कुस्तुंतुनिया [Constantinople (कांस्टैंटिनोपल)] (४१० ०’ उ. अ. द. और २८० ५८’ पू. दे.)। तुर्की देश का प्रसिद्ध नगर। यह बासफोरस जलसंयोजक और मारमरा सागर के संगम पर स्थित है।

इस नगर की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन महान्‌ ने ३२८ ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। नवीम रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ ११ मई, ३३० ई. को हुआ था। यह नगर भी रोम के समान ही सात पहाड़ियों के बीच एक त्रिभुजाकार पहाड़ी प्रायद्वीप पर स्थित है और पश्चिमी भाग को छोड़कर लगभग सब ओर जल से घिरा है। रूम सागर और काला सागर के मध्य स्थित बृहत्‌ जलमार्ग पर होने के कारण इस नगर की स्थिति बड़ी महत्वपूर्ण रही है। प्रकृति ने दुर्ग का रूप देकर उसे व्यापारिक, राजनीतिक और युद्धकालिक दृष्टिकोण से एक महान्‌ साम्राज्य की सुदृढ़ और शक्तिशाली राजधानी के अनुरूप बनने में पूर्ण योग दिया था और निरंतर सोलह शताब्दियों तक एक महान्‌ साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसकी ख्याति बनी हुई थी।

अब यह नगर प्रशासन की दृष्टि से तीन भागों में विभक्त हो गया है इस्तांबुल, पेरा-गलाटा और स्कूतारी। इसमें से प्रथम दो यूरोपीय भाग में स्थित हैं जिन्हें बासफोरस की ५०० गज चौड़ी गोल्डेन हॉर्न नामक सँकरी शाखा पृथक्‌ करती है। स्कूतारी तुर्की के एशियाई भाग पर बासफोरस के पूर्वी तट पर स्थित है। यहाँ के उद्योगों में चमड़ा, शस्त्र, इत्र और सोनाचाँदी का काम महत्वपूर्ण है। समुद्री व्यापार की दृष्टि से यह अत्युत्तम बंदरगाह माना जाता है। गोल्डेन हॉर्न की गहराई बड़े जहाजों के आवागमन के लिए भी उपयुक्त है और यह आँधी, तूफान इत्यादि से पूर्णतया सुरक्षित है। आयात की जानेवाली वस्तुएँ मक्का, लोहा, लकड़ी, सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े, घड़ियाँ, कहवा, चीनी, मिर्च, मसाले इत्यादि हैं; और निर्यात की वस्तुओं में रेशम का सामान, दरियाँ, चमड़ा, ऊन आदि मुख्य हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ