https://bharatkhoj.org/w/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8&feed=atom&action=historyकृत्तिवास - अवतरण इतिहास2024-03-29T08:22:33Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.35.6https://bharatkhoj.org/w/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8&diff=331786&oldid=prevBharatkhoj ९ अप्रैल २०१४ को ११:०७ बजे2014-04-09T11:07:13Z<p></p>
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<td colspan="2" style="background-color: #fff; color: #202122; text-align: center;">११:०७, ९ अप्रैल २०१४ का अवतरण</td>
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<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति १:</td></tr>
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<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3</div></td></tr>
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<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{लेख सूचना<br />
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3<br />
|पृष्ठ संख्या=89-90<br />
|भाषा= हिन्दी देवनागरी<br />
|लेखक =<br />
|संपादक=सुधाकर पांडेय<br />
|आलोचक=<br />
|अनुवादक=<br />
|प्रकाशक=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी<br />
|मुद्रक=नागरी मुद्रण वाराणसी<br />
|संस्करण=सन् 1976 ईसवी<br />
|स्रोत=<br />
|उपलब्ध=भारतडिस्कवरी पुस्तकालय<br />
|कॉपीराइट सूचना=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी<br />
|टिप्पणी=<br />
|शीर्षक 1=लेख सम्पादक<br />
|पाठ 1=श्रीमति रत्नकुमारी<br />
|शीर्षक 2=<br />
|पाठ 2=<br />
|अन्य जानकारी=<br />
|बाहरी कड़ियाँ=<br />
|अद्यतन सूचना=<br />
}}<br />
कृत्तिवास अथवा कृत्तिवास ओझा बंगाल के अत्यंत लोकप्रिय कवि जिन्होंने बंगला भाषा में बाल्मीकि रामायण का सर्वप्रथम पद्यानुवाद किया। उनका यह अनुवाद अविकल अनुवाद नहीं है। उन्होंने अपनी कल्पनाशक्ति एवं काव्यशक्ति द्वारा चरित्रों एवं घटनाओं का चित्रण कहीं-कहीं पर भिन्न रूप में किया है। इनके काव्य में पात्रों के भीतर कुछ अधिक कोमलता दिखाई गई है। करुण रस की भी अधिक गहरी अनुभूति है। बाल्मीकि के राम क्षत्रिय वीर हैं; जो वीरत्व, शौर्य एवं बल में अद्वितीय हैं, परंतु कृत्तिवास ने राम की कुसुमकोमल मूर्ति ही देख पाई है। उनके राम का तन नवनी जिनिया अति सुकोमल है और वे हाथ में फुल धनु लेकर वन जाते हैं। परंतु जहाँ तक बाल्मीकि रामायण के उच्च आदर्शों का प्रश्न हैं, कृत्तिवास ने उन सबको अपनी रचना में अक्षुण रखा है। पितृभक्ति, सत्यनिष्ठा, त्याग, प्रजानुरंजन, पात्तिव्रत इत्यादि सब आदर्शों का सफलतापूर्वक प्रतिपादन किया गया है।<br />
<br />
कवि ने इसमें कहीं नए आख्यान देकर, कहीं बंगाल की रीति नीति, कहीं आमोद प्रमोद, कहीं आचार अनुष्ठान और कहीं नारीरूप दिखाकर इस रचना को अपने प्रदेश के निवासयोिं की वस्तु बना दिया है। इन्होंने वाल्मीकि रामायण के गूढ़ दार्शनिक अंशों, विचारों के विश्लेषणात्मक भागों एवं आलंकारिकता को अपनी रचना में स्थान नहीं दिया है। रचनासौष्ठव और काव्यगुण से युक्त यह रचना बंगाल की निजस्व बन गई है।<br />
<br />
बंगाल में कृत्तिवास की रामायण अत्यंत लोकप्रिय है। धनी, दरिद्र सबके बीच इसका आदर और प्रचार है। लोग अत्यंत प्रेम और भक्ति से इसका पाठ करते हैं। प्राय: इसका पाठ गाकर ही किया जाता है।<br />
<br />
कृत्तिवास के विषय में अधिक दिनों तक अधिक ज्ञात नहीं था। रामायण के प्रारंभ अथवा प्रत्येक कांड के अंत में एक-दो पंक्तियाँ मिलती थीं जिनसे ज्ञात होता था कि रामायण के रचयिता का नाम कृत्तिवास हैं और वे विचक्षण कवि हैं; उन्होंने पुराण सुनकर कौतुक में ही गीत रच डाले। २०वीं शताब्दी के कुछ विद्वानों ने, जिनमें नगेंद्रनाथ वसु एवं निदेशचंद्र सेन प्रमुख हैं, एक हस्तलिखित पोथी प्राप्त की जो कृत्तिवास का आत्मचरित बताया जाता है। इस पोथी को दिनशे चंद्र सेन ने १९०१ ई. में अपन ग्रंथ बंगभाषा और साहित्य के द्वितीय संस्करण में प्रकाशित किया। इसके बाद नलिनीकांत भट्टशाली ने भी एक हस्तलिखित पोथी प्राप्त की। इन पोथियों के अनुसार कृत्तिवास फुलिया के रहनेवाले थे। इनके पूर्वपुरुष यवन-उपद्रव-काल में अपना स्थान छोड़कर चले आए थे। इनके पितामह का नाम मुरारी ओझा, पिता का नाम वनमाली एव माता का नाम मानिकी था। कृत्तिवास पाँच भाई थे। ये पद्मा नदी के पार वारेंद्रभूमि में पढ़ने गए थे। वे अपने अध्यापक आचार्य चूड़ामणि के अत्यंत प्रिय शिष्य थे। अध्ययन समाप्त करने के बाद वे गौड़ेश्वर के दरबार में गए। यह कौन से गौड़ाधिपति थे, इसका उल्लेख नहीं है। कुछ विद्वानों ने इन्हें हिंदू सुलतान राजा गणेश (कंस) मानते हैं तथा कुछ ताहिरपुर के राजा कंसनारायण। अन्य एक तीसरे राजा दनुजमर्दन का भी नाम लेते हैं। जनश्रुति के अनुसार कृत्तिवास ने गौड़ेश्वर को पाँच श्लोक लिखकर भेजे। उन्हें पढ़कर राजा अतीव प्रसन्न हुए और इन्हें तुरंत अपने समक्ष बुलाया। वहाँ जाकर इन्होंने कुछ और श्लोक सुनाए। राजा ने इनका अत्यंत सत्कार किया और भाषा में रामायण लिखने का अनुरोध किया। <br />
<br />
कृत्तिवास की निश्चित जनमतिथि इस आत्मचरित से भी ज्ञात नहीं होती। योगेशचंद्र राय १४३३, दिनेशचंद्र १३८५ से १४०० ई. के बीच तथा सुकुमार सेन १५वीं शती के उत्तरार्ध में इनका जन्म मानते हैं। <br />
<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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[[Category:नया पन्ना]]<br />
__INDEX__<br />
[[Category:हिन्दी_विश्वकोश]][[Category:कवि]]</div>Bharatkhoj