महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 103 श्लोक 41-47

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त्रयधिकशततम (103) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: त्रयधिकशततम अध्याय: श्लोक 14-47 का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! इस प्रकार वहाँ परस्पर कही हुई पाण्डवों की प्रशंसा तथा आपके पुत्रों की अत्यन्त भयंकर निंदा से युक्त नाना प्रकार की बातें सुनायी पड़ती थी। भारत ! तब सम्पूर्ण योद्धाओं के मुख से निकली हुई उन बातों को सुनकर सम्पूर्ण लोकों का अपराध करने वाले आपके पुत्र दुर्योधन ने भीष्म, द्रोण, कृप और शल्य से कहा- आपलोग अहंकार छोड़कर युद्ध करें; विलम्ब क्यों कर रहे है? राजन् ! तदनन्तर कौरवों का पाण्डवों के साथ अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा, जो कपटपूर्ण द्यूत के कारण सम्भव हुआ था और जिसमें बड़ी भारी मारकाट मच रही थीं।
विचित्रवीर्यनन्दन महाराज धृतराष्ट्र ! पूर्वकाल मे महात्मा पुरूषों के मना करने पर भी जो आपने उनकी बातें नहीं मानीं, उसी का यह भयंकर फल प्राप्त हुआ है, इसे देखिये। राजन् ! सेना और सेवकों सहित पाण्डव अथवा कौरव समरभूमि में अपने प्राणों की रक्षा नहीं करते है- प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध कर रहे है। पुरूषसिंह ! नरेश्वर ! इस कारण से अथवा देव की प्रेरणा से या आपके ही अन्याय से होने वाले इस युद्ध में स्वजनों का घोर संहार हो रहा है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में घमासान युद्धविषयक एक सौ तीसरा अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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