टिन
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टिन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 |
पृष्ठ संख्या | 369 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख संपादक | रमेशचंद्र कपूर |
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वंग या टिन (Tin) आवर्त सारणी के चतुर्थ मुख्य समूह (main group) की एक धातु है। वंग के दस स्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119, 120, 122 तथा 124) प्राप्त हैं। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 113, 121, 123 और 125) भी निर्मित हुए हैं।
वंग की मिश्र धातु का उपयोग आज से 5,000 वर्ष पूर्व भी होता था। वंग धातु की बनी सबसे प्राचीन बोतल मिस्र की स्थित समाधि में पाई गई, जो लगभग ईसा से 1,500 वर्ष पूर्वकाल की है। वंग के अयस्क मिस्र में नहीं मिलते। इस कारण वहाँ यह धातु अवश्य ही बाहर से आयी होगी। ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व इंग्लैंड में वंग के धातुकर्म के नमूने मिलते हैं। यहाँ वंग की खानें थीं। उस समय यह धातु रोम में जाती थी। दक्षिणी अमरीका के आदिवासियों को वंग की मिश्र धातुओं का ज्ञान था।
भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के काल के प्राप्त धातु पदार्थों में वंग पाया गया है। ऐसा अनुमान है कि उस समय वंग ईरान से आता था। ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व आयुर्वेद काल में सुश्रुत में त्रपु (वंग) तथा वाग्भट्ट के अष्टांगहृदयम् में भी वंग के यौगिक का वर्णन आया है। रसरत्नसमुच्चय में वंग धातु तथा वैग भस्म दोनों के गुणों की विवेचना की गई है।
उपस्थिति
वंग मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं है। पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा लगभग 40 ग्राम प्रति टन है। इसके प्रमुख अयस्क हैं : कैसिटेराइट, वंऔ2 (SnO2), और सल्फाइड। मलयेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कांगो, नाइजीरिया तथा बोलिविया में वंग की मुख्य खानें हैं।
धातुकर्म
वंग के अयस्क में प्राय: 1 से 5 प्रतिशत टिन ऑक्साइड वं औ2 (SnO2) उपस्थित रहता है। इस कारण इसे सांद्रित करना आवश्यक है। उच्च घनत्व तथा अचुंबकीय गुणों के द्वारा ही कैसिटेराइट का सांद्रण करते हैं। सांद्रित अयस्क को कोयले से मिश्रित कर परावर्तनी (reverberatory) अथवा वात्या (blast) भट्ठी में रखकर अपचयन (reduction) करने से वंग धातु प्राप्त होती है। अशुद्ध वंग के विशुद्ध करने की अनेक विधियाँ हैं।
गुणधर्म
वंग श्वेत रंग की कोमल तन्य (ductile) धातु है। इसके तार सरलता से खींचे जा सकते हैं, परंतु वंग की चादर मोड़ने पर कटकटाने की ध्वनि होती है, जिसे वंग की चिल्लाहट कहते हैं। धातु के दो अपररूपी रूपांतरण (allotropic modifications) हैं। सामान्य अवस्था में यह श्वेत रंग की धातु है, परंतु यदि वंग को अधिक काल तक 13° सें. ताप से नीचे रखा जाए, तो यह भुरभुरा एवं भूरे रंग के चूर्ण में परिवर्तित होकर वंग का दूसरा अपररूप बनाता है, जो निम्न ता पर स्थायी है।
वंग के कुछ भौतिक स्थिरांक ये हैं : संकेत वं (Sn), परमाणु संख्या 50, परमाणु भार 118.69, गलनांक 231.9° सें., क्वनांक 2,272° सें., घनत्व 7.31 ग्राम प्रति घन सेमी., परमाणु व्यास 3.16 ऐंग्स्ट्रॉम, विद्युत् प्रतिरोधकता 11.5 माइक्रोओम-सेंमी. तथा आयनन विभव (ionization potential) 7.3 इवो (ev.)।
सामान्य ताप पर वंग वायु द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उच्च ताप पर उसपर ऑक्साइ की परत जम जाती है। श्वेत ताप पर वंग वायु में जल कर डाइऑक्साइड, वंऔ2 (SnO2) बनाता है। यह तप्त अवस्था में पीले रंग का और सामान्य ताप पर श्वेत रंग का पदार्थ है। वंग तनु अम्लों में धीरे धीरे घुलकर, वं++ (Sn++), यौगिक बनाता है और हाइड्रोजन मुक्त करता है। धातु पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा जलयुक्त स्टैनिक ऑक्साइड अथवा मेटास्टैनिक अम्ल (metastannie acid) बनता है। वंग क्षारीय विलयन में घुलकर स्टैनेट बनाता है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है।
यौगिक
वंग के दो प्रकार के यौगिक ज्ञात हैं : एक स्टैंनस, जिसमें वंग की संयोजकता 2 है और दूसरा स्टैनिक, जिसमें वंग की संयोजकता चार रहती है। इसके दो ऑक्साइड, स्टैनस ऑक्साइ, वं औ (SnO), और स्टैनिक ऑक्साइ, वंऔ2 (SnO2), होते हैं। गंधक के साथ वंग को गरम करने से स्टैनस सल्फाइड, वंग (SnS) प्राप्त होता है। स्टैनिक सल्फ़ाइड वंगं2 (SnS2) भी बनता है।
हेलोजन
हेलोजन के साथ वंग स्टैन्स हैलाइड और स्टैनिक हैलाइड बनाता है। वंग के क्लोराइड रंगबंधक के रूप में रेशम रंगने में काम आते हैं। यह नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और फ़ॉस्फोरस के साथ भी यौगिक बनाता है। इसके नाइट्रेट और फ़ॉस्फ़ेट अस्थायी होते हैं। क्लोरोस्टैनिक अम्ल का अमोनियम लवण, (ना हा4)2 वंक्लो6 [( N H4)2 SnCl6] रेशम रंगने में काम आता है।
वंग अनेक उपसहसंयोजकता (coordinate) यौगिक बनाता है।
उपयोग
वंग मुलम्मा करने और मिश्र धातुओं के निर्माण में काम आता है। लोहे पर वंग से कलई करने पर उस पर न मुरचा ही लगता और न अम्लों का जल्दी असर पड़ता है। काँसा इसकी महत्व की मिश्रधातु है। खाद्य पदार्थों के डिब्बों में वंग की कलई करने से वे जल्द आक्रांत नहीं होते। वंग के अनेक यौगिक वस्त्र उद्योग, रँगाई, काँच एवं चीनी मिट्टी के पात्र के उद्योगों में काम आते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ