"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 122 श्लोक 43-56" के अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) ('==सप्तचत्वारिंश(47) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | == | + | ==द्वाविंशशत्यधिकशततम(122) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)== |
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: द्वाविंशशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 43-56 का हिन्दी अनुवाद</div> |
भगवान् इन्द्र दण्ड-विधान करने में सदा जागरुक रहते हैं।इन्द्र से प्रकाशमान अग्नि, अग्नि से वरुण और वरुण से प्रजापति उस दण्ड की प्राप्त करके उसके यथोचित प्रयोग के लिये सदा जाग्रत् रहते हैं। जो सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देनेवाले हैं, वे धर्म प्रजापति से दण्ड को ग्रहण करके प्रजा की रक्षा के लिये सदा जागरुक रहते हैं। ब्रह्मपुत्र सनातन व्यवसाय वह दण्ड धर्म से लेकर लोकरक्षा के लिये जागते रहते हैं।। व्यवसाय से दण्ड लेकर तेज जगत् की रक्षा करता हुआ सजग रहता है। तेज से औषधियां, ओषधियों से पर्वत, पर्वतों से रस, रस से निर्ॠति और निर्ॠति से ज्योतियां क्रमश: उस दण्ड को हस्तगत करके लोक-रक्षा के लिये जागरुक बनी रहती है। ज्योतियों से दण्ड ग्रहण करके वेद प्रतिष्ठित हुए हैं। वेदों से भगवान् हयग्रीव और हयग्रीव से अविनाशी प्रभु ब्रह्म वह दण्ड पाकर लोक-रक्षा के लिये जागते रहते हैं। पितामह ब्रह्मा से दण्ड और रक्षा का अधिकार पाकर महान् देव भगवान् शिव जागते हैं।शिव से विश्वेदेव, विश्वेदेवों से ॠषि, ॠषियों से भगवान् सोम, सोम से सनातन देवगण और देवताओं से ब्रह्मण वह अधिकार लेकर लोक-रक्षा के लिये सदा जाग्रत रहते है।<br /> | भगवान् इन्द्र दण्ड-विधान करने में सदा जागरुक रहते हैं।इन्द्र से प्रकाशमान अग्नि, अग्नि से वरुण और वरुण से प्रजापति उस दण्ड की प्राप्त करके उसके यथोचित प्रयोग के लिये सदा जाग्रत् रहते हैं। जो सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देनेवाले हैं, वे धर्म प्रजापति से दण्ड को ग्रहण करके प्रजा की रक्षा के लिये सदा जागरुक रहते हैं। ब्रह्मपुत्र सनातन व्यवसाय वह दण्ड धर्म से लेकर लोकरक्षा के लिये जागते रहते हैं।। व्यवसाय से दण्ड लेकर तेज जगत् की रक्षा करता हुआ सजग रहता है। तेज से औषधियां, ओषधियों से पर्वत, पर्वतों से रस, रस से निर्ॠति और निर्ॠति से ज्योतियां क्रमश: उस दण्ड को हस्तगत करके लोक-रक्षा के लिये जागरुक बनी रहती है। ज्योतियों से दण्ड ग्रहण करके वेद प्रतिष्ठित हुए हैं। वेदों से भगवान् हयग्रीव और हयग्रीव से अविनाशी प्रभु ब्रह्म वह दण्ड पाकर लोक-रक्षा के लिये जागते रहते हैं। पितामह ब्रह्मा से दण्ड और रक्षा का अधिकार पाकर महान् देव भगवान् शिव जागते हैं।शिव से विश्वेदेव, विश्वेदेवों से ॠषि, ॠषियों से भगवान् सोम, सोम से सनातन देवगण और देवताओं से ब्रह्मण वह अधिकार लेकर लोक-रक्षा के लिये सदा जाग्रत रहते है।<br /> | ||
पंक्ति ७: | पंक्ति ७: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तगर्त राजधर्मानुशासन पर्व में दण्ड की उत्पति की कथा विषयक एक सौ बाईसवां अध्याय पुरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तगर्त राजधर्मानुशासन पर्व में दण्ड की उत्पति की कथा विषयक एक सौ बाईसवां अध्याय पुरा हुआ।</div> | ||
− | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 122 श्लोक 21-42|अगला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 123 श्लोक 1- | + | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 122 श्लोक 21-42|अगला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 123 श्लोक 1-10}} |
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
०८:२५, १८ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
द्वाविंशशत्यधिकशततम(122) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
भगवान् इन्द्र दण्ड-विधान करने में सदा जागरुक रहते हैं।इन्द्र से प्रकाशमान अग्नि, अग्नि से वरुण और वरुण से प्रजापति उस दण्ड की प्राप्त करके उसके यथोचित प्रयोग के लिये सदा जाग्रत् रहते हैं। जो सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देनेवाले हैं, वे धर्म प्रजापति से दण्ड को ग्रहण करके प्रजा की रक्षा के लिये सदा जागरुक रहते हैं। ब्रह्मपुत्र सनातन व्यवसाय वह दण्ड धर्म से लेकर लोकरक्षा के लिये जागते रहते हैं।। व्यवसाय से दण्ड लेकर तेज जगत् की रक्षा करता हुआ सजग रहता है। तेज से औषधियां, ओषधियों से पर्वत, पर्वतों से रस, रस से निर्ॠति और निर्ॠति से ज्योतियां क्रमश: उस दण्ड को हस्तगत करके लोक-रक्षा के लिये जागरुक बनी रहती है। ज्योतियों से दण्ड ग्रहण करके वेद प्रतिष्ठित हुए हैं। वेदों से भगवान् हयग्रीव और हयग्रीव से अविनाशी प्रभु ब्रह्म वह दण्ड पाकर लोक-रक्षा के लिये जागते रहते हैं। पितामह ब्रह्मा से दण्ड और रक्षा का अधिकार पाकर महान् देव भगवान् शिव जागते हैं।शिव से विश्वेदेव, विश्वेदेवों से ॠषि, ॠषियों से भगवान् सोम, सोम से सनातन देवगण और देवताओं से ब्रह्मण वह अधिकार लेकर लोक-रक्षा के लिये सदा जाग्रत रहते है।
इस बात को तुम अच्छी तरह समझ लो। तदनन्तर ब्राह्मणों से दण्ड धारण का अधिकार पाकर क्षत्रिय धर्मानुसार सम्पूर्ण लोकों की रक्षा करते हैं। क्षत्रियों से ही यह सनातन चराचर जगत् सुरक्षित होता रहा है। इस लोक में प्रजा जागती हैं और प्रजाओं में दण्ड जागता है। वह ब्रह्मजी के समान तेजस्वी दण्ड सबको मर्यादा के भीतर रखता है। भारत ! यह काल रुप दण्ड सृष्टि के आदि में, मध्य में और अन्त में भी जागता रहता है। यह सर्व-लोकेश्वर महादेव का स्वरुप है। यही समस्त प्रजाओं का पालक है। इस दण्ड के रुप में देवाधिदेव कल्याणस्वरुप सर्वात्मा प्रभु जटाजुटधारी उमावल्लभ दु:खहारी स्थाणु-स्वरुप एवं लोक-मंगलकारी भगवान् शिव ही सदा जाग्रत रहते हैं। इस तरह यह दण्ड आदि, मध्य और अन्त में विख्यात है। धर्मज्ञ राजा को चाहिये कि इसके द्वारा न्यायोचित बर्ताव करे। भीष्म जी कहते हैं-युधिष्ठिर ! जो नरेश इस प्रकार बताये हुए वसुहोम के इस मत को सुनता और सुनकर यथोचित बर्ताव करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। नरश्रेष्ठ ! जो दण्ड सम्पूर्ण धार्मिक जगत् को नियम के भीतर रखनेवाला है, उसके सम्बन्ध में जितनी बातें हैं, उन्हें मैंने तुम्हें बता दी।
« पीछे | आगे » |