"महाभारत वन पर्व अध्याय 54 श्लोक 19-31" के अवतरणों में अंतर

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==चतु:पञ्चाशत्तम (54) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यानपर्व)==
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: चतु:पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: चतु:पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत् वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में इन्द्रनारदसंवादविषयक चैवनवां अध्याय पूरा हुआ।</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत् वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में इन्द्रनारदसंवादविषयक चैवनवां अध्याय पूरा हुआ।</div>
  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत महाभारत वन पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-18|अगला=महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 1-17}}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०६:५५, २५ अक्टूबर २०१५ के समय का अवतरण

चतु:पञ्चाशत्तम (54) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतु:पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद

‘वे शूरवीर क्षत्रिय यहां हैं ? अपने उन प्रिय अतिथियों को आजकल मैं यहां आते नहीं देख रहा हूं’ इन्द्र के ऐसा पूछने पर नारदजी ने उत्तर दिया। नारद बोले- मघवन् ! मैं वह कारण बताता हूं, जिससे राजलोग आजकल यहां नहीं दिखायी देते, सुनिये । विदर्भनरेश भीम के यहां दमयन्ती नाम से प्रसिद्ध एक कन्या उत्पन्न हुई है, जो मनोहर रूप-सौन्दर्य में पृथ्वी की सम्पूर्ण युवतियों को लांघ गयी है। इन्द्र ! अब शीघ्र ही उसका स्वयंवर होनेवाला है,उसी में सब राजा और राजकुमार जा रहे हैं। बल और वृत्रासुर के नाश इन्द्र ! दमयन्ती सम्पूर्ण जगत् एक अद्भुत रत्न है। इसलिये सब राजा उसे पाने की विशेष अभिलाषा रखते हैं। यह बात हो ही रही थी कि देवश्रेष्ठ लोकपालगण अग्नि सहित देवराज के समीप आये। तदनन्तर उस सबने नारदजी की ये विशिष्टि बातें सुनीं। सुनते ही वह सब के सब हर्षोल्लास से परिपूर्ण हो बोले-हमलोग भी उस स्वयंवर में चलें’। महाराज ! तदनन्तर वे सब देवता अपने सेवगणों और वाहनों के साथ विदर्भदेश में गये, समस्त भूपाल एकत्र हुए थे। कुन्तीनन्दन ! उदारहृदय राजा नल भी विदर्भनगर में समस्त राजाओं का समागम सुनकर अमयन्ती में अनुरक्त हो बहां गये। उस समय देवताओं ने पृथ्वी पर मार्ग में खडे़ हुए राजा नल को देखा। रूप-सम्पति की दृष्टि से वे साक्षात् मूर्तिमान कामदेव से जान पड़ते थे। सूर्य के समान प्रकाशित होनेवाले महाराज नल को देखकर वे लोकपाल उनके रूप वैभव से चकित हो दमयन्ती को पानेका संकल्प छाड़ बैठे। राजन्! तब उन देवताओं ने अपने विमान को आकाश में रोक दिया और वहां से नीचे उतरकर निषधनरेश से कहा- ‘निषधदेश के महाराज नरश्रेष्ठ नल ! आप सत्यव्रती हैं, हमलोगों की सहायता कीजिये। हमारे दूत बन जाइये’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत् वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में इन्द्रनारदसंवादविषयक चैवनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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