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०७:०३, ६ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

गणगौर राजस्थान की कुमारी तथा सौभाग्यवती स्रियों का एक महत्वपूर्ण उत्सव और व्रत है । कुमारियाँ सुंदर वर प्राप्त करने तथा विवाहित स्त्रियाँ अपनी सौभाग्यवृद्धि के निमित्त गणगौरी की पूजा करती हैं। यह पूजा होली के दूसरे दिन से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलती है। लड़कियाँ होली की राख से आठ पिंड तैयार करती है और प्रात:काल उठकर साज श्रृंगार कर अपनी सहेलियों के साथ गीत गाती पानी और दूर्वा लेने निकलती हैं और फिर उन्हें लाकर उक्त पिंड का शिव पार्वती के रूप में पूजन करती है। यह पूजा अठारह दिन तक चलती रहती है। अठारहवें दिन वे दिन भर उपवास कर रात्रि में फलाहार करती हैं।

विसर्जन का दिन

चैत्र शुक्ल तृतीया को सायंकाल गणगौरी को नदी अथवा तालाब में विसर्जन के लिए ले जाती है। इस दिन का राजस्थान में विशेष महत्व माना जाता है। इसमें छोटे बड़े राजा महाराजा सभी उत्साह के साथ सम्मिलित होते हैं।

उत्तर प्रदेश में मन्यतायें

उत्तर प्रदेश की स्रियाँ भी गणगौर का पूजन करती हैं किंतु इसका रूप सर्वथा भिन्न है। चैत्र शुक्ल तृतीया पार्वती की जन्मतिथि है। पूर्वांचल में उस दिन सौभाग्यवती स्रियाँ बालू की गौरी बनाकर पूजन करती हैं और सौभाग्य की वस्तु भेंट करती हैं। गौरी से सेंदुर लेकर अपनी माँग भरती हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ