ताजिक

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ताजिक शब्द के अन्य रूप ताजिक, तजीक, ताज़ीक, (तुर्की) तज्ह़ीक, ताज्ह़ीक, (इसमें 'ज्‌ह फारसी का विशिष्ट स्वर है जिसे अन्य किसी भाषा में नहीं लिखा जा सकता), ताजी (दरी), ताचीक (पहलवी), तचिक (अर्मिनी) तशि (चीनी) हैं। प्राय: सभी विद्वानों का यह कहना है कि ईरानियों का अरबों के कबीलों में सर्वप्रथम 'बनी तैय' से संपर्क हुआ था। फारसी के नियमानुसार विशेषण शब्द संज्ञा ताजीक या ताजी हो गया।, जिस प्रकार 'रैय' शहर का निवासी राजी और जंद से संबंध रखनेवाला जंदीक कहलाता है। शुरू में यह शब्द अरब के मुसलमानों के लिये बोला जाता था। परंतु जब तुर्को का मध्य एश्याि पर अधिकार हुआ त्तो विजित ईरानी इन तुर्कों को भी ताजीक कहने लगे। उस समय यदि कोई ईरानी भी मुसलमान हो जाता था तो वह अरब ही समझा जाता था। जब विजित इरानयों ने विजेता तुर्कों को ताजीक कहना शुरू किया तो इनका अभिप्राय केवल मुसलमानों से था। इसी कारण बाद में जितने गैर तुर्क (विशेषत: ईरानी) मुसलमानों से था। इसी कारण बाद में जितने गैर तुर्क (विशेषत: ईरानी) मुसलमानों से तुर्कों का संपर्क हुआ वे उन सबको ताजीक कहने लगे, अर्थात्‌ तुर्की भाषा में ताजीक का अर्थ ईरानी ही हो गया और फारसी भाषा में मुसलमान या अरब रहा। तब: महमूद काशगरी अपने शब्दकोश में 'तज्ह़ीक शब्द का अर्थ 'अल-फारसी' (ईरानी) लिखता है। बाह्य रूप से यह भी जान पड़ता है कि उस समय स्वयं ईरानी भी तुर्की शासकों की अपेक्षा अपने आप को ताज़ीक कहने लगे थे। आनंदराज ने अपने शब्द कोश में ताजीक शब्द का अर्थ 'गैर तुर्क' और अरब ही लिखा है और मदारुल अफ़ाजिल का लेखक कहता है कि यह तुर्को की एक शाखा है। वस्तुत: ताजीक तुर्क का विपरीत अर्थ प्रकट करता है। ताजीक या ताज्क़ाी उस अरब को भी कहते थे जिसका पालन पोषण अरब के अतिरिक्त अन्य किसी देश में हुआ हो।

अनेक ऐतिहासिक एवं राजनीतिक कारणों से तुर्को तथा ईरानियों में सदैव ही अप्रिय संबंध रहा है, यहाँ तक कि तुर्की और ताज़ी शब्द मुहावरे में भी एक दूसरे के विपरीत समझे जाने लगे। फारसी भाषा के अनेक मुहावरे इस विरोध की याद दिलाते हैं जिनमें से कुछ उर्दू भाषा में भी आ गए है जैसे : तुर्की मारा ताज़ी काँपा।

ताजिक शब्द तातारियों में व्यापारी के लिये भी बोला जाता था। आधुनिक काल में ताजिक शब्द कभी निष्केवल ईरानी की अपेक्षा पूर्वी ईरानी के लिये भी आता है। अस्तराबाद और यज्द़ के बीच का भूखंड ताजिकों के निवासस्थान की अंतिम सीमा समझी जाती है। ऊज़बकों ने अपनी सत्ता के बल पर तुर्किस्थान के ताजिकों को प्रमश: मैदानों से पहाड़ों की ओर भगा दिया है और अब रूसी साधारणतया तुर्किस्तान के सभी ईरानियों को ताजिक ही समझते हैं। अर्थात्‌ केवल ताजिकी भाषा बोलनेवालों को ही न कहकर 'पंज' तथा 'ज़रअफ़शाँ के पर्वतीय देशवालों को भी ताजिक ही कहते हैं, यद्यपि उनकी भाषा भिन्न है। ताजिक स्वयं इस शब्द का प्रयोग विभिन्न रूप से करते हैं। वे पर्वतीय क्षेत्र के जिलां शुगनान, रोशन आदि के निवासियों को ताजिक कहते हैं और अपने पड़ोसी 'दरवाज' के रहनेवालों को 'फारसी गो' (फारसी भाषी) कहते हैं, यद्यपि उनकी भाषा ताजिकी ही है।

ताजिकिस्तान का स्वाधीन स्वतंत्र राज्य १९२४ में स्थापित हुआ दे० ताजिक गणतंत्र।

ताजिकी भाषा पर फ़ारसी का बहुत गहरा प्रभाव है। उसके साहित्य में भी प्राचीन फ़ारसी की उस परंपरा का प्रतिबिंब मिलता है जो फिंरदौसी, खय्याम तथा हाफ़िज तक पहुँचती है। ताजिकी भाषा का पहला स्थानीय कवि १६वी शताब्दी में मुश्तफ़ी और १७वीं शताब्दी में नसफ़ो हुआ है। २०वीं शताब्दी के शुरू में 'ऐनी' प्रमुख कवि हुआ है। इस सदी की पहली चौथाई तक ताजिकी भाषा फ़ारसी लिपि में लिखी जाती थी, फिर लातीनी (लैटिन) अक्षरों में उसका लिप्यंतरण हुआ और पहले तृतीयांश के अंत तक उसे भी हटाकर रूसी लिपि (सिरिलिक) चालू कर दी गई है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ