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+ | तथ्यवाद बीज रूप में तथ्यवाद कुछ प्राचीन विचाराकों की शिक्षा में विद्यमान था, परंतु इसे एक दर्शन शाखा का पद देने का श्रेय आगस्ट काम्ट (१७९८-१८५७) को है। काम्ट के सिद्धांत में मौलिक स्थान मानसिक विकास के उस नियम का है, जिसे उसने ऐतिहासिक रूप में ज्ञान की सभी शाखाओं पर लागू किया। यह मानसिक विकास की तीन मंजिलों या अवस्थाओं का नियम है। उसका कथन है- | ||
मानव बुद्धि की बनावट ही ऐसी है कि ज्ञान की प्रत्येक शाखा अपने विकास में तीन अवस्थाओं से गुजरने पर विवश होती है-दैवी या कल्पित अवस्था, दार्शनिक या अमूर्त अवस्था और वैज्ञानिक या तथ्य अवस्था। पहली अवस्था में मनुष्य निसर्ग की घटनाओं को किसी चेतन के संकल्पों के रूप में देखता है, दूसरी अवस्था में इन संकल्पों में से चेतना निकाल दी जाती है और देवों का स्थान अचेतन प्रक्रिया ले लेती है, तीसरी अवस्था में, जिसमें मानव जाति अभी प्रविष्ट हुई है, बुद्धि इसी पर संतोष करती है कि घटनाओं को एकत्र करे और उनमें सहभाव या क्रम के संबंध को देखें। धर्म और दर्शन ने अपने काल में बुद्धि के विकास में अमूल्य सहायता दी, परंतु अब उनका समय समाप्त हो चुका है और उनके अध्ययन का मूल्य ऐतिहासिक ही है। अब विज्ञान का युग है। | मानव बुद्धि की बनावट ही ऐसी है कि ज्ञान की प्रत्येक शाखा अपने विकास में तीन अवस्थाओं से गुजरने पर विवश होती है-दैवी या कल्पित अवस्था, दार्शनिक या अमूर्त अवस्था और वैज्ञानिक या तथ्य अवस्था। पहली अवस्था में मनुष्य निसर्ग की घटनाओं को किसी चेतन के संकल्पों के रूप में देखता है, दूसरी अवस्था में इन संकल्पों में से चेतना निकाल दी जाती है और देवों का स्थान अचेतन प्रक्रिया ले लेती है, तीसरी अवस्था में, जिसमें मानव जाति अभी प्रविष्ट हुई है, बुद्धि इसी पर संतोष करती है कि घटनाओं को एकत्र करे और उनमें सहभाव या क्रम के संबंध को देखें। धर्म और दर्शन ने अपने काल में बुद्धि के विकास में अमूल्य सहायता दी, परंतु अब उनका समय समाप्त हो चुका है और उनके अध्ययन का मूल्य ऐतिहासिक ही है। अब विज्ञान का युग है। |
०५:१८, ८ सितम्बर २०११ के समय का अवतरण
तथ्यवाद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 307 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | दीवाचंद |
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तथ्यवाद बीज रूप में तथ्यवाद कुछ प्राचीन विचाराकों की शिक्षा में विद्यमान था, परंतु इसे एक दर्शन शाखा का पद देने का श्रेय आगस्ट काम्ट (१७९८-१८५७) को है। काम्ट के सिद्धांत में मौलिक स्थान मानसिक विकास के उस नियम का है, जिसे उसने ऐतिहासिक रूप में ज्ञान की सभी शाखाओं पर लागू किया। यह मानसिक विकास की तीन मंजिलों या अवस्थाओं का नियम है। उसका कथन है-
मानव बुद्धि की बनावट ही ऐसी है कि ज्ञान की प्रत्येक शाखा अपने विकास में तीन अवस्थाओं से गुजरने पर विवश होती है-दैवी या कल्पित अवस्था, दार्शनिक या अमूर्त अवस्था और वैज्ञानिक या तथ्य अवस्था। पहली अवस्था में मनुष्य निसर्ग की घटनाओं को किसी चेतन के संकल्पों के रूप में देखता है, दूसरी अवस्था में इन संकल्पों में से चेतना निकाल दी जाती है और देवों का स्थान अचेतन प्रक्रिया ले लेती है, तीसरी अवस्था में, जिसमें मानव जाति अभी प्रविष्ट हुई है, बुद्धि इसी पर संतोष करती है कि घटनाओं को एकत्र करे और उनमें सहभाव या क्रम के संबंध को देखें। धर्म और दर्शन ने अपने काल में बुद्धि के विकास में अमूल्य सहायता दी, परंतु अब उनका समय समाप्त हो चुका है और उनके अध्ययन का मूल्य ऐतिहासिक ही है। अब विज्ञान का युग है।
विज्ञान की सभी शाखाएँ समान वेग से प्रगति नहीं करतीं, कोई आगे निकल जाती है, कोई पीछे रह जाती है। काम्ट ने विज्ञान की शाखाओं को क्रमबद्ध किया। सामान्य और सरल से चलकर विशेष और असरल की और बढ़ा। इस क्रम में उसने गणित, ज्योतिष, भौतिकी, रसायन, जीवविद्या और समाजशास्त्र को स्थान दिया। समाजशास्त्र का तो वह जन्मदाता ही समझा जाता है।
काम्ट ने धर्म और दर्शन को भूतकाल की वस्तु कहा, परंतु अपने सिद्धांत को पॉजिटिव फिलासोफी नाम दिया और 'मानवता के धर्म' की नींव रखी। मनुष्यों में भी स्त्री को प्रथम स्थान दिया और कहा अब आगे मनुष्य का सिर स्त्री के सामने ही झुकेगा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ