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इसका वास्तविक नाम मीर मोहम्मद खलील था। औरंगजेब के शासनकाल के अंतिम भाग में यह उसकी सेवा में नियुक्त हुआ। औरंगजेब ने इसे दोहजारी १२०० सवार का मनसब दिया। इसने इधर इधर के विद्रोहों को दबाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। फलत: यह राज्य के 'मीर आतिश' के पद पर नियुक्त किया गया। जब औरंगजेब शिवाजी के दुर्गो को विजय करने के लिए बढ़ा तो उसने मीर आतिश को बसंतगढ़ के मोर्चों का निरीक्षक नियुक्त किया। इसने अपना कौशल इस प्रकार प्रदर्शित किया कि मैसूरी दुर्ग सम्राट् औरंगजेब के अधिकार में आ गया। परनाला और पवनगढ़ नामक दुर्ग की मोर्चाबंदी में इसने आश्चर्यजनक कार्य किया। खलना दुर्ग पर चिजय प्राप्त करने के परिणापमस्वरूप इसके मनसब में वृद्धि हुई। कोनदाना दुर्ग पर विजय भी इसकी वीरता द्वारा मिली। राजगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने के प्रसादस्वरूप इसके मंसब में पुन: वृद्धि हुई। तत्पश्चात्‌ यह मंसूर खाँ के स्थन पर दक्षिण के तोपखाने के निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। इसे बहादुर की उपाधि दी गई और वाकिन्केरा दुर्ग विजय करने पर एक शाही डंके से इसे सम्मानित किया गया।
 
इसका वास्तविक नाम मीर मोहम्मद खलील था। औरंगजेब के शासनकाल के अंतिम भाग में यह उसकी सेवा में नियुक्त हुआ। औरंगजेब ने इसे दोहजारी १२०० सवार का मनसब दिया। इसने इधर इधर के विद्रोहों को दबाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। फलत: यह राज्य के 'मीर आतिश' के पद पर नियुक्त किया गया। जब औरंगजेब शिवाजी के दुर्गो को विजय करने के लिए बढ़ा तो उसने मीर आतिश को बसंतगढ़ के मोर्चों का निरीक्षक नियुक्त किया। इसने अपना कौशल इस प्रकार प्रदर्शित किया कि मैसूरी दुर्ग सम्राट् औरंगजेब के अधिकार में आ गया। परनाला और पवनगढ़ नामक दुर्ग की मोर्चाबंदी में इसने आश्चर्यजनक कार्य किया। खलना दुर्ग पर चिजय प्राप्त करने के परिणापमस्वरूप इसके मनसब में वृद्धि हुई। कोनदाना दुर्ग पर विजय भी इसकी वीरता द्वारा मिली। राजगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने के प्रसादस्वरूप इसके मंसब में पुन: वृद्धि हुई। तत्पश्चात्‌ यह मंसूर खाँ के स्थन पर दक्षिण के तोपखाने के निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। इसे बहादुर की उपाधि दी गई और वाकिन्केरा दुर्ग विजय करने पर एक शाही डंके से इसे सम्मानित किया गया।
  

१२:२७, ६ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

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इसका वास्तविक नाम मीर मोहम्मद खलील था। औरंगजेब के शासनकाल के अंतिम भाग में यह उसकी सेवा में नियुक्त हुआ। औरंगजेब ने इसे दोहजारी १२०० सवार का मनसब दिया। इसने इधर इधर के विद्रोहों को दबाने में अच्छी सफलता प्राप्त की। फलत: यह राज्य के 'मीर आतिश' के पद पर नियुक्त किया गया। जब औरंगजेब शिवाजी के दुर्गो को विजय करने के लिए बढ़ा तो उसने मीर आतिश को बसंतगढ़ के मोर्चों का निरीक्षक नियुक्त किया। इसने अपना कौशल इस प्रकार प्रदर्शित किया कि मैसूरी दुर्ग सम्राट् औरंगजेब के अधिकार में आ गया। परनाला और पवनगढ़ नामक दुर्ग की मोर्चाबंदी में इसने आश्चर्यजनक कार्य किया। खलना दुर्ग पर चिजय प्राप्त करने के परिणापमस्वरूप इसके मनसब में वृद्धि हुई। कोनदाना दुर्ग पर विजय भी इसकी वीरता द्वारा मिली। राजगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने के प्रसादस्वरूप इसके मंसब में पुन: वृद्धि हुई। तत्पश्चात्‌ यह मंसूर खाँ के स्थन पर दक्षिण के तोपखाने के निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। इसे बहादुर की उपाधि दी गई और वाकिन्केरा दुर्ग विजय करने पर एक शाही डंके से इसे सम्मानित किया गया।

औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात्‌ मोहम्मद आजमशाह ने इसे तोपखाने के प्रबंधक पद से हटा दिया। बहादुरशाह के विरुद्ध युद्ध में यह मारा गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ