महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 104 श्लोक 132-148
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चतुरधिकशततम (104) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
जिसकी योनि अर्थात कुल का पता न हो तथा जो नीच कुल में पैदा हुई हो, उसके के साथ विद्वान पुरूष समागम न करे। युधिष्ठिर। जिसके शरीर का रंग पीला हो तथा जो कुष्ठ रोग वाली हो उसके साथ तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिये । नरेश्वर। जो मृगी रोग से दूषित कुल में उत्पन्न हुई हो, नीच हो, सफेद कोढ़ वाले और राजक्षमा के रोगी मनुष्य के कुल में पैदा हुई हो, उसको भी त्याग देना चाहिये । जो उत्तम लक्षणों से सम्पन्न, श्रेष्ठ आचरणों द्वारा प्रसंषित, मनोहारिणी तथा दर्शनीय हो, उसी के साथ तुम्हे विवाह करना चाहिये । युधिष्ठिर। अपना कल्याण चाहने वाले पुरूष को अपनी अपेक्षा महान या समान कुल में विवाह करना चाहिये। नीच जाति वाली तथा पति कन्या का पाणिग्रहण कदापि नहीं करना चाहिये । (अरणी-मंथन द्वारा) अग्नि का उत्पादन एवं स्थापन करके ब्राह्माण द्वारा बतायी हुई सम्पूर्ण वेद विहित क्रियाओं का यत्न पूर्वक अनुष्ठान करना चाहिये । सभी उपायों से अपनी स्त्री की रक्षा करनी चाहिये। स्त्रियों से ईर्ष्या रखना उचित नहीं है। ईर्ष्या करने से आयु क्षीण होती है। इसलिये उसे त्याग देना ही उचित है । दिन में एवं सूर्य उदय के पश्चात शयन आयु को क्षीण करने वाला है। प्रातःकाल एवं रात्रि के आरंभ में नहीं सोना चाहिये। अच्छे लोग रात में अपवित्र होकर नहीं सोते हैं । परस्त्री से व्यभिचार करना और हजामत बनवाकर बिना नहाये रह जाना यह भी आयु का नाश करने वाला है। भारत। अपवित्र अवस्था में वेदों का अध्ययन यत्नपूर्वक त्याग देना चाहिये । संध्याकाल में स्नान, भोजन और स्वाध्याय कुछ भी न करे। उस बेला में शुद्धचित्त होकर ध्यान एवं उपासना करनी चाहिये। दूसरा कोई कार्य नहीं करना चाहिये । नरेश्वर। ब्राह्माण की पूजा, देवताओं को नमस्कार और गुरूजनों को प्रणाम स्नान के बाद ही करने चाहिये।। बिना बुलाये कहीं भी न जाये परन्तु यज्ञ देखने के लिये मनुष्य बिना बुलाये भी जा सकता है। भारत। जहां अपना आदर न होता हो, वहां जाने से आयु का नाश होता है । अकेले परदेश जाना और रात में यात्रा करना मना है। यदि किसी काम के लिये बाहर जाय तो संध्या होने के पहले ही घर लौट आना चाहिये । नरश्रेष्ठ। माता-पिता और गुरूजनों की आज्ञा को अवलंब पालन करना चाहिये। इनकी आज्ञा हितकर है या अहितकर, इसका विचार नहीं करना चाहिये । नरेश्वर। क्षत्रीय को धर्नुवेद और वेदाध्ययन के लिये यत्न करना चाहिये। राजेन्द्र। तुम हाथी-घोड़े की सवारी और रथ हांकने की कला में निपुणता प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील बनो, क्योंकि यत्न करने वाला पुरूष सुखपूर्वक उन्नतीशील होता है। वह शत्रुओं, स्वजनों और भृत्यों के लिये दुर्धर्ष हो जाता है । जो राजा सदा प्रजा के पालन में तत्पर रहता है, उसे कभी हानि नहीं उठानी पड़ती। भरतनन्दन। तुम्हे तर्क शास्त्र और शब्दशास्त्र दोनों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये । नरेश्वर। गान्धर्वशास्त्र (संगीत) और समस्त कलाओं का ज्ञान प्राप्त करना भी तुम्हारे लिये आवश्यक है। तुम्हें प्रतिदिन पुराण, इतिहास, उपाख्यान और महात्माओं के चरित्र का श्रवण करना चाहिये ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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