महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 91 श्लोक 1-17

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एकनवतितम (91) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
हिंसा मिश्रित यज्ञ और धर्म की निन्‍दा

जनमेजय ने कहा– प्रभो ! राजा लोग यज्ञ में संलग्‍न होते हैं, महर्षि तपस्‍या में तत्‍पर रहते हैं और ब्राह्मण लोग शान्‍ति (मनोनिग्रह)– में स्‍थित होते हैं । मन का निग्रह हो जाने पर इन्‍द्रयों का संयम स्‍वत: ही सिद्ध हो जाता है ।अत: यज्ञ फल की समानता करने वाला कोई कर्म यहां मुझे नहीं दिखाई देता है । यज्ञ के सम्‍बन्‍ध में मेरा तो ऐसा विचार है और नि:संदेह यही ठीक है। यज्ञों का अनुष्‍ठान करके बहुत – से राजा और श्रेष्‍ठ ब्राह्मण इहलोक में उत्‍तम कीर्ति पाकर मृत्‍यु के पश्‍चात् स्‍वर्गलोक में गये हैं। सहस्‍त्र नेत्रधारी महातेजस्‍वी देवराज भगवान इन्‍द्र ने बहुत – सी दक्षिणा वाले बहुसंख्‍यक यज्ञों का अनुष्‍ठान करके देवताओं का समस्‍त साम्राज्‍य प्राप्‍त किया था। भीम और अर्जुन को आगे रखकर राजा युधिष्‍ठिर भी समृद्धि और पराक्रम की दृष्‍टि से देवराज इन्‍द्र के ही तुल्‍य थे। फिर उस नेवलेने महात्‍मा राजा युधिष्‍ठिर के उस अश्‍वमेध नामक यज्ञ की निन्‍दा क्‍यों की ? वैशम्‍पायनजी ने कहा – नरेश्‍वर ! भरतनन्‍दन ! मैं यज्ञ की श्रेष्‍ठ विधि और फल का यहां यथावत् वर्णन करता हूं, तुम मेरा कथन सुनो। राजन् ! प्राचीन काल की बात है, जब इन्‍द्र का यज्ञ हो रहा था और सब महर्षि मन्‍त्रोचारण कर रहे थे, ऋत्‍विज् लोग अपने –अपने कर्मों में लगे थे, यज्ञ का काम बड़े समारोह और विस्‍तार के साथ चल रहा था, उत्‍तम गुणों से युक्‍त आहुतियों का अग्‍नि में हवन किया जा रहा था, देवताओं का आवहान हो रहा था, बड़े – बड़े महर्षि खड़े थे, ब्राह्मण लोग बड़ी प्रसन्‍नता के साथ वेदोक्‍त मन्‍त्रों का उत्‍तम स्‍वर से पाठ करते थे और शीघ्रकारी उत्‍तम अध्‍वर्युगण बिना किसी थकावट के अपने कर्तव्‍य का पालन कर रहे थे । इतने ही में पशुओं के आलभ्‍य का समय आया । महाराज ! जब पशु पकड़ लिये गये, तब महर्षियों को उन पर बड़ी दया आयी। उन पशुओं की दयनीय अवस्‍था देखकर वे तपोधन ऋषि इन्‍द्र के पास जाकर बोले –‘यह जो यज्ञ में पशुवध का विधान है, यह शुभ कारक नहीं है । ‘पुरंदर ! आप महान् धर्म की इच्‍छा करते हैं तो भी जो पशुवध के उद्यत हो गये हैं, यह आपका अज्ञान ही है; क्‍योंकि यज्ञ में पशुओं के वध का विधान शास्‍त्र में नहीं देखा गया है।‘प्रभो ! आपने जो यज्ञ का समारम्‍भ किया है, यह धर्म को हानि पहुंचाने वाला है । यह यज्ञ धर्म के अनुकूल नहीं है, क्‍योंकि हिंसा को कहीं भी धर्म नहीं कहा गया है। ‘यदि आपकी इच्‍छा हो तो ब्राह्मण लोग शास्‍त्र के अनुसार ही इस यज्ञ का अनुष्‍ठान करें । शास्‍त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ करने से आपको महान् धर्म की प्राप्‍ति होगी। ‘सहस्‍त्र नेत्रधारी इन्‍द्र ! आप तीन वर्ष के पुराने बीजों (जौ, गेहूं आदि अनाजों ) – से यज्ञ करें । यही महान् धर्म है और महान् गुणकारक फल की प्राप्‍ति कराने वाला है।तत्‍वदर्शी ऋषियों के कहे हुए इस वचन को इन्‍द्र ने अभिमान वश नहीं स्‍वीकार किया । वे मोह के वशीभूत हो गये थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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