चंद्रशेखरसिंह सामंत

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
चंद्रशेखरसिंह सामंत
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 144
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवान दास

चंद्रशेखरसिंह सामंत उड़ीसा निवासी भारतीय ज्योतिषी थे। इनका जन्म सन्‌ १८३५ में पुरी के पास की खंडपाड़ा नामक एक छोटी रियासत के राजवंश में हुआ था। कुछ वैधानिक कठिनाइयों के कारण राजगद्दी अन्य को मिली तथा इन्होंने अपना जीवन गरीबी में बिताया। उड़िया साहित्य के साथ साथ इन्हें संस्कृत के व्याकरण, काव्य तथा साहित्य की उच्च शिक्षा मिली। इनके पिता ने, जो स्वयं अच्छे विद्वान थे, इन्हें ज्योतिष का ज्ञान कराया। उड़िया और संस्कृत को छोड़ अन्य भाषाओं का ज्ञान इन्हें न था और न उस समय छपी हुई पुस्तकें ही उपलब्ध थीं, परंतु ग्रह, नक्षत्र और तारों की विद्या ने इन्हें आकर्षित किया। फलत: ताड़पत्रों पर हस्तलिखित, गणित ज्योतिष के प्राचीन सिद्धांत ग्रंथों का इन्होंने अध्ययन आरंभ किया। इन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि इन ग्रंथों के कथनों और निरीक्षण से देखी हुई बातों में बड़ा भेद था। अतएव इन्होंने आवश्यक सरल यंत्रों का स्वयं निर्माण किया तथा ग्रहों और नक्षत्रों के उदय, अस्त और गति का, बिना किसी दूरदर्शक यंत्र की सहायता के, निरीक्षण कर अपनी नापों और फलों को उड़िया लिपि तथा संस्कृत भाषा के लिखे सिद्धांतदर्पण नामक ग्रंथों में नियमानुसार क्रमबद्ध किया।

भारतीय ज्योतिषियों में केवल चंद्रशेखर ही ऐसे थे जिन्होंने चंद्रमा की गति के संबंध में स्वतंत्र तथा मौलिक रूप से चांद्र क्षोभ, विचरण और वार्षिक समीकार का पता लगाया। पहले के भारतीय ग्रंथों में इनका कहीं पता नहीं है। इन्होंने और लंबन की अधिक यथार्थ नाप भी ज्ञात की। बिना किसी दूरदर्शक की सहायता तथा गाँव में बनाए, सस्ते और सरल यंत्रों से ज्ञात की गई इनकी नापों की परिशुद्धता की भूरि भूरि प्रशंसा यूरोपीय विद्वानों ने की है। मॉण्डर (Maunder) के अनुसार यूरोपीय ज्योतिषियों द्वारा आधुनिक, बहूमूल्य एवं जटिल यंत्रों की सहायता से ज्ञात की हुई नापों और इनकी नापों में आश्चर्यजनक अत्यल्प अंतर है। यह अंतर बुध के नाक्षत्रकाल में केवल ०.००००७ दिन तथा शुक्र के नाक्षत्रकाल में केवल ०.००२८ दिन है। इनकी दी हुई ग्रहों की रविमार्ग (क्रांति वृत्त) से कक्षानति की नाप चाप की एक कला तक शुद्ध है। इन बातों से इनके कार्य की महत्ता का ज्ञान होता है। ज्योतिष विद्या (फलित और गणित) से ग्रामवासियों की सेवा करते हुए, इन्होंने सारा जीवन गरीबी में साधुओं सा बिताया। ये बालकों के समान सरल स्वभाव के, अति धार्मिक तथा सत्यवादी थे। इन्होंने अपने सारे जीवन का परिश्रम, अर्थात्‌ स्वरचित बृहद्ग्रंथ सिद्धांतदर्पण जगन्नाथ जी को समर्पित किया था और उन्हीं की पुरी में सन्‌ १९०४ में इन्होंने मोक्षलाभ किया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ