"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 157 श्लोक 17-27" के अवतरणों में अंतर

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सप्‍तपञचाशदधिकशततम (157) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्‍तपञचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-27 का हिन्दी अनुवाद

उनकी ऊँची ध्‍वजाएँ फहरा रही थीं । कपों को आक्रमण करते देख सभी ब्राह्मण उन कपों पर प्रज्‍वलित एवं प्राणनाशक अग्नि का प्रहार करने लगे। नरेश्‍वर ! ब्राह्मणों के छोड़े हुए सनातन अग्निदेव उन कपों का संहार करके आकाश में बादलों के समान प्रकाशित होने लगे। उस समय सब देवताओं ने युद्ध में संगठित होकर दानवों का संहार कर डाला । किंतु उस समय उन्‍हें यह मालूम नहीं था कि ब्रहाह्मणों ने कपों का विनाश कर डाला है। प्रभो ! तदनन्‍तर महातेजस्‍वी नारदजी ने आकर यह बात बतायी कि किस प्रकार महाभाग ब्राह्मणों ने अपने तेज से कपों का नाश किया है। नारद जी की बात सुनकर सब देवता बड़े प्रसन्‍न हुए । उन्‍होंने द्विजों और यशस्‍वी ब्राह्मणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। तदनन्‍तर देवताओं के तेज और पराक्रम की वृद्धि होने लगी । उन्‍होंने तीनों लोकों में सम्‍मानित होकर अमरत्‍व प्राप्‍त कर लिया। महाबाहु युधिष्ठिर ! जब वायु ने इस प्रकार ब्राह्मणों का महत्‍व बतलाया, तब कार्तवीर्य अर्जुन ने उनके वचनों की प्रशंसा करके जो उत्तर दिया, उसे सुनो। अर्जुन बोला – प्रभो ! मैं सब प्रकार से और सदा ब्राह्मणों के लिये ही जीवन धारण करता हूँ, बा्रह्मणों का भक्‍त हूँ और प्रतिदिन ब्राह्मणों को प्रणाम करता हूँ। विप्रवर दत्तात्रेय जी की कृपा से मुझे इस लोक में महान् बल, उत्तम कीर्ति और महान् धर्म की प्राप्ति हुई है।।25।। वायुदेव ! बडत्रे हर्ष की बात है कि आपने मुझसे ब्राह्मणों के अद्भुत कर्मों का यथावत् वर्णन किया और मैंने ध्यान देकर दन सबको श्रवण किया । वायु ने कहा- राजन् ! तुम क्षत्रिय धर्म के अनुसार ब्राह्मणों की रक्षा और इन्द्रियों का संयम करो। तुम्हें भृगुवंशी ब्राह्मणों से घोर भय प्रापत होने वाला है; परन्तु यह दीर्घकाल के पश्चात् सम्भव होगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में वायुदेव और अर्जुन का संवाद विषयक एक सौ सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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