"श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 5 श्लोक 45-50" के अवतरणों में अंतर
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११:०१, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
तृतीय स्कन्ध: पञ्चम अध्यायः (5)
देव! आपके कथामृत का पान करने से उमड़ी हुई भक्ति के कारण जिनका अन्तःकरण निर्मल हो गया है, वे लोग—वैराग्य ही जिसका सार है—ऐसा आत्मज्ञान प्राप्त करके अनायास ही आपके वैकुण्ठधाम को चले जाते हैं। दूसरे धीरे पुरुष चित्त निरोध रूप समाधि के बल से आपकी बलवती माया को जीतकर आपमें ही लीन तो हो जाते हैं, पर उन्हें श्रम बहुत होता है; किन्तु आपकी सेवा के मार्ग में कुछ भी कष्ट नहीं है। आदिदेव! आपके सृष्टि रचना की इच्छा से हमें त्रिगुणमय रचा है। इसलिये विभिन्न स्वभाव वाले होने के कारण हम आपस में मिल नहीं पाते और इसी से आपकी क्रीडा के साधन रूप ब्रम्हाण्ड की रचना करके उसे आपको समर्पण करने में असमर्थ हो रहे हैं। अतः जन्मरहित भगवन्! जिससे हम ब्रम्हाण्ड रचकर आपको सब प्रकार के भोग समय पर समर्पण कर सकें और जहाँ स्थित होकर हम भी आपनी योग्यता के अनुसार अन्न ग्रहण कर सकें तथा ये सब जीव भी सब प्रकार की विघ्न-बाधाओं से दूर रहकर हम और आप दोनों को भोग समर्पण करते हुए अपना-अपना अन्न भक्षण कर सकें, ऐसा कोई उपाय कीजि। आप निर्विकार पुराण पुरुष ही अन्य कार्य वर्ग के सहित हम देवताओं के आदि कारण हैं। देव! पहले आप अजन्मा ही ने सत्ववादि गुण और जन्मादि कर्मों की कारण रूपा माया शक्ति में चिदाभास रूप वीर्य स्थापित किया था। परमात्मादेव! महतत्वादि रूप हम देवगण जिस कार्य के लिये उत्पन्न हुए हैं, उसके सम्बन्ध में हम क्या करें ? देव! हम पर आप ही अनुग्रह करने वाले हैं। इसलिये ब्रम्हाण्ड रचना के लिये आप हमें क्रिया शक्ति के सहित अपनी ज्ञान शक्ति भी प्रदान कीजिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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