"वैष्णव संत तमिल" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (तमिल वैष्णव का नाम बदलकर तमिल वैष्णव संत कर दिया गया है)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{लेख सूचना
 +
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
 +
|पृष्ठ संख्या=309-310
 +
|भाषा= हिन्दी देवनागरी
 +
|लेखक = 
 +
|संपादक=फूलदेवसहाय वर्मा
 +
|आलोचक=
 +
|अनुवादक=
 +
|प्रकाशक=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
 +
|मुद्रक=नागरी मुद्रण वाराणसी
 +
|संस्करण=सन्‌ 1965 ईसवी
 +
|स्रोत= 
 +
|उपलब्ध=भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
 +
|कॉपीराइट सूचना=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
 +
|टिप्पणी=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन सूचना=
 +
}}
 
तमिल वैष्णव संत शिवभक्ति का प्रचार करने वाले शैव संतों को नायन्मार कहते हैं। उनकी संख्या ६३ मानी जाती है। ये सभी नायत्मार मुक्तात्मा माने जाते हैं। इनकी मूर्तियाँ मंदिरों मे स्थापित की गई है और इनकी पूजा भगवान्‌ के समान ही की जाती है। इन संतों का चरित्र शेक्किषार नामक भक्तकवि के पेरियपुराण में वर्णित है। इन संतों का जीवन तेलुगु में शिवभक्त चरितमु के नाम से प्रकाशित हुआ है।
 
तमिल वैष्णव संत शिवभक्ति का प्रचार करने वाले शैव संतों को नायन्मार कहते हैं। उनकी संख्या ६३ मानी जाती है। ये सभी नायत्मार मुक्तात्मा माने जाते हैं। इनकी मूर्तियाँ मंदिरों मे स्थापित की गई है और इनकी पूजा भगवान्‌ के समान ही की जाती है। इन संतों का चरित्र शेक्किषार नामक भक्तकवि के पेरियपुराण में वर्णित है। इन संतों का जीवन तेलुगु में शिवभक्त चरितमु के नाम से प्रकाशित हुआ है।
  

०५:१३, ८ सितम्बर २०११ का अवतरण

लेख सूचना
वैष्णव संत तमिल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 309-310
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

तमिल वैष्णव संत शिवभक्ति का प्रचार करने वाले शैव संतों को नायन्मार कहते हैं। उनकी संख्या ६३ मानी जाती है। ये सभी नायत्मार मुक्तात्मा माने जाते हैं। इनकी मूर्तियाँ मंदिरों मे स्थापित की गई है और इनकी पूजा भगवान्‌ के समान ही की जाती है। इन संतों का चरित्र शेक्किषार नामक भक्तकवि के पेरियपुराण में वर्णित है। इन संतों का जीवन तेलुगु में शिवभक्त चरितमु के नाम से प्रकाशित हुआ है।

विष्णु या नारायण की उपासना करनेवाले भक्त आलवार कहलाते हैं। इनकी संख्या १२ हैं। उनके नाम इस प्रकार है - (१) पोरगे आलवार (२) भूतत्तालवार (३) मैयालवार (४) निरुमिषिसे आलवार (५) नम्मालवार (६) मधुरकवि आलवार (७) कुलशेखरालवार (८) पेरियालवार (९) आण्डाल (१०) तांण्डरडिप्पोड़ियालवार (११) तिरुरपाणोलवार (१२) तिरुमगैयालवार।

इन द्वादश आलवारों ने घोषणा की कि भगवान्‌ की भक्ति करने का सबको समान रूप से अधिकार प्राप्त है। इन्होंने, जिनमें कतिपय निम्न जाति के भी थे, समस्त तमिल प्रदेश में पदयात्रा कर भक्ति का प्रयार किया। इनके भावपूर्ण लगभग ४००० गीत मालायिर दिव्य प्रबंध में संग्रहित हैं। दिव्य प्रबंध भक्ति तथा ज्ञान का अनमोल भंडार है।आलवारों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है-

प्रथम तीन आलवारों में से पोरगे का जन्मस्थान कांचीपुरम, भूतन्तालवार का जन्मस्थन महाबलीपुरम्‌ और पेयालवार का जन्म स्थान मद्रास (मैलापुर) बतलाया जाता है। इन आलवारों के भक्तिगान ज्ञानद्वीप के रूप में विख्यात हैं। मद्रास से १५ मील दूर तिरुमिषिसै नामक एक छोटा सा ग्राम है। यहीं पर तिरुमिष्सेि का जन्म हुआ। मातापिता ने इन्हें शैशवावस्था में ही त्याग दिया। एक व्याध के द्वारा इनका लालन पालन हुआ। कालांतर में ये बड़े ज्ञानी और भक्त बने। नम्मालवार का दूसरा नाम शठकोप बतलाया जाता है। पराकुंश मुनि के नाम से भी ये विख्यात हैं। आलवारों में यही महत्वपूर्ण आलवार माने जाते हैं। इनका जन्म ताम्रपर्णी नदी के तट पर स्थित तिरुक्कुरुकूर नामक ग्राम में हुआ। इनकी रचनाएँ दिव्य प्रबंधम्‌ में संकलित हैं। दिव्य प्रबंधम्‌ के ४००० पद्यों में से १००० पद्य इन्हीं के हैं। इनकी उपासना गोपी भाव की थी। छठे आलवार मधुर कवि गरुड़ के अवतार माने जाते हैं। इनका जन्मस्थान तिरुक्कालूर नामक ग्राम है। ये शठकोप मुनि के समकालीन थे और उनके गीतों को मधुर कंठ में गाते थे। इसीलिये इन्हें मधुरकवि कहा गया। इनका वास्तविक नाम अज्ञात है। सातवें आलवार कुलशेखरालवार केरल के राजा दृढ़क्त के पुत्र थे। ये कौस्तुभमणि के अवतार माने जाते हैं। भक्तिभाव के कारण इन्होने राज्य का त्याग किया और श्रीरंगम्‌ रंगनाथ जी के पास चले गए। उनकी स्तुति में उन्होंने मुकुंदमाला नामक स्तोत्र लिखा है। आठवें आलवार पेरियालवार का दूसरा नाम विष्णुचित है। इनका जन्म श्रीविल्लिपुत्तुर में हुआ। आंडाल इन्हीं की पोषित कन्या थी। बारह आलवारों में आंडाल महिला थी। एकमात्र रंगनाथ को अपना पति मानकार ये भक्ति में लीन रहीं। कहते हैं, इन्हें भगवान्‌ की ज्योति प्राप्त हुई। आंडाल की रचनाएँ निरुप्पाबै और नाच्चियार तिरुमोषि बहुत प्रसिद्ध है। आंडाल की उपासना माधुर्य भाव की है। तोंडरडिप्पोड़ियालवार का जन्म विप्रकुल में हुआ। इनका दूसरा नाम विप्रनारायण है। बारहवें आलवार तिरुमगैयालवार का जन्म शैव परिवार में हुआ। ये भगवान्‌ की दास्य भावना से उपासना करते थे। इन्होनें तमिल में छ ग्रंथ लिखे हैं, जिन्हें तमिल वेदांग कहते हैं।

इन आलवारों के भक्तिसिद्धांतों को तर्कपूर्ण रूप से प्रतिष्ठित करने वाले अनेक आचार्य हुए हैं जिनमें रामानुजाचार्य और वेदांतदेशिक प्रमुख हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ