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तंबाकू निकोशियाना (Nicotiana) जाति के पौधों को, जिनकी पत्तियाँ खाने, पीने तथा सूँघने के काम आती हैं, तंबाकू कहते हैं। इनका प्रभाव मादक तथा उत्तेजक होता है। किसी अन्य मादक या उत्तेजक वस्तु की अपेक्षा तंबाकू का प्रयोग आज सबसे अधिक है।
 
तंबाकू निकोशियाना (Nicotiana) जाति के पौधों को, जिनकी पत्तियाँ खाने, पीने तथा सूँघने के काम आती हैं, तंबाकू कहते हैं। इनका प्रभाव मादक तथा उत्तेजक होता है। किसी अन्य मादक या उत्तेजक वस्तु की अपेक्षा तंबाकू का प्रयोग आज सबसे अधिक है।
  
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इसमें आंध्र के गुंटूर, कृरष्णा, पूर्वी गोदावरी तथा पश्चिमी गोदावरी जिले तथा हैदराबाद राज्य के कुछ परिसर क्षेत्र संमिलित हैं। इस क्षेत्र में गरम हवा से तथा धूप से सिझाए गए विभिन्न प्रकार के वर्जीनिया तंबाकू अधिकतर तथा नाटू (देशी) तंबाकू भी उगाया जाता है। लंका नामक तंबाकू पूर्वी गोदावरी तथा कृष्णा जिलां के द्वीपों में उगाया जाता है और छोटी पेंसिल के आकार की, हाथ से लपेटी जानेवाली, चुरुटों के निर्मण में मुख्यत: इसका उपयोग होता है।
  

०५:४२, ८ सितम्बर २०११ के समय का अवतरण

लेख सूचना
तंबाकू
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 299-301
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक तपानाथ शुक्ल

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तंबाकू निकोशियाना (Nicotiana) जाति के पौधों को, जिनकी पत्तियाँ खाने, पीने तथा सूँघने के काम आती हैं, तंबाकू कहते हैं। इनका प्रभाव मादक तथा उत्तेजक होता है। किसी अन्य मादक या उत्तेजक वस्तु की अपेक्षा तंबाकू का प्रयोग आज सबसे अधिक है।

तंबाकू की उत्पत्ति आरंभ में कब और कहाँ हुई, इसा ठीक पता नहीं चलता। कहते हैं, एक बार पुर्तगाल स्थित फ्रांसीसी रादूत, जॉन निकोट, नेअपनी रानी के पास तंबाकू का बीज भेजा और तभी से इस पौधे का प्रवेश प्राचीन संसार में हुआ। निकोट के नाम को अमर रखने के लिये इसका वानस्पतिक नाम निकोशियाना रखा गया।

तंबाकू दक्षिणी अमरीका का पौधा माना जाता है। इसकी खेती ऐतिहासि काल से हाती चली आ रही है। यद्यपि तंबाकू अयनवृत्तीय पौधा है, तथापि इसकी सफल खेती अन्य स्थानों में भी होती है, क्यांकि यह अपने को विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु के अनुकूल बना लेता है।

अब तक संसार में तंबाकू की ६० विभिन्न जातियाँ मिल चुकी हैं। इनमें से निकाशियाना टबैकम (tabacum) और निकोशियाना रस्टिका की खेती बड़े पैमाने पर होती है। खेती तथा व्यापार की दृष्टि से केवल ये ही दो जातियाँ उपयोगी सिद्ध हुई हैं।

ऐसा माना जाता है कि १७वीं सदी में पुर्तगाल द्वारा भारत में तंबाकू की खेती का प्रारंभ हुआ। १७वीं १८वीं सदियों में यूरोपीय यात्रियों ने भारत में तंबाकू की खेती और उसके उपयोग का उल्लेख किया है। मुगल सम्राट् जहाँगीर के समय में तंबाकू की खेती का प्रचार नहीं हो पाया, क्यांकि उन्हांने घोषणा की कि तंबाकू पीनेवालों के होठों को लंबे बल काट दिया जाएगा। ह्ाइटलॉ आइन्स्ली (Whitelaw Ainsle) की लिखी हुई मेटिरिया इंडिका (Materia Indica) नामक पुस्तक में, देशी तथा यूरोपीय डाक्टरों द्वारा भारत में दवा संबंधी प्रयोजनों के लिये तंबाकू के उपयोग के बारे में लिखा है। सामाजिक रुकावटों के अभाव के कारण, अब धूम्रपान सरलता से अपनाई जानेवाली आदत बन गई है।

आज व्श्वि भर में अमरका तथा चीन के बाद बड़े पैमाने पर तंबाकू पैदा करनेवाला, तीसरा राष्ट्र भारत है। भारत तथा विश्व में अन्य राष्ट्रों की सरकारों के लिये तंबाकू कर रूप में ¢ कामधेनु¢ है। कृषक के लिये तंबाकू बहुत ही मुख्य नकद शस्य है। प्रति वर्ष अनुमानत: ४५ करोड़ रुपए तंबाकू की खेती से उत्पादकों को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त केंद्रीय सरकार को ४५ करोड़ रु पये तंबाकू उत्पादन शुल्क, अनुमानत: दो करोड़ निर्यातकर और देश को १६ करोड़ की मूल्य का विदेशी विनिमय मिलता है। तंबाकू की खेती करनेवाले, निर्माता, निर्यातक तथा अनगिनत मध्यवर्ती लोग इससे खूब लाभ उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त तंबाकू के विभिन्न उद्योगां में लाखों व्यक्ति जीविका पा रहे हैं। भार तंबाकू में स्वयं समृद्ध है और अपनी पैदावार का १६-१७ प्रतिशत दुनियाँ के विभिन्न भागों को निर्यात करता है।

भारत में तंबाकू उत्पादन

सब फसलां का केवल ०.२८ प्रतिशत भाग ही भारत में तंबाकू की खेती होती है। सन्‌ १९५९ में तंबाकू की खेती का क्षेत्र ८,९६,००० एकड़ था। इसमें अनुमानत: ५,८९.००,००० पाउंड तंबाकु पैदा हुआ। भारत में आंध्र प्रदेश तंबाकू उत्पादन क प्रधान केंद्र है। यहँ तंबाकू उत्पादन का प्रधान केंद्र है। यहाँ तंबाकू उत्पादन का ६६ प्रतिशत तथा देश के वर्जीनिया सिगरेट तंबाकू का ९५ प्रतिशत पैदा होता है। तंबाकू पैदा कनेवो अन्य क्षेत्र ये हैं: महाराष्ट्र, गुजरात, मद्रास, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार, हैदराबाद, मैसूर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब।

भारत में तंबाकू उत्पादन छह विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रित है।

गुँटूर क्षेत्र

इसमें आंध्र के गुंटूर, कृरष्णा, पूर्वी गोदावरी तथा पश्चिमी गोदावरी जिले तथा हैदराबाद राज्य के कुछ परिसर क्षेत्र संमिलित हैं। इस क्षेत्र में गरम हवा से तथा धूप से सिझाए गए विभिन्न प्रकार के वर्जीनिया तंबाकू अधिकतर तथा नाटू (देशी) तंबाकू भी उगाया जाता है। लंका नामक तंबाकू पूर्वी गोदावरी तथा कृष्णा जिलां के द्वीपों में उगाया जाता है और छोटी पेंसिल के आकार की, हाथ से लपेटी जानेवाली, चुरुटों के निर्मण में मुख्यत: इसका उपयोग होता है।

बिहार और बंगाल राज्य

बिहार के मुजफफ्फरपुर, दरभंगा, और पूर्णिया जिले तथा पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी, माल्दा, बहरामपुर और दिनाजपुरजिले इस प्रदेश में संमिलित हैं। इस क्षेत्र में हुक्के में पीने के लिये उपयोगी तंबाकू की विविध जातियाँ उगाई जाती है। उनके स्थानीय नाम हैं - (१) विलायती, (२) मोतिहारी और (३) जाती।

उत्तर-प्रदेश और पंजाब राज्य

इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का फरूखाबाद जिला तथा पंजाब के जलंधर और फिरोजपुर जिले संमिलित हैं। इस प्रदेश में हुक्के के लिये तथा खाने के लिये उपयोगी फलकतिया जाति का तंबाकू उगाया जाता हैं।

चरोत्तर क्षेत्र

इसमें गुजरात राज्य के केरा जिले के आनंद, बीर्साद, पेटलाद और नडियाद तालुके संमिलित हैं। इस प्रदेश में विविध जातियों का, बीड़ी का तंबाकू उगाया जाता है।

निपानी क्षेत्र

इसमें कोल्हापुर, सांगली तथा मिरज जिलों के साथ महाराष्ट्र राज्य के बेलगाँव तथा सतारा जिले भी संमिलित हैं। क्षेत्र में मुख्यत: बीड़ी का तंबाकू उगाया जाता है।

दक्षिणी मद्रास राज्य

इसमें मद्रास राज्य के मदुरा और कोयंवटूर जिले संमिलित हैं। इस क्षेत्र में सिगार में भरनेवाला, लपेटा जानेवाला तथा खानेवाला तंबाकू अधिकतर उगाया जाता है।

एन० रस्टिका जाति के तंबाकू का अधिकांश भाग हुक्के में पीने के लिये प्रयुक्त होता है। एन टवैकम जाति का तंबाकू सिगरेट, बीड़ी, सुँधनी और खानेवाले तंबाकू के काम में आता है। वर्जीनिया तंबाकू, जो अधिकतर आंध्र राज्य में उगाया जाता है और सिगरेट बनाने के काम में प्रयुक्त होता है, व्यापार की दृष्टि से प्रधान है। बर्ली तंबाकू का सिगरेटों में संमिश्रण के लिये अधिकतर उपयोग किया जाता है। नाटू (देशी) तंबाकू किसी खास जगह में चुट्ट नाम स प्रसिद्ध, छोटे और हाथ से लपेटे जानेवाले चुरुट बनाने के काम आता है। इस तंबाकू की हल्की तथा पूरे रंग की पत्तियों का ससती सिगरेटों के निर्माण में उपयोग किया जाता है। गहरे भूरे रंग की पत्तियाँ, पाइप में पीने के तंबाकू की विभिन्न किस्में तैयार करने के लिये यूनाइटेड किंगडम (विलायत) को निर्यात की जाती हैं। दक्षिण मद्रास के दिंडुकल, तिरूचिरापल्ली और कोयंबत्तुर जिलां में उगाया गया, प्रमुख जाति का तंबाकू चुरुट और सिगार बनाने में तथा खानेवाला तंबाकू तैयार करन में काम आता है।

तंबाकू की खेती

यद्यपि तंबाकू नाम से एक ही फसल का आभास होता है, तथापि भिन्न उपयागों में आनेवाले तंबाकुओं की खेती तथा सिझाई में इतना अंतर है कि उनके भिन्न भिन्न नाम रख दिए गए हैं, जैसे हुक्का तंबाकू, गरम हवा से सिझाया सिगरेट तंबाकू, धुप में सुखाया सिगरेट तंबाकू इत्यादि। सबकी खेती तथा सिझाई का विस्तृत वर्णन स्थानाभाव के कारण यहाँ करना संभव नहीं। केवल सामान्य पद्धति तथा प्रत्येक जाति की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।

तंबाकू रोपित शस्य है, जिसकी सफलता उसकी पौधशाला पर निर्भर है। यदि सुद्दढ़ स्वस्थ और ए ही अवस्था के पौधे न लगाए जाएँगे तो फसल अच्छी न होती। पौधशाला की भूमि का चुनाव करते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहए कि स्थान ऊँचाई पर हो, पानी का निकास अच्छा हो तथा सिंचाई का साधन निकट हो। हर साल एक ही भूमि पर पौधशाला नहीं लेनी चाहिए। भूमि से ४¢ ¢ , ६¢ ¢ उठी और ४ फुट चौड़ी पटरियां पर पौधशाला उगानी चाहिए। पटरियां के बीच १.१/२ फुट चौड़ा रास्ता आने जाने, पानी निकालने और काम करने के लिये छोड़ना चाहिए आवश्यकतानुसार बीज को लेकर, बालू या राख में मिलाकर, बोने के बाद हथेली से पीअ देना चाहिए। पानी देते रहना चाहिए। एन० टब्‌ैकम का आध सेर से एक सेर तक तथा एन० रस्टिका का दो से तीन सेर तक बीज एक एकड़ पौधशाला के लिये पर्याप्त होता है।

जब पौधे ४-६ इंच बड़े हो जाते हें तो उनकी अच्छी तरह तैयार किए हुए खेतों में लगा देते है। तंबाकू की एन० टबैकम जाति के पौधों को सामान्यत: २. १/२ से ३ फुट की दूरी पर तथा एन० रस्टिका के पौधों को १.१/२ फुट की दूरी पर लगाते हैं। ये दूरियाँ कतार से कतार तथा पेड़ से पेड़ के बीच की हैं। रोपाई शाम को करनी चाहिए। कहीं कहीं नम खेत में रोपाई की जाती है और कहीं रोपाई के बाद तुरंत पानी देते हैं।

आवश्यकतानुसार सिंर्चा, निकाई और गुड़ाई करते हैं। तंबाकू के फूलों को तोड़ना अति आवश्यक है, नहीं तो पत्ते हलके पड़ जाएँगे। फलस्वरूप उपज कम हो जाएगी और पत्तियों के गुणों में भी कमी आ जाएगी। बीज के लिये छोड़े जानेवाले पौधों के फूलां को नहीं तोड़ना चाहिए। फूल तोड़ने के बाद पत्तियां के बीच की सहायक कलियों से पत्तियाँ निकलने लगती हैं। उनको भी समयानुसार तोड़ते रहना चाहिए।

पके हुए पेड़ों को जड़ से काटकर, या पकी पत्तियों को तोड़कर, सिझाते हैं। सिझाने के तरीकों में विशेष अंतर है। सिझाई उस क्रिया का नाम है जिसके द्वारा पत्तियाँ सुखाकर बचेने योग्य बनाई जाती हैं। इस क्रिया में बहुत से रासायनिक परिवर्तन होते हैं और नमी की मात्रा घटकर १२-१४ प्रतिशत रह जाती है। अधिक नम तंबाकू रखने से वह सड़ जाती है। सिझाई हुई तंबाकू के ही खाने, पीने या सूँधने के काम में लाते है। हुक्का तंबाकू का डंठल भी पीने के काम आता है।

तंबाकू की बीमारियों तथा कीड़ो का भी समुचित निरोध करते रहना चाहिए, नहीं तो फसल को हानि पहुंँचती है।

तंबाकू के तैयार माल

भारत में तंबाकू के तैयार माल, सिगरेट, सिगार, बीड़ी, सुँघनी, चबाया जानेवाला (खैनी) तंबाकू और हुक्का तंबाकू हैं। तंबाकू के बीज से तेल भी निकलता है। इस तेल का वार्निश और रंगों के उद्योग में लाभदायक रूप से उपयोग किया जा सकता है। इसकी खली का पशुओं को खिलाने या खेतों के लिए खाद के रूप में भी उपयोग हो सकता है।

तंबाकू में मादकता, या उत्तेजना देनेवाली, वस्तु निकोटिन होती है। जिस तंबाकू में जितनी अधिक 'निकोटिन' होगी वह उतना ही तेज होगा। बीज में निकोटिन नहीं होता।

आजकल भारत में भारतीय केंद्रीय तंबाकू अनुसंधान समिति, मद्रास, द्वारा तंबाकू के उत्पादन और व्यवसाय के विकास का कार्य किया जा रहा है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ