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बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयेंवाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के रंग, प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल | बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयेंवाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के रंग, प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल | ||
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१०:२४, २५ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
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मखमल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9 |
पृष्ठ संख्या | 103 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1967 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | प्रफुल्ल कुमार पारिख |
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मखमल हल्की बुनाई के रोयेंदार रेशमी कपड़े को कहते हैं। यह साधारण रेशम[१] या प्लश [२] की रोएँदार सतह पर बनाया जाता है। यह सतह बुनाई करते समय ऐंठे हुए रेशमी धागों को पृथक-पृथक करने से विकसित होती है। अलग-अलग होने पर यह धागे गुच्छे के रूप में रेशमी, सूती या किसी भी बुने कपड़े के दृढ़ आधार पर सीधे खड़े रहते है। प्राचीन काल में मखमल पोशाकों के लिये काफी लोकप्रिय रहा है। राजकीय, सामाजिक तथा धार्मिक अवसरों पर मखमल के परिधानों का विशेष रूप से उपयोग होता था। इसके कई उपयोग भी हैं, जैसे पर्दें के रूप में एवं शोभा के लिये सोफे के गद्दे तथा लिहाफों के खोल के रूप में।
मखमल की बुनाई
हलकी बुनाई का मखमल[३] करघे पर बुना जाता है। यह मखमल ताने के धागों की दो कतारों तथा बाने के धागे की एक कतार से तैयार होता है, अर्थात ताना 'आधार'[४] धागों के रूप में आधार बुनाई[५] करता है तथा रोएँदार धागा बाने के रूप में रोयाँ तैयार करता है। बुनाई के दौरान ऐंठे हुए रोयेंदार धागे को रोयाँ बनाने के लिये ऊपर उठा देते हैं, जबकि आधार के धागे नीचे रहते हैं। इस तरह से बने हुए ऐंठे छादक[६] में एक लंबा, पतला इमारत का तार, जिसके संपूर्ण ऊपरी किनारे में सँकरा खाँचा बना रहता है, डाला जाता है। इस तार को रोयेंवाला तार[७] कहते हैं। यह तार जब पूर्ण चौड़ाई भर के रोयाँ बनने वाले डोरों के बीच में फँसा दिया जाता है, तब कंघा[८] मारते हैं। इसके बाद फिर उसी प्रकार से रोयेंवाला डोरा, जो बाना होता है, निश्चित तानों के बाद उकसाकर, ऐंठकर फंदा ऐसा बना लिया जाता है और उन फंदों मे उपुर्यक्त रोयेंवाले तार की तरह का दूसरा इस्पात का तार घुसेड़ा जाता है। तब फिर कंघा चलाकर कपड़ा बुना जाता है। इस प्रकार तीन तार लगाने पर चौथी बार पहलावाला तार निकालकर लगाते हैं। रोयाँ बनाने के लिये तार निकालने से पहले विशेष प्रकार से बने हुए हैंडिलदार चाकू को इस्पात के तार के ऊपरी खाँचे में एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला देते हैं, जिससे धागा कट जाता है। इससे छोटे छोटे रोयें तैयार हो जाते हैं।
बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयेंवाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के रंग, प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल आकार-(जैसे-कटे बिनकटे) इत्यादि बदलने से बनाए जा सकते हैं।
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