"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 126 श्लोक 38-50" के अवतरणों में अंतर

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षड्विंशत्‍यधिकशततम (126) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: षड्विंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 38-50 का हिन्दी अनुवाद

गौओं ने कहा – पूर्वकाल में ब्रह्मलोक के भीतर वज्रधारी इन्‍द्र के यज्ञ में ‘बहुले ! समंगे ! अकुतोभये ! क्षेमे! सखीख्‍ भयसी’ इन नामों का उच्‍चारण करके बछड़ों सहित गौओं की स्‍तुति की गयी थी, फिर जो-जो गौएँ आकाश में स्थित थीं और जो सूर्य के मार्ग में विद्यमान थीं, नारदसहित सम्‍पूर्ण देवताओं ने उनका ‘सर्वसहा’ नाम रख दिया। ये दोनों श्‍लोक मिलकर एक मन्‍त्र है । उस मन्‍त्र से जो गौओं की वन्‍दना करता है, वह पापकर्म से मुक्‍त हो जाता है । गोसेवा के फलस्‍वरूप उसे इन्‍द्रलोक की प्राप्ति होती है तथा वह चन्‍द्रमा के समान कान्तिलाभ करता है। जो पर्व के दिन गोशाला में इस देवसेवित मन्त्र का पाठ करता है, उसे न पाप होता है, न भय होता है और न शोक ही प्राप्‍त होता है । वह सहस्‍त्र नेत्रधारी इन्‍द्र के लोक में जाता है।
भीष्‍मजी कहते हैं – राजन ! तदनन्‍तर महान सौभाग्‍यशाली विश्‍वविख्‍यात वसिष्‍ठ आदि सभी सप्‍तर्षियों ने कमलयोनि ब्रह्माजी की दक्षिणा की और स‍ब–के-सब हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गये । उनमें से ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्‍ठ वसिष्‍ठ मुनि ने समस्‍त प्राणियों के लिये हितकर तथा विशेषत: ब्राह्मण और क्षत्रियजाति के लिये लाभदायक प्रश्‍न उपस्थित किया-भगवन ! इस संसार में सदाचारी मनुष्‍य प्राय: दरिद्र एवं द्रव्‍यहीन हैं । वे किस कर्म से किस तरह यहाँ यज्ञ का फल पा सकते हैं ?’ उनकी यह बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा। ब्रह-माजी बोले – महान भाग्‍यशाली सप्‍तर्षियों ! तुम लोगों ने परम शुभकारक, गूढ अर्थ से युक्‍त, सूक्ष्‍म एवं मनुष्‍यों के लिये कल्‍याणकारी प्रश्‍न सामने रखा है। तपोधनो ! मनुष्‍य जिस प्रकार बिना किसी संशय के यज्ञ का फल पाता है, वह सब पूर्णरूप से बताउँगा, सुनो। पौषमास के शुक्‍ल पक्ष में जिस दिन रोहिणी नक्षत्र का योग हो, उस दिन की रात में मनुष्‍य स्‍नान आदि से शुद्ध हो एक वस्‍त्र धारण करके श्रद्धा और एकाग्रता के साथ खुले मैदान में आकाश के नीचे शयन करे और चन्‍द्रमा की किरणों का ही पान करता रहे । ऐसा करने से उसको महान यज्ञ का फल मिलता है। विप्रवरो ! तुम लोग सूक्ष्‍मतत्त्व एवं अर्थ के ज्ञाता हो । तुमने मुझसे जो कुछ पूछा है, उसके अनुसार मैंने तुम्‍हें यह परम गूढ रहस्‍य बताया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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