महाभारत माहात्म्य 1

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महाभारत माहात्म्य 1

महाभारत माहात्म्य 1 का हिन्दी अनुवाद

पाराशर के पुत्र महर्षि व्‍यास की वाणी रूपी सरोवर में उदित यह महाभारत रूपी अमल कमल जो गीतार्थ रूपी तीव्र सुगन्‍ध से युक्‍त, नाना प्रकार के आख्‍यान रूपी केसर से सम्‍पन्‍न तथा हरि कथा रूपी सूर्य ताप से प्रफुल्लित है, सज्‍जन रूपी भ्रमर इस लोक में जिसके रसका निरन्‍तर प्रमुदित होकर पान किया करते हैं और जो कालिकाल के पापरूपी मल का नाश करने वाला है, सदा हमारा कल्‍याण करने वाला हो। जिसमें भगवान विष्‍णु की दिव्‍य कथाओं का वर्णन है और जिसमें कल्‍याण मयी श्रुतियों का सार दिया गया है, इस लोक में परमपद की इच्‍छा करने वाले मनुष्‍य को उस महाभारत का श्रवण करना चाहिये। अष्‍टा दश पुराणों के रचयिता और वेद (ज्ञान) के महान समुद्र महात्‍मा श्रीव्‍यासदेव का यह सिंहनाद है कि ‘तुम नित्‍य महाभारत का श्रवण करो।‘ अपरिमित बुद्वि भगवान व्‍यासदेव के द्वारा कथित यह महाभारत पवित्र धर्म शास्‍त्र है, श्रेष्‍ठ अर्थशास्‍त्र है और सर्वोत्‍तम मोक्ष शास्‍त्र भी है। हे भरतश्रेष्‍ठ ! महाभारत समस्‍त शास्‍त्रों का शिरोमणि है, इसी से सम्‍प्रति विक्षद्वान लोग इसका पठन-श्रवण करते हैं और आगे भी करेंगें। जो ब्राह्मण नियमित व्रत का पालन करता हुआ वर्षा ऋतु के चार महीनों में पवित्र भारत का पाठ करता है वह सब पापों से मुक्‍त हो जाता है। जो पुरूष शुद्व होकर कुरू के प्रसिद्व वंश का सदा कीर्तन करता है उसके वंश का विपुल विस्‍तार होता है; और लोक में वह पूज्‍य तम बन जाता है। दीर्घदृष्टि तथा मोक्ष रूप भगवान श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास ने केवल धर्म की कामना से ही इस महाभारत को रचा है। हे भरतर्षभ ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्‍बन्‍ध में जो कुछ इस (महाभारत)-में कहा गया है वही अन्‍य शास्‍त्रों में भी कहा गया है। जो इस में नही कहा गया, वह कहीं नहीं कहा गया है। यह महाभारत परम पवित्र है, धर्म के लिये प्राण रूप है, समस्‍त गुणों से सम्‍पन्‍न है; कल्‍याण की इच्‍छा करने वाले मनुष्‍य को इसे अवश्‍य सुनना चाहिये। क्‍योंकि, जैसे सूर्य के उदय होने पर अन्‍धकार का नाश जाता है, वैसे ही इस महाभारत से तन, वचन और मन से किये हुए सब पाप नष्‍ट हो जाते हैं। जो मनुष्‍य महान पवित्र इस इतिहास को पुण्‍यार्थ पवित्र ब्राह्मणों को श्रवण करता है वह सनातन धर्म को प्राप्‍त होता है। महाभारत की आख्‍यान, पृथ्‍वी, गौ, सरस्‍वती, ब्राह्मण तथा भगवान केशव- इनका कीर्तन करने वाला मनुष्‍य कभी दुखी नहीं होता। जो मनुष्‍य निरन्‍तर श्रीमहाभारत सुनता है या सुनाता है वह सब पापों से मुक्‍त होकर विष्‍णु-पद को प्राप्‍त होता । इतना, ही नहीं, वह पुरूष अपने ग्‍यारह पीढ़ी के समस्‍त पितरों का तथा पुत्र और पत्‍नी सहित अपना भी उद्धार करता है। जैसे समुद्र तथा महापर्वत सुमेरू तथा रत्‍न निधि के नाम से विख्‍यात हैं, वैसे ही यह महाभारत भी रत्‍नों का भण्‍डार कहा गया है। मनुष्‍य को इस महान पवित्र इतिहास के पढ़ने-सुनने से जैसी तुष्टि प्राप्‍त होती है वैसी स्‍वर्ग में जाने से भी नहीं प्राप्‍त होती । जो मनुष्‍य इस महाभारत को पढ़ता है सुनता है, वह शरीर, वाणी तथा मन से किये हुए सब पापों का नि:शेष रूप से त्‍याग कर देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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