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'''खंडेला''' राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान जो सीकर से 28 मील पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम खंडिल्ल और खंडेलपुर था। यहाँ से तीसरी शती ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है और यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष हैं। यह सातवीं शती ई. तक शैवमत का एक मुख्य केंद्र था। यहाँ आदित्यनाग नामक राजा ने 644 ई. में अर्धनारीश्वर का एक मंदिर बनवाया था। इस मंदिर के ध्वंसावशेष से एक नया मंदिर बना है जो खंडलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। जैन धर्म की दृष्टि से भी इस स्थान का महत्व है। 8वीं शती में जिनसेनाचार्य ने यहाँ एक चौहान नरेश को जैन धर्म की दीक्षा दी थी। 13वीं शती में यहाँ जिनप्रभसूरि रहते थे। तीर्थ के रूप में इस स्थान का उल्लेख सकलतीर्थसूत्र में सिद्धसेन सूरि ने किया है|
 
'''खंडेला''' राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान जो सीकर से 28 मील पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम खंडिल्ल और खंडेलपुर था। यहाँ से तीसरी शती ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है और यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष हैं। यह सातवीं शती ई. तक शैवमत का एक मुख्य केंद्र था। यहाँ आदित्यनाग नामक राजा ने 644 ई. में अर्धनारीश्वर का एक मंदिर बनवाया था। इस मंदिर के ध्वंसावशेष से एक नया मंदिर बना है जो खंडलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। जैन धर्म की दृष्टि से भी इस स्थान का महत्व है। 8वीं शती में जिनसेनाचार्य ने यहाँ एक चौहान नरेश को जैन धर्म की दीक्षा दी थी। 13वीं शती में यहाँ जिनप्रभसूरि रहते थे। तीर्थ के रूप में इस स्थान का उल्लेख सकलतीर्थसूत्र में सिद्धसेन सूरि ने किया है|
 
==जैनों का एक प्रख्यात गच्छ==
 
==जैनों का एक प्रख्यात गच्छ==
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१२:०४, १६ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

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खंडेला राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान जो सीकर से 28 मील पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम खंडिल्ल और खंडेलपुर था। यहाँ से तीसरी शती ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है और यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष हैं। यह सातवीं शती ई. तक शैवमत का एक मुख्य केंद्र था। यहाँ आदित्यनाग नामक राजा ने 644 ई. में अर्धनारीश्वर का एक मंदिर बनवाया था। इस मंदिर के ध्वंसावशेष से एक नया मंदिर बना है जो खंडलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। जैन धर्म की दृष्टि से भी इस स्थान का महत्व है। 8वीं शती में जिनसेनाचार्य ने यहाँ एक चौहान नरेश को जैन धर्म की दीक्षा दी थी। 13वीं शती में यहाँ जिनप्रभसूरि रहते थे। तीर्थ के रूप में इस स्थान का उल्लेख सकलतीर्थसूत्र में सिद्धसेन सूरि ने किया है|

जैनों का एक प्रख्यात गच्छ

खंडिल्ल गच्छ इसी के नाम पर है। खंडेलवाल वेश्य भी इस स्थान के मूल निवासी कहे जाते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ