https://bharatkhoj.org/w/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0&feed=atom&action=historyनरोत्तमदास ठाकुर - अवतरण इतिहास2024-03-28T10:13:19Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.35.6https://bharatkhoj.org/w/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0&diff=354896&oldid=prevBharatkhoj: '==जन्म== '''नरोत्तमदास ठाकुर''' राजशाही जिला के अंतर्गत प...' के साथ नया पन्ना बनाया2015-08-01T06:13:37Z<p>'==जन्म== '''नरोत्तमदास ठाकुर''' राजशाही जिला के अंतर्गत प...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>==जन्म==<br />
'''नरोत्तमदास ठाकुर''' राजशाही जिला के अंतर्गत परगना गोपालपुरा के [[कृष्णनंददत्त|राजा कृष्णनंददत्त]] के पुत्र थे। माता का नाम नारायणीदेवी था। ये कायस्थ जाति के थे तथा [[पद्मा नदी]] के तटस्थ [[खेतुरी]] इनकी राजधानी थी। इनका जन्म संवत् 1585 की [[माघ पूर्णिमा]] को हुआ था।<br />
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==जीवन-परिचय==<br />
यह जन्म से ही विरक्त स्वभाव के थे। 12 वर्ष की अवस्था ही में इन्हें स्वप्न में [[नित्यानंद|श्री नित्यानंद]] के दर्शन हुए और उसी प्रेरणानुसार यह पद्मा नदी में स्नानार्थ गए। यहीं इन्हें [[भगवतप्रेम]] की प्राप्ति हुई। पिता की मृत्यु पर यह अपने चचेरे भाई संतोषदत्त को सब राज्य सौंपकर कार्तिक पूर्णिमा को वृंदावन चल दिए। यह [[वृंदावन]] में [[श्रीजीव गोस्वामी]] के यहाँ बहुत वर्षों तक भक्तिशास्त्र का अध्ययन करते रहे। यहीं इन्होंने [[श्रीलोकनाथ गोस्वामी]] से श्रावणी पूर्णिमा को दीक्षा ली और उनके एकमात्र शिष्य हुए। संवत् 1639 में [[श्रीनिवासाचार्य]] तथा [[श्यामानंद|श्यामानंद जी]] के साथ ग्रंथराशि लेकर यह भी बंगाल लौटे। [[विष्णुपुर]] में ग्रंथों के चोरी जाने पर यह खेतुरी चले आए। यहाँ से एक कोस पर इन्होंने एक आश्रम खोला, जिसका नाम 'भजनटूली' था। इसमें [[गौरांग|श्रीगौरांग]] तथा [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के छह [[श्रीविग्रह]] प्रतिष्ठापित कर संवत् 1640 में महामहोत्सव किया। इन्होंने संकीर्तन की नई प्रणाली निकाली तथा [[गरानहाटी]] नामक सुर का प्रवर्तन किय। यह भक्त सुकवि तथा संगीतज्ञ थे। 'प्रार्थना', 'प्रेमभक्ति चंद्रिका' आदि इनकी रचनाएँ हैं। <br />
==मृत्यु==<br />
इनका शरीरपात संवत् 1668 की कार्तिक कृष्ण 4 को हुआ और इनका भस्म वृंदावन लाया गया, जहाँ इनके गुरु [[लोकनाथ गोस्वामी]] की समाधि के पास इनकी भी समाधि बनी। इनके तथा इनके शिष्यों के प्रयत्न से उत्तर बंग में [[गौड़ीय मत]] का विशेष प्रचार हुआ<ref> देखिए 'भक्ति रत्नाकर', 'नरोत्तम विलास' आदि ग्रंथ</ref>।<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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[[Category:हिंदी विश्वकोश]]<br />
[[Category:समाज]]<br />
[[Category:जीवनी]]<br />
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